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मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की आवश्यकता

संदर्भ

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के हालिया वैश्विक मूल्यांकन ने दुनिया के मैंग्रोव वनों के लिए एक गंभीर तस्वीर पेश की है। मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के सम्मिलित परिणामों से 50 प्रतिशत से अधिक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र ढहने के कगार पर हैं। वनों की कटाई और तटीय विकास गतिविधियों के कारण दक्षिण भारत में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के नष्ट होने का खतरा बहुत अधिक है।

आईयूसीएन मूल्यांकन के प्रमुख बिंदु

  • पारिस्थितिकी तंत्र की आईयूसीएन रेड लिस्ट (RLE) ने पहली बार वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का मूल्यांकन किया है, जिसमें चिंताजनक निष्कर्ष सामने आए हैं।
    • आईयूसीएन द्वारा किए गए इस मूल्यांकन में विश्व के 36 विभिन्न क्षेत्रों के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र की जांच की गई है। 
    • इसमें पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन पर आईयूसीएन आयोग, आईयूसीएन प्रजाति अस्तित्व आयोग और ग्लोबल मैंग्रोव एलायंस सहित विभिन्न संस्थानों के 250 से अधिक विशेषज्ञ शामिल थे।
  • मूल्यांकन में शामिल मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों में से आधे क्षेत्रों में नष्ट होने का खतरा है, जिनमें से लगभग 20% को उच्च जोखिम की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। 
    • इसमें दुनिया के शीर्ष दो मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों - 'वार्म टेम्प नॉर्थ वेस्ट अटलांटिक' और 'दक्षिण भारत, श्रीलंका और मालदीव' को गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है, जबकि पांच क्षेत्र संकटग्रस्त और 10 संवेदनशील श्रेणियों में हैं।
  • भारतीय मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को तीन भागों में बांटा गया है। अंडमान और बंगाल की खाड़ी को सबसे कम संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है और पश्चिम भारत सबसे कम चिंताजनक श्रेणी में हैं।
    • जबकि, दक्षिण भारत में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले कारक और प्रभाव 

  • दुनिया भर में मैंग्रोव पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए प्रमुख स्थानीय खतरों में शहरी, कृषि या औद्योगिक विस्तार के लिए मैंग्रोव जंगलों की कटाई शामिल है।  
  • तटीय क्षेत्रों में विकास, प्रदूषण और बांध निर्माण जैसी गतिविधियाँ बड़े स्तर पर मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं। 
    • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप चक्रवाती तूफानों की बढ़ती आवृत्ति और समुद्र-स्तर में वृद्धि हो रही है । समुद्र के स्तर में परिवर्तन से बाढ़ के पैटर्न और मैंग्रोव की संरचना और क्षेत्रफल में बदलाव हो रहा है।
    • ऐसा अनुमान है कि 33% मैंग्रोव प्रणालियां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से खतरे में हैं और समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण अगले 50 वर्षों में वैश्विक मैंग्रोव क्षेत्र का 25% हिस्सा जलमग्न हो जाएगा।
  • यदि हस्तक्षेप नहीं किया गया तो 2050 तक जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण 1.8 बिलियन टन संग्रहीत कार्बन की हानि हो सकती है तथा तटीय बाढ़ के कारण 2.1 मिलियन लोगों की जान जा सकती है।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र और उपयोगिता

  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र 150,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है, जो मुख्य रूप से दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और गर्म समशीतोष्ण तटों पर फैला हुआ है। दुनिया के लगभग 15% तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव वन पाए जाते हैं।
  • ये अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र जैव-विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं, स्थानीय समुदायों को आजीविका प्रदान करते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करते हैं। 
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र लगभग 11 बिलियन टन कार्बन को सोखता है, जो तुलनात्मक आकार के उष्णकटिबंधीय जंगलों द्वारा संगृहीत कार्बन की मात्रा का लगभग तीन गुना है। 
  • यह 15.4 मिलियन लोगों की सुरक्षा भी करता है और प्रतिवर्ष 126 मिलियन मछली पकड़ने के दिनों का समर्थन करता है, जो स्थानीय समुदायों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
  • स्वस्थ मैंग्रोव समुद्र के स्तर में वृद्धि का बेहतर ढंग से सामना करने में सक्षम हैं और तूफान, टाइफून और चक्रवातों के प्रभावों से अंतर्देशीय सुरक्षा प्रदान करते हैं। 
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र लोगों को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने की अपनी क्षमता में असाधारण हैं, जिनमें तटीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण, कार्बन भंडारण और पृथक्करण और मत्स्य पालन के लिए समर्थन शामिल हैं।

मैंग्रोव संरक्षण के लिए वैश्विक पहल

  • मैंग्रोव ब्रेकथ्रू : इसे संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय जलवायु चैंपियन्स और ग्लोबल मैंग्रोव एलायन्स (GMA) द्वारा मिस्र के शर्म अल-शेख में UNFCCC COP27 के दौरान प्रस्तुत किया गया था। 
    • गौरतलब है कि ग्लोबल मैंग्रोव एलायन्स (GMA) की स्थापना 2018 में विश्व महासागर शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • मैंग्रोव ब्रेकथ्रू के लक्ष्य : 
    • मैंग्रोव की क्षति को रोकना
    • वर्तमान के नुकसान का आधा हिस्सा बहाल करना
    • वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव का संरक्षण दोगुना करना
    • सभी मौजूदा मैंग्रोव के लिए टिकाऊ दीर्घकालिक वित्त सुनिश्चित करना
  • जलवायु के लिए मैंग्रोव गठबंधन (Mangrove Alliance for Climate : MAC)
    • मिस्र में COP-27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ने जलवायु के लिए मैंग्रोव गठबंधन की घोषणा की। 
    • उद्देश्य : जैव विविधता को बढ़ावा देना और प्रकृति-आधारित समाधानों पर प्रकाश डालने के वैश्विक प्रयास करना 

मैंग्रोव संरक्षण के लिए भारत की पहल

    • भारत सरकार ने मैंग्रोव वृक्षारोपण के लिए केंद्रीय बजट 2023 में ‘मिष्टी योजना (MISHTI Scheme)’ की घोषणा की है।  इस योजना का उद्देश्य भारत के समुद्र तट के साथ-साथ लवणीय भूमि पर मैंग्रोव वृक्षारोपण की सुविधा प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों का संरक्षण एवं प्रबंधन पर जोर दिया जा जा रहा है।

मैंग्रोव संरक्षण के लिए आवश्यक सुझाव 

  • सूक्ष्म सामाजिक-आर्थिक स्थानिक डाटा के द्वारा बाधाओं की पहचान करना।
  • निगरानी और डाटा संग्रह के लिए प्रोटोकॉल के द्वारा मैंग्रोव पुनर्वास और संरक्षण को प्रोत्साहित करना।
  • क्षेत्र और नागरिक-विज्ञान डाटा का एकीकरण करना।
  • मैंग्रोव के विस्तार, स्वास्थ्य और खतरों पर वास्तविक समय डाटा एकत्र करना।
  • संरक्षण और पुनर्वास को प्राथमिकता देना।
  • पुनर्वास प्रभावशीलता की निगरानी पर ध्यान देना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्य निर्धारण में वृद्धि करना।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की धारणाओं को उजागर करना।

निष्कर्ष

डाटा और रिमोट-सेंसिंग दृष्टिकोण तेजी से विकसित हुए हैं, जिससे दुनिया के मैंग्रोव की स्थिति का अभूतपूर्व आकलन संभव हो पाया है। ओपन-एक्सेस डेटासेट का यह प्रसार वैश्विक और स्थानीय स्तरों पर मैंग्रोव नेटवर्क और हितधारकों के बीच बेहतर सहयोग के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। अत: सर्वोत्तम उपलब्ध डेटा को कुशलतापूर्वक साझा करके जोखिम को कम किया जा सकता है और साझा प्राथमिकताओं की दिशा में संसाधनों को एकत्र करने के अवसरों की पहचान करने में मदद मिल सकती है।

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