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गंभीर होती हेट स्पीच की समस्या

(प्रारंभिक परीक्षा- सामयिक राष्ट्रीय घटनाएँ, लोकनीति; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1, 2 व 3 : भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती)

संदर्भ 

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली तथा हरिद्वार में नफरत फ़ैलाने वाले भाषणों (हेट स्पीच/द्वेषपूर्ण भाषणों) से संबंधित मामले की सुनवाई पर सहमति जताई है। साथ ही, न्यायालय ने गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस एवं उत्तराखंड पुलिस से इस मामले पर हलफनामा दायर करने को कहा है। उच्चतम न्यायालय ने हेट स्पीच से संबंधित कानूनों की समीक्षा करने तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों को हेट स्पीच के घटकों की व्याख्या करने के लिये कहा है।

हेट स्पीच को लेकर अस्पष्टता

  • भारतीय कानूनी ढाँचे में हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है। इसके स्वरूप में भिन्नता होने के कारण इसके लिये एक मानक परिभाषा तय करना भी कठिन है।  
  • ‘अमीश देवगन बनाम भारत संघ (2020) मामले’ में उच्चतम न्यायालय ने ‘हेट-स्पीच’ को चिह्नित करने के लिये एक अन्य मानदंड जोड़ दिया है। न्यायालय के अनुसार, ‘अपनी पहुँच, प्रभाव और शक्ति को ध्यान में रखते हुए, जो प्रभावशाली व्यक्ति सामान्य जनता या संबद्ध विशिष्ट वर्ग के लिये कार्य करते हैं, उन्हें अधिक ज़िम्मेदार होना पड़ता है।
  • हालाँकि, प्रभावशाली व्यक्तियों के लिये एक उच्च और अलग मानक दो भिन्न-भिन्न व्याख्याओं को जन्म दे सकता है, जिससे राज्य अपनी सुविधानुसार व्याख्याएँ कर सकता है।

हेट-स्पीच मामले में न्यायालय की विसंगति

  • अमीश देवगन मामले से न्यायिक मार्गदर्शन के बावजूद हेट स्पीच की व्याख्या के बारे में अनिश्चितता बढ़ गई है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने ‘मारिदास बनाम मद्रास राज्य (2021) मामले’ में हेट स्पीच से संबंधित एफ.आई.आर को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यूट्यूबर संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सुरक्षा का हकदार है। 
  • इसके विपरीत, मद्रास उच्च न्यायालय ने ‘फादर पी. जॉर्ज पोन्नैया बनाम पुलिस निरीक्षक (2022) मामले’ में याचिकाकर्ता को प्रभावशाली व्यक्ति मानकर किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी।
  • न्यायपालिका के अलग-अलग फैसले हेट स्पीच को परिभाषित करने में कानूनी मानकों की कमी को उजागर करते हैं, विशेष रूप से डिजिटल माध्यम से संबंधित मामलों में। 

हेट स्पीच से संबंधित मामले

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘हेट स्पीच बनाम कर्नाटक राज्य (2020)’ मामले में यह विचार प्रकट किया कि भारतीय दंड संहिता उन भाषणों को अवैध घोषित करती है जिनका उद्देश्य विद्वेष को बढ़ावा देना या विभिन्न वर्गों के मध्य सद्भाव को प्रभावित करना है।
  • ‘प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (2014) मामले’ में उच्चतम न्यायालय ने लक्षित किये जाने वाले समुदाय द्वारा प्रतिक्रिया देने की क्षमता और हेट स्पीच के प्रोत्साहन के बीच संबंध को रेखांकित किया।
  • ‘जी. थिरुमुरुगन गांधी बनाम मद्रास राज्य’ (2019) मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने विचार व्यक्त किया कि घृणास्पद भाषण विभिन्न वर्गों के मध्य वैमनस्य का कारण बनते हैं और लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी जिम्मेदारी को ध्यान में रखना चाहिये।
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, इस तरह के प्रावधानों का उद्देश्य सांप्रदायिक और अलगाववादी प्रवृत्तियों की जाँच करना तथा बंधुत्व की रक्षा करना है ताकि व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित की जा सके।

कानूनी प्रावधान

वर्तमान विधायी व्यवस्था में ‘हेट स्पीच’ के लिये कोई विशेष कानून नहीं है। हालाँकि, आई.पी.सी. की कुछ धाराओं का प्रयोग इसके लिये किया जा सकता है-

  • 153ए- विभिन्न समूहों के मध्य विद्वेष को बढ़ावा देने के लिये दंड का प्रावधान 
  • 153बी- राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करने वाले आरोपों तथा दावों के लिये दंड का प्रावधान 
  • 505- सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने वाले अफवाहों और समाचारों के लिये दंड का प्रावधान 
  • 295ए- जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से किसी वर्ग के धार्मिक भावनाओं और विश्वासों को आहत करना या ऐसा करने के प्रयास को अपराध माना जाता है।

नीति-निर्देश 

  • केंद्रीय विधि आयोग ने अपनी 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच और उससे संबंधित दंड के लिये आई.पी.सी. में दो नई धाराओं (153सी और 505ए) को सम्मिलित करने की सिफारिश की है।
  • उल्लेखनीय है कि धारा 153सी का मसौदा हेट स्पीच से संबंधित अपराधों को कवर करने और धारा 505ए दंड के प्रावधानों से संबंधित थे।
  • इसके अलावा, वर्ष 2015 में गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने ऑनलाइन हेट स्पीच से निपटने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में अलग और विशिष्ट प्रावधानों को शामिल करने की सिफारिश की थी।

निष्कर्ष 

  • वर्तमान में हेट स्पीच के मामलों में अपराधी को हिरासत में लिये जाने के बावजूद भी सांप्रदायिक विद्वेष का मामला डिजिटल या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अनंत काल तक बना रहता है।
  • हेट स्पीच का सामना करने के लिये सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय मानकों से सीखते हुए कानूनी प्रावधान की आवश्यकता है, क्योंकि स्पष्ट विधायी मार्गदर्शन के आभाव में न्यायिक परिणामों में विसंगति देखी जा रही है।
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