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रूफटॉप फार्मिंग की उपयोगिता 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण)

संदर्भ

rooftop-farming

वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में छत पर बागवानी (रूफटॉप फार्मिंग) का चलन बढ़ रहा है। इसे पर्यावरण के अनुकूल तथा कई मामलों में बेहतर विकल्प माना जाता है, अत: सरकार और संस्थाओं को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

रूफटॉप फार्मिंग के लाभ

  • इससे सब्जियों और फलों में प्रयोग किये जाने वाले हानिकारक रसायनों से सुरक्षा मिलने के साथ-साथ समय का सदुपयोग होता है और खर्च में कमी आती है। यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभप्रद है, जो शहरी क्षेत्र में जैव-आवास के माध्यम से विविधता के संरक्षण को भी प्रोत्साहित करता है।
  • फलों और सब्जियों को ग्रोबैग (Growbag), प्लास्टिक के डब्बों और गमलों में उगाने से अजैव अनिम्नीकरणीय पदार्थों के पुनर्प्रयोग को बढ़ावा मिलता है, जो एक सकारात्मक पहल है।
  • वैज्ञानिक पद्धति से की जाने वाली रूफटॉप फार्मिंग से सब्जी की उपज में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि देखी जा रही है।
  • उच्च पोषक तत्व युक्त सब्जियों, जैसे- लौकी, बीन्स, फूलगोभी के साथ पालक, ऐमारैंथ और सॉरेल जैसी पत्तेदार सब्जियों को घर में उगाया जा सकता है जो संतुलित आहार को भी सुनिश्चित करता है। वहीं शहतूत, ड्रैगन फ्रूट, पपीता, स्ट्रॉबेरी, चेरी और नींबू जैसे फलों तथा गन्ने को भी घर में उगाया जा सकता है जिनमें विटामिन और खनिज की प्रचुरता होती है।
  • टैरेस गार्डन (Terrace Garden) में ऑर्किड, हिबिस्कस, गुलदाउदी जैसे फूलों की भी खेती की जा सकती है। यह वातावरण को भी शुद्ध रखता है तथा सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

घरेलू तकनीक का प्रयोग

  • नई मृदा में प्राय: सूक्ष्मजीव अनुपस्थित होते हैं इसलिये मृदा तंत्र को विकसित करने की जरूरत होती है। इसके लिये सूक्ष्मजीवों का प्रजनन आवश्यक है। अत: मृदा की नमी को सुनिश्चित करके उसमें उचित अनुपात में गोबर और कम्पोस्ट को मिश्रित किया जाना चाहिये।
  • घर के जैविक कचरे को प्राकृतिक खाद में परिवर्तित करना बागवानी प्रक्रिया का प्रमुख हिस्सा है, क्योंकि इससे सब्जियों को उगाने के लिये मृदा में मूलभूत तत्त्वों की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। अंडे के छिलकों का प्रयोग भी पाउडर बनाकर खाद के रूप में किया जा सकता है।
  • साथ ही, नीम, कस्टर्ड सेब, सेब और तुलसी से कीटनाशक निर्मित किया जा सकता है। इन जैविक कीटनाशकों के छिडकाव से पौधे और सब्जियों को कीटों से बचाया जा सकता है। 
  • पौधों को लार्वा के हमले से बचाने के लिये घरेलू फेरोमोन ट्रैप निर्मित किया जा सकता है। साथ ही, उपयुक्त कंटेनर एवं उपजाऊ व जल निकासी योग्य मृदा का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, पौधों की नियमित सिंचाई तथा पर्याप्त धूप की उपलब्धता  सुनिश्चित करना चाहिये। इसके लिये रसोई से निकलने वाले अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रित करके इसका उपयोग सिंचाई के लिये किया जा सकता है। इससे जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

रूफटॉप फार्म : प्रोत्साहन की आवश्यकता

  • जहाँ तापमान 28 से 32°C के बीच होता है, प्रायः वहाँ संतरे और स्ट्रॉबेरी जैसे उच्च बाजार माँग वाले फलों को उगाना मुश्किल है, क्योंकि इनकी खेती प्रायः कम तापमान में होती है। हालाँकि, कुछ हालिया उदाहरण ऐसे भी देखे गए हैं जहाँ केरल जैसे अपेक्षाकृत उच्च तापमान वाले राज्यों में भी रूफ टॉप फार्मिंग से इनकी उपज प्राप्त की जा रही है।
  • वर्तमान में क्षेत्र विशेष के लिये अनुकूलित संकर किस्में भी उपलब्ध हैं जिनका उपयोग सरलता से किया जा सकता है। हालाँकि, उचित देखभाल संबंधी ज्ञान और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये संबंधित संस्थाओं को पहल करने की आवश्यकता है।
  • पौधों के विकास के लिये आवश्यक पोषक तत्वों एवं उनके उचित मिश्रण से संबंधित जानकारी सुलभ कराने का दायित्व सरकारी संस्थाओं पर है।

जैव-विविधता का पोषण

  • इसके माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में लुप्तप्राय देशी सब्जियों को फिर से उगाया जा रहा है। साथ ही, तुलसी, लेमन ग्रास, अजवाइन, मेंहदी तथा अन्य औषधीय पौधे भी उगाए जा रहे हैं।
  • प्रारंभिक स्तर पर मूली, धनिया, पुदीना, टमाटर, मिर्च, मूली, देशी साग और पालक का उत्पादन किया जा सकता है। 
  • उष्णकटिबंधीय मौसम में अजवाइन, हरी प्याज, फूलगोभी और गोभी उगाना चुनौतीपूर्ण है, किंतु पौधों के पनपने के लिये सही वातावरण सुलभ कराके इनकी उपज भी प्राप्त की जा सकती है। 
  • विदित है कि अमरूद, चीकू, आम, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, चेरी, संतरे और नीबू की खेती पक्षियों, मधुमक्खियों और तितलियों को आकर्षित करती हैं। रूफटॉप फार्मिंग के माध्यम से जैव-विविधता को बढ़ावा दे कर शहरी पारितंत्र को संतुलन प्रदान करने में सहायता की जा सकती है।

आगे की राह

कुछ लक्षित परियोजनाओं को संचालित कर शहरी क्षेत्रों में सीमित घरेलू साधनों के माध्यम से छत पर बगीचा तैयार करके कीटनाशकों या रसायनों से मुक्त सब्जियों और फलों को तैयार किया जाना चाहिये। साथ ही, शहरी क्षेत्रों में जैव-विविधता को सुनिश्चित करने एवं अति उष्मन से निजात पाने के लिये भी इनके विकास किया जा सकता है।

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