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उपभोग एवं उत्पादन में इको-लेबल की उपयोगिता

(प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्य 12 (जिम्मेदारीपूर्ण उपभोग एवं उत्पादन) को प्राप्त करने के लिए इको-लेबल (Eco-labels) सहायक है। यह उपभोक्ताओं को जिम्मेदारीपूर्ण उपभोग के विकल्प चुनने में तथा उत्पादकों को अपने उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार करने के लिए प्रेरित करता है।

क्या है इको-लेबल 

  • यह किसी उत्पाद या सेवा के कुछ निश्चित पर्यावरणीय मानकों के विषय में उपभोक्ताओं को विश्वसनीय रूप से सूचित करता है। 
  • यह उपभोक्ताओं को अधिक सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है और पर्यावरणीय स्थिरता के पक्ष में व्यवहार को बढ़ावा देता है।  
    • भारत में इको-मार्क भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रदान किया जाता है। 

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)

  • क्या है : भारत का राष्‍ट्रीय मानक निकाय
  • स्थापना : संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 1 अप्रैल, 1987 को 
    • यह बी.आई.एस. अधिनियम, 2016 के तहत स्थापित भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है। 
  • संबंधित मंत्रालय : उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन 
  • मुख्यालय : नई दिल्ली 
  • पांच क्षेत्रीय कार्यालय : कोलकाता (पूर्वी), चेन्नई (दक्षिणी), मुंबई (पश्चिमी), चंडीगढ़ (उत्तरी) और दिल्ली (मध्य) 
  • उद्देश्‍य : मानकीकरण, उत्‍पादों के गुणवत्ता प्रमाणन की गतिविधियों का सामंजस्‍यपूर्ण विकास, उद्योग के विकास व वृद्धि के लिए मानकीकरण एवं गुणवत्ता नियं‍त्रण पर जोर देना, उपभोक्‍ताओं की जरूरतों को पूरा करना।

इको मार्क (Eco Mark) योजना

  • पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की लेबलिंग के लिए भारत सरकार द्वारा इको मार्क योजना शुरू की गई थी। इसका संचालन भारतीय मानक ब्यूरो कर रहा है। 
  • इस योजना में साबुन व डिटर्जेंट, पेंट, खाद्य पदार्थ, चिकनाई वाले तेल, पैकिंग/पैकेजिंग सामग्री, आर्किटेक्चरल पेंट, पाउडर कोटिंग्स, बैटरी, इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक सामान, खाद्य योजक, लकड़ी के विकल्प, सौंदर्य प्रसाधन, एरोसोल व प्रणोदक, प्लास्टिक उत्पाद, वस्त्र, अग्निशामक, चमड़ा एवं कॉयर व कॉयर उत्पाद जैसी विभिन्न उत्पाद श्रेणियां शामिल हैं।

इको-लेबल की उपयोगिता 

इको-लेबल रेटिंग ढाँचा उपभोक्ता वस्तु को पर्यावरण के अनुकूल प्रमाणित करते हैं। इनके कई रेटिंग स्तर हो सकते हैं जो पारिस्थितिक सुदृढ़ता की मात्रा को प्रदर्शित कर सकते हैं। 

उपभोग में इको-लेबल की उपयोगिता

  • जागरूकता एवं जानकारी : इन लेबल्स का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके द्वारा उपभोग किए जाने वाले उत्पादों के पारिस्थितिक पदचिह्न के बारे में सूचित करना है, जिससे उन्हें बेहतर निर्णयन में मदद मिलती है। 
  • सतत उपभोग : इको-लेबल वाले उत्पाद खरीदकर उपभोक्ता पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण में योगदान मिलता है।
  • विश्वास व पारदर्शिता : इको-लेबल उपभोक्ताओं के बीच विश्वास स्थापित करते हैं क्योंकि ये लेबल प्रमाणित करते हैं कि उत्पाद पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हैं।
  • स्वास्थ्य लाभ : कई इको-लेबल उत्पाद रसायन-मुक्त एवं जैविक होते हैं, जिससे उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य बेहतर होता है।

उत्पादन में इको-लेबल की उपयोगिता

  • प्रतिस्पर्धात्मक लाभ : इको-लेबल उत्पादकों को बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने में मदद करते हैं क्योंकि पर्यावरणीय जागरूकता वाले उपभोक्ता इन्हें प्राथमिकता देते हैं।
  • नवाचार को प्रोत्साहन : इको-लेबल के लिए उत्पादन प्रक्रियाओं को अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाना पड़ता है, जिससे नवाचार एवं तकनीकी उन्नति को प्रोत्साहन मिलता है।
  • विनियमों का पालन : इको-लेबल का उपयोग करके उत्पादक सरकारी व अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय मानकों का पालन कर सकते हैं, जिससे जुर्माने एवं कानूनी मुद्दों से बचा जा सकता है।
  • ब्रांड के विषय में जागरूकता : इको-लेबल ब्रांड की प्रसिद्धि में वृद्धि करके उपभोक्ताओं के बीच ब्रांड की विश्वसनीयता बढ़ती है।

इको-लेबल को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सुझाव

  • उत्पादों के लिए उपभोक्ता-संचालित मांग को सुविधाजनक बनाने के लिए एक मिशन-मोड जागरूकता अभियान की आवश्यकता 
    • आभूषणों में हॉलमार्क को बढ़ावा देने वाला अभियान इस उद्देश्य के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकता है। 
  • भारतीय मानक ब्यूरो को नए उत्पादों को शामिल करने के लिए अपनी इकोमार्क योजना को अपडेट करना और अधिक उपभोक्ता वस्तुओं के लिए मानक विकसित करना 
  • पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की मांग में वृद्धि पर जोर देना 
    • इको लेबलिंग कार्बन क्रेडिट बाजार को भी बढ़ावा दे सकती है, जो निगमों के लिए रुचिकर हो सकता है। 
    • इन लेबलों में प्रामाणिक पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद को प्रमाणित करके विभिन्न कंपनियों की विपणन रणनीतियों में ग्रीनवाशिंग को कम करने की क्षमता है।
  • पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रभावों के संदर्भ में उपभोक्ता वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला की रेटिंग के लिए रूपरेखा बनाने के लिए अधिक शोध और विकास की आवश्यकता 
  • उपभोक्ता की भागीदारी बढ़ाना और स्थिरता की दिशा में एक जन आंदोलन को बढ़ावा देना 

निष्कर्ष 

वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इको-लेबलिंग को सही दिशा में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार, उपभोक्ता एवं उत्पादक सभी को साथ में मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।

ग्रीनवाशिंग (Greenwashing)

ग्रीनवाशिंग से तात्पर्य जलवायु कार्रवाई में अनुचित व्यवहार के प्रयोग से है। कुछ निजी कंपनियां, निगम और कभी-कभी देश भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये किये जा रहे प्रयासों व कार्यों तथा इन कार्यों के प्रभावों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। 

इस प्रक्रिया में वे भ्रामक जानकारी प्रदान करते हैं और असत्यापित दावे करते हैं। इस प्रक्रिया में किसी उत्पाद या नीति को वास्तविकता से अधिक पर्यावरण अनुकूल या कम हानिकारक बताया जाना शामिल हो सकता है। इस शब्द का प्रयोग पहली बार ‘जे वेस्टरवेल्ड’ ने वर्ष 1986 में किया था।

कार्बन फुटप्रिंट

कार्बन फुटप्रिंट से तात्पर्य किसी संस्था, व्यक्ति या उत्पाद द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों के रूप में किये गए कुल कार्बन उत्सर्जन से है। ये ग्रीनहाउस गैसे मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न होती हैं। व्यक्तियों के लगभग सभी व्यवहार को कार्बन फुटप्रिंट के कारकों में शामिल किया जा सकता हैं, जिनमें खानपान से लेकर कपड़े तक को सम्मिलित किया जाता है।  

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