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भारत में असमान लिंगानुपात : एक समीक्षा

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1: विषय - महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय - स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से सम्बंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से सम्बंधित विषय)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, सी. रंगराजन (पूर्व अध्यक्ष, प्रधान मंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद) ने प्रजन स्वास्थ्य शिक्षा और उससे जुड़ी सेवाओं तथा लैंगिक समानता से जुड़े मुद्दों को युवा वर्ग के बीच सशक्तता के साथ चर्चा किये जाने की महत्ता पर ज़ोर दिया।
  • उन्होंने यह बात नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System - SRS) की सांख्यिकीय रिपोर्ट (2018) और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पापुलेशन रिपोर्ट, 2020 के आधार पर कही।

sex ratio

प्रमुख बिंदु

जन्म के समय लिंगानुपात :

  • SRS रिपोर्ट 2018 से पता चलता है कि भारत में जन्म के समय लिंगानुपात, 2011 में 906 से घटकर 2018 में 899 हो गया।
  • लिंगानुपात को प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या के रूप में मापा जाता है।
  • यू.एन.एफ.पी.ए. की विश्व जनसंख्या 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत का सम्भावित लैंगिक अनुपात 910 है, जो कि अन्य कई देशों की तुलना में बहुत ही कम है।
  • यह चिंता का कारण है क्योंकि इस प्रतिकूल अनुपात के परिणामस्वरूप न सिर्फ पुरुषों और महिलाओं की संख्या में व्यापक असंतुलन उत्पन्न हो जाता है बल्कि विवाह प्रणालियों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और सामाजिक स्तर पर भी महिलाओं को कई प्रकार के कुप्रभावों का सामना करना पड़ता है।

कुल प्रजनन दर (TFR) :

  • SRS रिपोर्ट 2018 के अनुसार, पिछले कुछ समय से भारत में कुल प्रजनन दर घटी है। वर्ष 2011 और 2018 की अवधि के दौरान यह दर 2.4% से घटकर 2.2% पर आ गई है।
  • वर्ष 2011 में लगभग 10 राज्यों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से कम थी। वर्ष 2020 में यह स्थिति बढ़कर 14 राज्यों में हो गई।
  • प्रजनन क्षमता में गिरावट जारी रहने की सम्भावना है और यह अनुमान है कि समग्र रूप से भारत में प्रजनन दर जल्द ही 2.1 पर पहुँच जाएगी।
  • टी.एफ.आर. उन बच्चों की संख्या को इंगित करता है, जो एक महिला द्वारा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में पैदा किये जाते हैं।
  • प्रतिस्थापन दर एक ऐसी अवस्था होती है, जब सामान्यतः इसी देश में जितने लोग मरते हैं उनका स्थान भरने के लिये उस देश में उतने ही नए बच्चे पैदा हो जाते हैं। कभी-कभी कुछ जगहों/देशों में ऋणात्मक संवृद्धि दर भी पाई जाती है अर्थात् उनकी प्रजनन शक्ति स्तर प्रतिस्थापन दर से कम रहती है।
  • विश्व में अनेक देशों में ऐसी स्थिति है, जैसे- जापान, रूस, इटली एवं पूर्वी यूरोप। दूसरी ओर, कुछ जगहों/देशों में जनसंख्या संवृद्धि दर बहुत ऊँची होती है विशेष रूप से जब वे जनसांख्यिकीय संक्रमण से गुज़र रहे होते हैं।
  • अधिकतर देशों में यह दर प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चे है, हालाँकि यह मृत्यु दर के साथ भिन्न हो सकती है। उदाहरण के लिये यदि किसी दशक में प्रतिस्थापन दर 2.11 है तो वहाँ प्रति 100 वृद्ध लोगों के मरने पर 211 बच्चे पैदा होंगें, यदि यह दर शून्य (0) है इसका अर्थ जितने लोगों की मृत्यु हुई है उतने ही बच्चों का जन्म हुआ है। यदि यह ऋणात्मक है तो इसका अर्थ होगा जितने लोगों की मृत्यु हुई है उससे कम लोगों का जन्म हुआ है।
  • लोगों का मानना ​​है कि एक बार ‘प्रतिस्थापन प्रजनन दर’ पर पहुंचने पर कुछ वर्षों में जनसंख्या स्थिर हो जाएगी या कम होने लगेगी।
  • हालांकि, जनसंख्या आवेग के प्रभाव (Population Momentum Effect) के कारण ऐसा निकट भविष्य में सम्भव नहीं है, क्योंकि भारत में 15-49 वर्ष के प्रजनन आयु समूह में प्रवेश करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी, अतः अभी एक दम से प्रजनन दर का प्रतिस्थापन दर से कम होने की सम्भावना नहीं दिख रही है।
  • उदाहरण के लिये, वर्ष 1990 के आसपास केरल, प्रतिस्थापित प्रजनन के स्तर पर पहुँच गया था, लेकिन इसकी वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर वर्ष 2018 में (लगभग 30 वर्ष बाद) भी 0.7% थी।

चुनौतियाँ:

  • संकीर्ण मानसिकता : भारत में अभी भी (सम्भवतः केरल और छत्तीसगढ़ को छोड़कर) लगभग सभी राज्यों में बेटों को बेटियों पर वरीयता दी जाती है। यह एक प्रकार की संकीर्ण मानसिकता है, जहाँ लोग इस प्रकार वरीयता देने को लड़कियों के दहेज़ से जोड़कर भी देखते हैं।
  • प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग : अल्ट्रासाउंड जैसी सस्ती तकनीकें लिंग चयन में लोगों की मदद करती हैं, जबकि इसके खिलाफ बहुत से अधिनियम बनाए गए हैं।
  • कानूनों के क्रियान्वयन में विफलता : पूर्व गर्भाधान एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध ) अधिनियम, 1994 [The Pre-conception and Pre-natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act], जिसमें विभिन्न कड़े और दंडात्मक प्रावधान किये गए हैं, अभी तक अधिक सफल साबित नहीं हुआ है।
  • पी.सी.-पी.एन.डी.टी. को लागू करने वाले कर्मियों के प्रशिक्षण की रिपोर्ट में बहुत सी खामियां पाई गई हैं, यह भी पाया गया कि जिन लोगों के खिलाफ मामले बनते थे उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने में भी वे असफल ही रहे हैं।
  • निरक्षरता : यह भी देखा गया है कि 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु समूह में साक्षर महिलाओं की तुलना में निरक्षर महिलाओं की प्रजनन क्षमता अधिक है।

सरकार की पहल- बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना (BBBP Scheme):

  • जनगणना 2011 के आँकड़ों के अनुसार लिंगानुपात में तेज़ गिरावट की वजह से इस क्षेत्र में तत्काल कार्रवाई की माँग बढ़ गई थी। 
  • सरकार द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को वर्ष 2015 में पानीपत, हरियाणा में शुरू किया गया था ताकि बाल लिंग-अनुपात में गिरावट दर्ज की जा सके और महिलाओं व बेटियों के सशक्तिकरण की राह आसान की जा सके।
  • यह महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) का एक संयुक्त प्रयास था।

सुझाव :

  • महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ने से लिंगानुपात में सुधार आने की उम्मीद है।
  • महिलाओं और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिये चरणबद्ध अभियान, अधिक संख्या में महिला सुरक्षा सेल का निर्माण सुनिश्चित करना, सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना, साइबर अपराध सेल को अधिक मज़बूत करना आदि।
  • पक्षपातपूर्ण लिंग चयन के परिणामस्वरूप पुत्री के ऊपर पुत्र को वरीयता देने जैसी बातों के आलोक में समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये सरकारी कार्यों को विधिक व सामाजिक तरीके से लागू किये जाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • कई नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बावजूद, भारत में महिलाओं और बालिकाओं की स्वास्थ्य स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं है।
  • मौजूदा समय में महिलाओं और बच्चों से सम्बंधित नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन बहुत ज़रूरी है, विशेषकर सम्पत्ति उत्तराधिकार में महिलाओं को स्वामित्त्व, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा। इसके अलावा अन्य सामाजिक क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को काम करने के लिये न सिर्फ सामाजिक बल्कि सरकारी प्रयास भी बहुत ज़रूरी हैं।

प्री फैक्ट्स:

एस.आर.एस. रिपोर्ट

SRS देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है, जिसके द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधियोँ के नमूने के माध्यम से लिंग अनुपात, प्रजनन दर आदि का प्रत्यक्ष अनुमान लगाया जाता है। इसका क्रियान्वयन रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष

UNFPA का उद्देश्य दुनिया भर में प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य में सुधार करना है। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है।

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