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कफाला प्रणाली एवं प्रवासी श्रमिकों के अधिकार

चर्चा में क्यों?

  • कुवैत के अल-अहमदी नगरपालिका के मंगाफ इलाके में एक इमारत में आग लगने से 41 भारतीय कामगारों की मृत्यु हो गई। 
  • ये सभी भारतीय कामगार खाड़ी देशों में प्रचलित 'कफाला प्रणाली' के तहत अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कुवैत गए हुए थे।

क्या है कफाला प्रणाली 

  • 'कफ़ाला' प्रणाली एक कानूनी ढाँचा है जो विदेशी श्रमिकों और उनके स्थानीय प्रायोजक या कफ़ील के बीच संबंधों को परिभाषित करती है।
  • यह कानूनों और प्रथाओं का एक ऐसा समूह जो यह सुनिश्चित करता है कि राज्य और नियोक्ता प्रवासी श्रमिकों के ऊपर संपूर्ण नियंत्रण रखते हो।
  • यह व्यवस्था नियोक्ताओं को अपने कामगारों पर असीमित अधिकार देती है जिससे शोषण और अमानवीय व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
  • इसका उपयोग सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत और ओमान में विदेशी श्रमिकों के लिए किया जाता है।
    • जॉर्डन, लेबनान और इराक इस प्रणाली का पालन नहीं करते हैं।
  • वर्तमान में कुवैत में 10 लाख भारतीय श्रमिक हैं जो कुवैत के कुल कार्यबल का लगभग 30% है। 
    • कुवैत में ज़्यादातर विदेशी श्रमिक तेल रिफाइनरियों, सड़क निर्माण, भवन निर्माण और होटलों में काम करते हैं।

प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों का हनन 

  • खाड़ी देशों में कफाला प्रणाली श्रम मंत्रालयों के बजाय आंतरिक मामलों के मंत्रालयों के अधिकार क्षेत्र में आती है, इसलिए श्रमिकों को मेजबान देश के श्रम कानून के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिलती है। 
    • यह उन्हें शोषण के प्रति संवेदनशील बनाता है और उन्हें श्रम विवाद प्रक्रिया में प्रवेश करने या यूनियन में शामिल होने जैसे अधिकारों से वंचित करता है। 
  • श्रमिकों के रोजगार और निवास वीजा से जुड़े होने के कारण केवल प्रायोजक ही उन्हें नवीनीकृत या समाप्त कर सकते हैं। 
    • इसलिए यह प्रणाली राज्य के बजाय निजी नागरिकों को श्रमिकों की कानूनी स्थिति पर नियंत्रण प्रदान करती है, जिससे शक्ति असंतुलन उत्पन्न होने से प्रायोजक लाभ उठाते हैं।
  • कामगारों को नौकरी बदलने, रोज़गार समाप्त करने और मेज़बान देश में प्रवेश करने या बाहर निकलने के लिए अपने प्रायोजक की अनुमति की ज़रूरत होती है। 
    • बिना अनुमति के कार्यस्थल छोड़ना एक अपराध होता है जिसके परिणामस्वरूप कामगार की कानूनी स्थिति समाप्त हो सकती है और संभावित रूप से कारावास या निर्वासन हो सकता है। 
  • शोषण से बचाव के लिए कामगारों के पास बहुत कम सहारा होता है, और कई विशेषज्ञ तर्क देते हैं कि यह व्यवस्था आधुनिक गुलामी को बढ़ावा देती है।

प्रवासी श्रमिकों के समक्ष चुनौतियां 

  • प्रतिबंधित आवागमन:नियोक्ता नियमित रूप से पासपोर्ट, वीजा और फोन जब्त कर लेते हैं और घरेलू कामगारों को उनके घरों तक ही सीमित रखते हैं। 
  • स्वास्थ्य खतरें:गैर-घरेलू कामगार प्राय: भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों  में रहते हैं, जिससे उन्हें बीमारियों के संक्रमण का अधिक जोखिम होता है।
  • ऋण बंधन: अधिकांश मेज़बान देशों में नियोक्ताओं को भर्ती शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, लेकिन प्राय: यह शुल्क श्रमिकों पर डाल दिया जाता है, जो इसे चुकाने के लिए ऋण लेते हैं या भर्तीकर्ता के ऋणी हो जाते हैं। 
  • बंधुआ मजदूरी:श्रमिकों की भर्ती करते समय भर्तीकर्ताओं द्वारा धोखा या जबरदस्ती बंधुआ मजदूरी का रूप ले सकती है। अनुबंध प्रतिस्थापन एक आम रणनीति है जिसमें श्रमिक स्थानीय भाषा का ज्ञान न होने के कारण  अनजाने में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर करके खराब वेतन और काम करने की स्थिति को स्वीकार कर लेते हैं।
  • वीज़ा ट्रेडिंग:प्रायोजक कभी-कभी आधिकारिक प्रायोजक बने रहते हुए किसी कर्मचारी का वीज़ा अवैध रूप से दूसरे नियोक्ता को बेच देते हैं। इससे नया नियोक्ता मूल नियोक्ता जैसी शर्तों का पालन न करके अलग तरह के काम की मांग या कम वेतन दे सकता है।
  • अनियमित निवास स्थिति: प्रवासी श्रमिक देश में कानूनी रूप से रहने के लिए प्रायोजकों पर निर्भर रहते हैं क्योंकि प्रायोजक किसी भी कारण से उनकी स्थिति को अमान्य कर सकते हैं।

आगे की राह 

  • आलोचकों ने इस प्रणाली को " आधुनिक गुलामी "  के रूप में संदर्भित किया है यह आवश्यक है कि भारत को त्वरित कार्यवाही करते हुए इस प्रकार के श्रमिकों को खाड़ी देशों में जाने से रोकना चाहिए। 
  • कुवैत अग्निकांड के बाद किए गए वादों की जांच की जानी चाहिए, क्योंकि प्रवासी श्रमिक आबादी के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की तुलना में श्रमिकों को प्रतिस्थापित करना कहीं अधिक आसान है।
  • भारत को इस गुलामी की प्रणाली के प्रति श्रमिकों को जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे भारतीय श्रमिक विदेश में नौकरी के प्रलोभन में गुमराह न हो सके और अपने अधिकारों की सुरक्षा स्वयं कर सके। 
  • किसी भी मेजबान देश ने ILO के घरेलू श्रमिक सम्मेलन की पुष्टि नहीं की है, जो हस्ताक्षरकर्ताओं को न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने, जबरन श्रम को खत्म करने और अन्य सुरक्षाओं के साथ-साथ सभ्य कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध करता है।
  • ऐसे में यह समय की मांग है कि भारत सहित अन्य देश खाड़ी देशों पर घरेलू श्रमिक अभिसमय की पुष्टि करने पर बल दें।
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