(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)
संदर्भ
प्रमुख पश्चिमी देशों के साथ भारत का जुड़ाव हिंद-प्रशांत सामरिक दृष्टिकोण में भारत की बढ़ती केंद्रीय स्थिति की ओर संकेत करता है। यहाँ तक कि वे देश जिन्होंने अब तक अपने क्षेत्रीय सामरिक दृष्टिकोण में अधिक रुचि नहीं दिखाई है, वे भी अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रुचि लेने लगे हैं और भारत तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं।
पारंपरिक गठबंधन में बदलाव की आवश्यकता
- हिंद-प्रशांत मामलों में भारत के प्रभाव में वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब यह स्पष्ट हो रहा है कि जटिल क्षेत्रीय भू-राजनीतिक समस्याओं को गैर-लचीले और पारंपरिक गठबंधन ढाँचे द्वारा पर्याप्त रूप से हल नहीं किया जा सकता है।
- यह पहलू हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भौगोलिक विशालता और चीन से उत्पन्न चुनौतियों की गंभीरता के संदर्भ में और भी अधिक स्पष्ट होता है। इस क्षेत्र में समस्याओं को प्रभावी ढंग से हल करने में सक्षम बहुपक्षीय संगठनों का भी अभाव है।
उद्देश्य उन्मुख भागीदारी
- भारतीय विदेश नीति रणनीतिक रूप से जितनी स्पष्ट होती जाती है, चीन के विरुद्ध एक नए प्रकार का दवाब आकार लेता है और क्वाड जैसी पहलों में नई गति आती है।
- समान मूल्यों को साझा करने वाले और एक जैसी चुनौतियों का सामना करने वाले देश उद्देश्य-उन्मुख भागीदारी के लिये एक साथ आ रहे हैं। ऐसा करके ये देश समुद्री सुरक्षा से लेकर महामारी तक के विरुद्ध एक समन्वित प्रतिक्रिया द्वारा एकसमान चुनौतियों का समाधान संभव बना रहे हैं।
- प्रत्येक भागीदार देश की राजनीतिक स्वायत्तता से समझौता किये बिना मज़बूत पारस्परिक व्यापार संबंधों को सुदृढ़ और विकसित करना भी इसमें शामिल है।
चीन की ‘रणनीतिक प्रतिस्पर्धी पहल’
- प्रधानमंत्री मारियो ड्रैगी के नेतृत्व वाली इतालवी सरकार ने अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर फिर से ध्यान देना शुरू कर दिया है। साथ ही इटली, चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धी पहलों से उत्पन्न जोखिमों पर अधिक मुखर हो गया है।
- हाल ही में श्री ड्रैगी ने चीन के प्रतिस्पर्धी आचरणों को ‘अनुचित’ बताते हुए यूरोपीय संघ को मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चीन की मुखर आलोचना करने की बात की है।
समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी का गठन
- हाल ही में, इटली ने भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रवेश करने का संकेत दिया है, क्योंकि इटली ने भारत और जापान से त्रिपक्षीय साझेदारी में शामिल होने की माँग की है।
- यह पहल वर्षों से इस क्षेत्र के भू-राजनीतिक मामलों में इटली की सापेक्षिक रूप से कम अनुपस्थिति के बाद आई है, क्योंकि अब वह भारत के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखते हुए अटलांटिक और यूरोपीय पहलुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहता है।
- भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता में रुचि रखने वाले समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी बनाने को लेकर बहुत उत्सुक है। उल्लेखनीय है कि इतालवी दूतावासों ने भारत और जापान में ‘भारत-इटली-जापान त्रिपक्षीय सम्मलेन’ आयोजित किया है।
- हिंद-प्रशांत को स्वतंत्र और मुक्त बनाने एवं इसके निवासियों के कल्याण की ज़िम्मेदारी इस क्षेत्र के भीतर व बाहर समान विचारधारा वाले देशों की है।
स्पष्ट रणनीति की ज़रूरत
- इटली द्वारा प्रारंभ इस त्रिपक्षीय सहयोग को और अधिक विकसित करने की आवश्यकता है। इटली को एक स्पष्ट हिंद-प्रशांत रणनीति तैयार करनी चाहिये, जो अपने उद्देश्यों तथा उसको प्राप्त करने के साधनों व पहलों को इंगित करे।
- यूरोपीय संघ के माध्यम से राजनयिक विशेषाधिकार देने की इटली की प्रवृत्ति यूरोपीय संघ-भारत रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करने का एक साधन सिद्ध हो सकती है।
त्रिपक्षीय सहयोग का महत्त्व
- भारत, इटली और जापान की त्रिपक्षीय पहल इन तीन देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने व मज़बूत करने के साथ-साथ भारत-इटली द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करने के लिये एक बेहतर मंच साबित हो सकती है।
- इटली व जापान के संबंध ऐतिहासिक रूप से मज़बूत हैं तथा भारत व जापान के संबंध स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत का एक रणनीतिक स्तंभ हैं। इस त्रिपक्षीय सहयोग मंच में आर्थिक, सुरक्षा और राजनीतिक आयाम शामिल होने चाहिये।
- अक्तूबर में रोम में अगला जी-20 शिखर सम्मेलन होना है, जो संस्थागत स्तर पर आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर त्रिपक्षीय समन्वय को आगे ले जाने का सही अवसर होना चाहिये। वर्ष 2023 में भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा। इस क्षेत्र में त्रिपक्षीय सहयोग को मज़बूत करने के लिये तीनों देशों को एक साझा आर्थिक और रणनीतिक एजेंडे को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
संभावनाएँ
- भारत, इटली और जापान के बीच एक रणनीतिक त्रिपक्षीय साझेदारी में मध्यम से लेकर लंबी अवधि तक काफी संभावनाएँ हैं। इनकी सुसंगत आर्थिक प्रणालियाँ वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्गठन में अच्छा व लाभकारी योगदान दे सकती हैं।
- सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत-जापान हिंद-प्रशांत साझेदारी में इटली को आसानी से शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इटली पहले से ही पश्चिमी हिंद महासागर में मौजूद है जहाँ वह सोमालिया के तट पर समुद्री डकैती विरोधी अभियानों में सलंग्न है।
निष्कर्ष
सभी पक्षों में एक स्पष्ट राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। इटली को मुक्त और स्वतंत्र हिंद-प्रशांत के रखरखाव की दिशा में बड़ी भूमिका निभाने में अपने हितों को पहचानना होगा। भारत और इटली के मध्य मज़बूत सामरिक संबंध इस लक्ष्य की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण प्रयास हो सकते हैं।