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मरुस्थलीकरण रोकथाम में AI का उपयोग

(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ, संरक्षण, क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि और मानव आबादी के विस्तार के कारण पृथ्वी का बड़ा हिस्सा मरुस्थलीकरण (Desertification) या ‘एक समय में कृषि योग्य भूमि के स्थायी क्षरण’ के प्रति संवेदनशील होता जा रहा हैं। मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एक मूल्यवान सहयोगी है किंतु उन चुनौतियों के प्रति सचेत रहना होगा जिनका समाधान एआई के नए समाधानों को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।

मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग 

  • सऊदी अरब का प्रयास : अगस्त 2023 में सऊदी अरब ने बड़े पैमाने पर मरुस्थलीकरण रोधी कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत AI एल्गोरिदम के माध्यम से भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण एवं मृदा नमी स्तर में परिवर्तन की निगरानी के लिए उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया जा रहा है। 
  • निर्णयन प्रक्रिया में प्रभावी : कृत्रिम बुद्धिमत्ता संवेदनशील क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की प्रवृत्तियों का पता लगाने और उनके आकलन में मदद कर रही है। यह जल प्रबंधन में सुधार, वृक्षारोपण तथा टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने जैसे कार्यों के बारे में निर्णय लेने में सहायता कर रही है। 
  • रणनीति तैयार करने में सहायक : एआई-संचालित सेंसर से लैस ड्रोन दूरदराज या दुर्गम क्षेत्रों से उच्च-रिज़ॉल्यूशन डाटा को कैप्चर करने में मदद करते हैं, मृदा एवं वनस्पति की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं और हमें अनुकूलित शमन रणनीतियों को तैयार करने में सहयोग करते हैं।
  • एरियल ड्रोन सीडिंग : इसके माध्यम से यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में एआई-निर्देशित ड्रोन का उपयोग बंजर या दुर्लभ क्षेत्रों में वृक्षारोपण या पुनर्वनीकरण परियोजनाओं को सक्षम करने के लिए किया जा रहा है। 
  • जलवायु पैटर्न का पूर्वानुमान : पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग जैसे क्षेत्र में एआई का व्यापक उपयोग हुआ है। ये एआई मॉडल भविष्य के जलवायु पैटर्न और ऐसी चरम मौसम की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते हैं जो मरुस्थलीकरण में सहायक हो सकती हैं। 
  • AI for Earth पहल : एआई द्वारा डाटा, भूमि उपयोग पैटर्न एवं पर्यावरणीय कारकों का विश्लेषण करके संभावित रूप से क्षरण के प्रति उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का भी अनुमान लगाया जाता है। 
    • माइक्रोसॉफ्ट की ‘AI for Earth’ पहल मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के प्रयासों सहित पर्यावरण संरक्षण में तेजी लाने के लिए एआई के उपयोग की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रोत्साहित करती है। 
  • दक्षिण-पूर्व स्पेन में स्थानीय कृषि क्षेत्रों में पानी की मांग और योगदान के पूर्वानुमान मॉडल बनाने के लिए मशीन लर्निंग टूल्स को भू-स्थानिक डाटा एनालिटिक्स एवं मशीन विज़न तकनीकों के साथ एकीकृत करके ‘AI for Earth’ का प्रयोग किया जा रहा है।

एआई के परिनियोजन में चुनौतियाँ

  • कार्यान्वयन में बाधा : मरुस्थलीकरण अक्सर अपेक्षाकृत दूरस्थ या अविकसित क्षेत्रों को प्रभावित करता है जहां डाटा संग्रह प्रथाएँ अल्पविकसित हैं और डाटा की कमी है या मौजूद नहीं है। 
  • डाटा विभाजन : ग्लोबल साउथ और नॉर्थ के देशों के बीच व्यापक डाटा विभाजन भी प्रमुख चुनौती है, जहां ग्लोबल साउथ के कुछ देशों में बुनियादी डिजिटल ढांचे तक पहुंच की कमी है, जिससे डाटा को कैप्चर करना मुश्किल हो जाता है। 
  • हवाई सर्वे एवं कौशल की कमी : डाटा की कमी के मामले में हवाई चित्रों के डाटासेट की कमी मुख्य समस्या है और एआई समाधानों को तैयार करने में कौशल अंतराल प्राय: इसे अधिक जटिल बनाता है।   
  • वित्तपोषण की कमी : दीर्घकालिक एआई परियोजनाओं के लिए धन एवं निवेश प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है और एआई समाधानों को विकसित करने तथा उन्हें लागू करने से जुड़ी उच्च लागत आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में एक बड़ी बाधा बन सकती है।
  • कारकों की जटिलता : पर्यावरणीय परिवर्तनशीलता कभी-कभी खुद एक बाधा बन सकती है। मरुस्थलीकरण विभिन्न कारकों के एक जटिल पारस्परिक क्रिया से प्रभावित होता है जिसे कभी-कभी एआई के साथ सटीक रूप से मॉडल करना मुश्किल हो सकता है। जलवायु अस्थिरता अप्रत्याशित रूप से स्थितियों को बदल सकती है, जिससे एआई भविष्यवाणियां एवं हस्तक्षेप जटिल हो सकते हैं।
  • विनियमन की समस्या : एआई प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिए विनियामक परिदृश्य को नेविगेट करना कठिन हो सकता है, खासकर उन देशों में जहां एआई के प्रयोग के लिए सख्त दृष्टिकोण अपनाया जाता हैं। 

भारत में मरुस्थलीकरण की स्थिति एवं शमन की प्रतिक्रियाएँ

  • वर्ष 2015 में भारत स्वैच्छिक बॉन चैलेंज में शामिल हुआ और वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करने तथा वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया। 
  • वर्ष 2019 में इस संकल्प को आगे बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वन-रहित भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया गया। इसमें से भारत ने वर्ष 2011-17 के बीच 9.8 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पहले ही बहाल कर दिया है।
  • भारत सरकार ने वनरोपण सहित मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रम शुरू किए हैं। 
    • ग्रीन इंडिया मिशन 
    • नगर वन योजना 
    • प्रतिपूरक वनरोपण कोष प्रबंधन     
    • योजना प्राधिकरण के तहत वनरोपण और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत भूमि बहाली कार्य शामिल हैं। 
    • भारत ने वानिकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से निपटने के लिए अद्यतन राष्ट्रीय कार्य योजना भी शुरू की है 
  • हालाँकि, लगभग 32% भूमि, क्षरण के अधीन है और 25% भूमि मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रही है। भारत अभी भी एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।
  • भारत के मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण एटलस, 2021 के अनुसार, वर्ष 2018-19 के दौरान भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (TGA) की लगभग 29.77% भूमि क्षरण एवं मरुस्थलीकरण से गुजर रही थी। 
  • भूमि क्षरण एवं मरुस्थलीकरण में 2011-13 में 96.2 मिलियन हेक्टेयर से 1.18 मिलियन हेक्टेयर की वृद्धि हुई है, जो वर्तमान में बढकर 97.85 मिलियन हेक्टेयर हो गई है।  

आगे की राह या सुझाव 

  • उत्तरी अमेरिका, चीन, इज़राइल, एआई-संचालित उपकरण और विश्लेषण द्वारा वास्तविक समय में भूमि क्षरण की निगरानी करने, लक्षित पुनर्वनीकरण परियोजनाओं को निष्पादित करने और टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रथाओं को तैयार करने में मदद कर रहे हैं। भारत इनके अनुभवों का अनुसरण कर सकता है। 
  • डाटा की कमी एवं अपर्याप्त क्षमता से लेकर फंडिंग की कमी व विनियामक बाधाओं तक की चुनौतियों के बावजूद मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने में एआई की भूमिका बढ़ने वाली है, इसलिए प्रासंगिक पर्यावरणीय डाटा की वृहत् मात्रा उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता है।  
  • एरियल इमेज डाटासेट (AID) जैसे ओपन, सार्वजनिक डाटासेट विभिन्न देशों एवं क्षेत्रों से विविध छवियों को एक साथ लाते हैं। एआई डेवलपर्स के लिए एक परिसंपत्ति हैं और इस तरह के और अधिक डाटासेट को सहयोगात्मक रूप से बनाया जाना चाहिए। 
  • सीमा पार डाटा-साझाकरण भी एक पेचीदा मुद्दा बना हुआ है, जिसे सुलझाया जाना चाहिए। G20 जैसे समूहों के भीतर विकास डाटा के कुछ वर्गों को साझा करने की सुविधा के लिए आह्वान किया गया है, जिसका क्षेत्रीय नीति-निर्माण या अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के लिए तकनीक-आधारित समाधान विकसित करने पर प्रभाव पड़ता है। 
  • एआई अभूतपूर्व सटीकता एवं दक्षता के साथ मरुस्थलीकरण के प्रभावों को समझने, भविष्यवाणी करने और कम करने की क्षमता को बढ़ावा देने में सक्षम है, इसलिए इसके उपयोग के लिए विशेष नीतियों की आवश्यकता है।
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