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जलवायु अनुकूल खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : पर्यावरण प्रभाव का आकलन, खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन)

संदर्भ 

जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में कृषि एवं जलीय खाद्य उत्पादन को काफ़ी प्रभावित किया है। इससे निपटने के लिए लचीली खाद्य प्रणालियाँ विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण रणनीतियों एवं प्रथाओं की आवश्यकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संधारणीयता व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

खाद्य प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

  • प्रतिकूल दशाओं का विकास : जलवायु परिवर्तन से मृदा गुणवत्ता, वर्षा प्रतिरूप, कीट प्रबंधन, मौसमी विकास चक्र, भूमि क्षरण एवं जैव-विविधता में कमी आई है। 
  • नई समस्याएँ : जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों और उनके उत्पादों को विभिन्न बीमारियों व कीटों की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इनके प्रबंधन में अत्यधिक रसायनों के प्रयोग से नई बीमारियां, प्रदूषण, सुपरबग आदि समस्याएँ जन्म ले रही हैं।   

JALWAYU

  • आपदा में वृद्धि : जलवायु परिवर्तन से सूखा, बाढ़ एवं हीटवेव जैसी जलवायु-संबंधी घटनाओं की आवृत्ति व तीव्रता में वृद्धि हुई है। इसको देखते हुए जलवायु लचीलापन में सुधार के लिए खाद्य प्रणालियों में तत्काल संशोधन की आवश्यकता है। 
  • नई प्रजातियों का प्रवेश : जलवायु परिवर्तन के कारण स्थानिक प्रजातियों के स्थान पर अन्य प्रजातियों का व्यापक उपयोग किया जाने लगता है जो स्थानीय जैव-विविधता एवं पारितंत्र को प्रभावित करती है।  
  • ऐसे विकासशील देशों में जहाँ पोषण संबंधी कमियाँ व्याप्त हैं और वर्षा आधारित कृषि को प्राथमिकता दी जाती है वहाँ जलवायु परिवर्तन व खाद्य सुरक्षा के बीच संबंध तेज़ी से स्पष्ट होते जा रहे हैं।

जलवायु अनुकूल खाद्य प्रणालियों के समक्ष चुनौतियाँ 

  • छोटे एवं सीमांत किसानों की वित्त व प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच
  • हितधारकों के बीच जागरूकता एवं क्षमता की कमी
  • प्रतिस्पर्धी भूमि-उपयोग प्राथमिकताएँ
  • राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर नीतिगत अंतराल 

जलवायु अनुकूल खाद्य प्रणालियों के विकास के लिए आवश्यक उपाय  

टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना

  • जलवायु-लचीली खाद्य प्रणालियों को विकसित करने की एक प्रमुख रणनीति टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाना है। 
  • इस दृष्टिकोण में फसल चक्र, बहु-कृषि एवं कवर फसल जैसी तकनीकें शामिल हैं जो मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ ही कीटों व बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता को कम करती हैं। 
  • एग्रोइकोलॉजी : यह पारिस्थितिकी सिद्धांतों को खेती के तरीकों में शामिल कर जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ावा देती है। 
  • संरक्षण कृषि : यह मृदा आवरण को बनाए रखने, मृदा अवक्रमण को कम करने और पौधों की प्रजातियों में विविधता पर बल देती है। 
    • संरक्षण कृषि मृदा संरचना में सुधार करके उसकी जल प्रतिधारण क्षमता में वृद्धि करती है और चरम जलवायु के प्रति लचीलापन बढ़ाती है। 
  • जैविक कृषि : यह सिंथेटिक या कृत्रिम आगतों (Inputs) के उपयोग से बचती है और प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए मृदा उर्वरता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का समर्थन करती है। 
  • इससे यह जलवायु लचीलेपन के लिए एक टिकाऊ विकल्प बन जाती है।

फसल एवं पशु विविधता

  • लचीलापन बढ़ाने के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण रणनीति फसलों एवं पशुओं में विविधता लाना है। जलवायु परिवर्तन कीटों एवं बीमारियों के पैटर्न में परिवर्तन कर सकता है, जिससे मोनोकल्चर विशेष रूप से अतिसंवेदनशील हो जाता है। 
  • विविध कृषि प्रणालियों में विभिन्न प्रकार की फसलें एवं पशुधन नस्लें शामिल होती हैं, जो जोखिमों को कम करने में मदद करती हैं। 
  • फसल विविधीकरण कुल फसल विफलता के जोखिम को कम करता है और समग्र कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है। 
  • जलवायु-लचीली फसल किस्में एवं नस्लें गर्मी, सूखे व बाढ़ जैसी चरम मौसम स्थितियों का सामना करने के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित होती हैं। 
  • उप-सहारा अफ्रीका के एक अध्ययन के अनुसार, विविध कृषि प्रणालियाँ बदलती जलवायु परिस्थितियों में उत्पादकता बनाए रखने में मदद करती हैं, जिससे सतत खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित होती है।

कुशल जल प्रबंधन 

  • कुशल जल प्रबंधन के तहत ड्रिप सिंचाई जैसी पद्धतियां सीधे पौधों की जड़ों तक पानी पहुँचाकर जल के अपव्यय को कम करती हैं। 
  • शुष्क अवधि के दौरान उपयोग के लिए वर्षा जल संचयन एक प्रभावी तरीका है।

जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों का उपयोग

  • कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने और लचीलापन बढ़ाने के लिए जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। 
  • सटीक कृषि (Precision agriculture), रिमोट सेंसिंग एवं डाटा एनालिटिक्स किसानों को सूचित निर्णय लेने, संसाधन उपयोग को अनुकूलित करने व उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम बनाते हैं। 
  • मोबाइल एप्लिकेशन और डिजिटल उपकरण वास्तविक समय के मौसम पूर्वानुमान, कीट अलर्ट एवं सर्वोत्तम अभ्यास अनुशंसाएँ प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने में सहायता मिलती है।
  • सटीक कृषि फसल स्वास्थ्य, मृदा की स्थिति और मौसम के पैटर्न की निगरानी के लिए जी.पी.एस. एवं सेंसर का उपयोग करती है जिससे किसान पानी, उर्वरक व कीटनाशकों जैसे इनपुट को अधिक कुशलता से प्रयोग कर सकते हैं। 
  • सैटेलाइट इमेजरी जैसी रिमोट सेंसिंग तकनीकें बड़े क्षेत्रों की निगरानी, ​​तनाव संकेतों की शुरुआती पहचान और संभावित नुकसान को कम करने में मदद करती हैं।

वंचित समूहों में सामाजिक-आर्थिक लचीलापन बढ़ाना

  • इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं : 
    • जलवायु सूचना एवं प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों तक पहुँच प्रदान करना
    • बाज़ार पहुँच एवं मूल्य शृंखलाओं में सुधार करना 
    • किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल व बीमा योजनाओं को लागू करना 
    • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना 
    • समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना 

नवाचार को प्रोत्साहन

  • नवाचार के माध्यम से जलवायु-लचीली फसल किस्मों, जैव-सुदृढ़ीकरण, टिकाऊ जलीय कृषि व वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास बदलती जलवायु में खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। 
  • डिजिटल कृषि, ब्लॉकचेन तकनीक एवं डाटा एनालिटिक्स में प्रगति भी खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में लचीलापन व पारदर्शिता में सुधार के लिए नए अवसर प्रदान करती है।

प्रभावी नीति एवं शासन ढाँचा

  • जलवायु लचीलापन की दिशा में खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए  प्रभावी नीति एवं शासन ढाँचा आवश्यक हैं। इसके तहत मुख्यत: निम्न बिंदुओं को शामिल किया जाता है : 
    • कृषि नीतियों में जलवायु परिवर्तन संबंधी विचारों को एकीकृत करना
    • टिकाऊ भूमि उपयोग योजना को बढ़ावा देना
    • सब्सिडी एवं प्रोत्साहन के माध्यम से जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को प्रोत्साहित करना
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना 
  • सरकारों, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र एवं अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग समग्र व समावेशी रणनीतियों को लागू करने की कुंजी है।

आगे की राह  

  • खाद्य प्रणालियों को जलवायु लचीला बनाना अपेक्षाकृत जटिल है। इसके लिए अनुकूली कृषि पद्धतियों, तकनीकी नवाचार, सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण, जैव-विविधता संरक्षण व प्रभावी प्रशासन के संयोजन की आवश्यकता है। 
  • इन चुनौतियों का समाधान करके और अवसरों का लाभ उठाकर ऐसी लचीली खाद्य प्रणालियों का विकास हो सकता हैं जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करती हैं और भावी पीढ़ियों के लिए सतत विकास को बढ़ावा देती हैं।
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