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राज्यों के बीच वित्तीय हस्तांतरण का मुद्दा

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 :  संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

संदर्भ 

हाल ही में, विशेष रूप से दक्षिण भारत के राज्यों सहित विभिन्न राज्यों ने दावा किया है कि उन्हें वित्तीय हस्तांतरण की वर्तमान योजना के अनुसार उनका उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है। उन्होंने कर संग्रह में अपने योगदान की तुलना में कर राजस्व में प्राप्ति के आनुपातिक हिस्से से कम हिस्सेदारी के बारे में मुद्दे उठाए हैं।

केंद्र और राज्यों के बीच धन आवंटन का आधार

  • संविधान के अनुच्छेद 270 में केंद्र सरकार द्वारा एकत्रित शुद्ध कर आय (Net Tax Revenue) को केंद्र व राज्यों के बीच साझा किए जाने का प्रावधान किया गया है।
    • केंद्र और राज्यों के बीच साझा किए जाने वाले करों में निगम कर, व्यक्तिगत आयकर, केंद्रीय जीएसटी, एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) में केंद्र का हिस्सा आदि शामिल हैं।
  • यह विभाजन वित्त आयोग की सिफारिश पर आधारित होता है। करों के हिस्से के अलावा, राज्यों को वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार सहायता अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
  • 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिए इस विभाज्य पूल से 41% हिस्सेदारी की सिफारिश की है।
    • करों के इस विभाज्य पूल में केंद्र द्वारा लगाए गए उपकर और अधिभार शामिल नहीं होते हैं।

वित्त आयोग का गठन और करों के वितरण का आधार

  • वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिसका गठन अनुच्छेद 280 के प्रावधानों के अनुसार हर पांच साल में केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। 
  • इसमें एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य (कुल 5) होते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • वित्त आयोग (विविध प्रावधान) अधिनियम, 1951 ने आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के लिए योग्यताएँ निर्दिष्ट की हैं।
    • केंद्र सरकार ने 2026-31 की अवधि के लिए अपनी सिफारिशें करने के लिए अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16वें वित्त आयोग के गठन को अधिसूचित किया है।
  • करों के वितरण के आधार में निम्नलिखित विषयों को शामिल किया जाता हैं: 
    • राज्यों की आय असमानता: 15वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में बेंचमार्क प्रतिव्यक्ति आय वाले राज्य हरियाणा से किसी राज्य प्रति व्यक्ति आय के अंतर को राज्यों की आय असमानता के स्तर मानकर सिफारिशे दी हैं। राज्यों के बीच समानता बनाए रखने के लिए कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों को अधिक हिस्सेदारी दी जाती है।
    • जनसंख्या : 2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग किया जाता है। 14वें वित्त आयोग तक 1971 की जनगणना के आंकड़ों से को ही आधार बनाया जा रहा था।
    • वन और पारिस्थितिकी : बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों को उनके पारिस्थितिक योगदान को मान्यता देते हुए एक बड़ा हिस्सा मिलता है।
    • जनसांख्यिकीय प्रदर्शन : जिन राज्यों ने अपनी जनसंख्या वृद्धि को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया है उन्हें अधिक धन प्राप्त होता है।
    • कर प्रयास : उच्च कर संग्रह दक्षता वाले राज्यों को अधिक हिस्सेदारी से पुरस्कृत किया जाता है।

केंद्र और राज्यों के बीच धन आवंटन को लेकर मुद्दे

  • कम वित्तीय हस्तांतरण : वित्त आयोग केंद्र सरकार के शुद्ध कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी की सिफारिश करता है। सकल और शुद्ध कर राजस्व के बीच अंतर में संग्रह लागत, केंद्र शासित प्रदेशों को सौंपा जाने वाला कर राजस्व और उपकर और अधिभार शामिल हैं।
      • राज्यों को शुद्ध कर राजस्व का 41% प्राप्त करने की सिफारिशों के बावजूद वास्तव में उन्हें सकल कर राजस्व का एक छोटा हिस्सा वर्ष 2015-16 में केवल 35% और वर्ष 2023-24 में 30% प्राप्त हुआ। 
  • केंद्र सरकार के राजस्व में वृद्धि : केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व 2015-16 में 14.6 लाख करोड़ से बढ़कर 2023-24 में 33.6 लाख करोड़ हो गया, जबकि इसी अवधि में केंद्रीय कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा 5.1 लाख करोड़ से बढ़कर 10.2 लाख करोड़ ही हुई है।
  • उपकर और अधिभार को शामिल नहीं किया जाना : केंद्र सरकार की सकल कर प्राप्तियों का लगभग 23% उपकर और अधिभार से आता है, जो विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं हैं।
    • 2024-25 के बजट में, केंद्र सरकार का कुल कर राजस्व (gross tax revenue) 38.8 लाख करोड़ है, लेकिन राज्यों को केवल 32% प्राप्त होता है, जो अनुशंसित 41% से कम है।
  • अनुदान सहायता में कमी : राज्यों को सहायता अनुदान 2015-16 में 1.95 लाख करोड़ से घटकर 2023-24 में 1.65 लाख करोड़ हो गया।
    • 15वें एफसी के अनुसार, विभिन्न राज्यों को राजस्व घाटा, क्षेत्र-विशिष्ट और राज्य-विशिष्ट अनुदान के साथ-साथ स्थानीय निकायों को भी अनुदान दिया जाता है, जो राज्यों की जनसंख्या और क्षेत्रफल के आधार पर दिया जाता है।
  • राज्यों को रिटर्न में भिन्नता : राज्यों से करों के रूप में योगदान किए गए प्रत्येक रुपए के बदले में राज्यों को मिलने वाली राशि में उल्लेखनीय असमानता है। 
    • उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की तुलना में औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों को उनके योगदान के लिए एक रुपये से भी कम मिलता है।
  • दक्षिणी राज्यों की हिस्सेदारी में कमी : पिछले छह वित्त आयोगों में, दक्षता की तुलना में समानता और जरूरतों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के मानदंडों के कारण दक्षिणी राज्यों के लिए विभाज्य पूल में हिस्सेदारी कम हो रही है। 
  • व्यय का केंद्रीकरण : 2015-16 और 2023-24 के बीच केंद्र सरकार ने केंद्रीय क्षेत्रक योजना और केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर खर्च क्रमशः 2.04 लाख करोड़ से 4.76 लाख करोड़ और 5.21 लाख करोड़ से 14.68 लाख करोड़ तक बढ़ा दिया, जिससे राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता कम हुई है। 

वित्तीय संघवाद में पारदर्शिता के लिए सुझाव  

  • विभाज्य पूल में उपकर और अधिभार को शामिल करना : वर्तमान में, उपकर और अधिभार राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है। इन्हें विभाज्य पूल में शामिल करने से राज्यों के लिए उपलब्ध धन में वृद्धि होगी।
    • साथ ही केंद्र को कर स्लैब को अधिक तर्कसंगत बनाकर लगाए गए विभिन्न उपकर और अधिभार को भी धीरे-धीरे बंद करना चाहिए।
  • दक्षता मानदंड को अधिक महत्व : क्षैतिज हस्तांतरण में दक्षता मानदंड का महत्व बढ़ाया जाना चाहिए। इससे राज्यों को अपनी कर संग्रहण प्रणाली में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
    • राज्यों के सापेक्ष जीएसटी योगदान को आगामी वित्त आयोग की सिफारिशों में उपयुक्त भार प्रदान करके एक मानदंड के रूप में शामिल किया जा सकता है।
  • वित्त आयोग में राज्यों का प्रतिनिधित्व :  जीएसटी परिषद के समान, वित्त आयोग के गठन और कामकाज में राज्यों की भागीदारी के लिए एक अधिक औपचारिक व्यवस्था पर विचार किया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष 

राज्य लगभग 40% राजस्व उत्पन्न करते हैं और लगभग 60% व्यय वहन करते हैं। वित्त आयोग और उसकी सिफारिशें इस असंतुलन का आकलन करने और एक निष्पक्ष साझाकरण तंत्र का प्रस्ताव करने के लिए हैं। अतः राजस्व साझा करते समय समानता और संघवाद के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए उपर्युक्त सुझावों पर विचार किया जा सकता है।

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