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मुक्त और स्वतंत्र विश्व की आवश्यकता

(निबंध तथा मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 1 : विश्व के इतिहास में 18वीं सदी तथा बाद की घटनाएँ, विश्व युद्ध, राजनीतिक दर्शन जैसे साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद आदि, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह)

संदर्भ

विगत कुछ समय से 'मुक्त और स्वतंत्र विश्व' (The Free World) जैसे विचार अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से गायब होने लगे हैं। ऐसे में, इनकी उपादेयता पर पुनः चर्चा होने लगी है।

मुक्त विश्व की परिकल्पना

  • द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर विभिन्न यूरोपीय, उत्तरी अमेरिकी और अन्य लोकतांत्रिक देशों ने सोवियत संघ के स्टालिन से ‘सैन्य और राजनीतिक खतरा’ महसूस किया।
  • इन देशों ने स्वयं के लिये 'पश्चिम' (The West) शब्द का प्रयोग किया।एक अमेरिकी राजनयिक जॉर्ज एफ. केनन ने वर्ष 1946 में मॉस्को से भेजे गए अपने प्रसिद्ध 'लॉन्ग टेलीग्राम' में इस शब्द का प्रयोग किया था। इसमें उन्होंने पश्चिमी देशों की स्वतंत्रता और जीवन शैली को एक ऐसी प्रणाली (देश) से खतरा बताया था, जिसका दृष्टिकोण ‘खुले व मुक्त पूँजीवादी’ समाज से मेल नहीं खाता था।
  • उस दौर में ‘मुक्त विश्व’ एक अतिप्रचलित शब्द था। इसके पालनकर्ता देश आपसी सहयोग करते हुए बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा उदार व लोकतांत्रिक शासनव्यवस्था का पालन करते थे।

विशेषताएँ

  • इन देशों के नागरिक शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव द्वारा सरकार बदल सकते हैं। यहाँ बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों का सम्मान, संविधान के माध्यम से कानून के शासन की स्थापना, ‘जाँच और संतुलन’ आधारित शासनव्यवस्था, प्रेस की स्वतंत्रता, सभी धर्मों का सम्मान आदि का अस्तित्व रहता है। इन प्रगतिशील मानदंडों ने लोगों की उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया तथा धीरे-धीरे ये देसा समृद्ध होने लगे।
  • साझा सिद्धांतों वाले देशों के इस गठबंधन के स्वीकृत नेता अमेरिकी राष्ट्रपति थे।अमेरिका ने फासीवाद, नाजीवाद और क्रूर राष्ट्रवाद पर जीत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद एक अंतर्राष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ और इसके अनुपालक देश शांतिपूर्वक विकास करने को प्रेरित हुए।
  • जब वर्ष 1989 में बर्लिन की दीवार गिराई गई, तब उदारवादी लोकतंत्रों (मुक्त दुनिया) में इस बात पर सहमति थी कि सोवियत साम्यवाद का पतन उनकी जीत का संकेत है।

वर्तमान चुनौतियाँ

  • वर्तमान में, उदार लोकतंत्र अपने मूल्यों की रक्षा करने और विश्व व्यवस्था के पुनर्निर्माण में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसमें चीन और रूस से उत्पन्न चुनौतियाँ प्रमुख हैं।
  • पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कथित तौर पर अपने सहयोगियों और सार्वभौमिक मानवाधिकारों में विश्वास नहीं करते थे। हालाँकि उन्होंने चीन के बुरे व्यवहार को बेहतर ढंग से उजागर किया, परंतु अमेरिका के पारंपरिक दोस्तों का तिरस्कार व रूस की बर्बरता को नज़रअंदाज भी किया।
  • इसके अतिरिक्त, वे स्वतंत्रता और लोकतंत्र का ऐसा कोई भी दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में विफल रहे, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बन सके। यह वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जो बाइडन’ के समक्ष उपस्थित चुनौतियों में से एक है।

उपाय

  • एक रचनात्मक व शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण के लिये अमेरिका को सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहिये तथा प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिये अडिग रहना चाहिये।
  • बाइडन को इस विश्व अभियान की शुरुआत अमेरिका से ही करनी होगी। महामारी को नियंत्रित करना, अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना, नस्लीय विभाजन समाप्त करना आदि पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्या से निपटने के लिये चीन और रूस के साथ मिलकर काम करना होगा, परंतु अमेरिका इनसे निवेदन नहीं करना चाहता है।
  • ‘चीन’ गरीब देशों में विभिन्न परियोजनाओं को वित्तपोषित कर उन्हें भारी ऋण जाल में फँसा रहा है तथा उन पर दबाव बना रहा है। ऐसे में, अमेरिका दुनिया के गरीब देशों को कोविड वैक्सीन और सतत् विकास में सहायता प्रदान करके उनकी मदद कर सकता है। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर असमानता का उन्मूलन करने, निष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहन देने व मानवाधिकारों का संरक्षण करने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।
  • सबसे बढ़कर, उदार लोकतांत्रिक देशों को उन देशों की सहायता भी करनी चाहिये, जिन पर चीन और रूस दबाव बना रहे हैं।इन उपायों के माध्यम से स्वतंत्रता को सार्वभौमिक रूप से लागू किया जा सकता है तथा स्वतंत्रत विश्व की संकल्पना को साकार किया जा सकता है।
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