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उत्तर प्रदेश- उत्तराखंड: संपत्ति का बंटवारा तथा संबंधित पहलू

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2; संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व? संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ)

संदर्भ

हाल ही में उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों द्वारा संपत्ति तथा देनदारियों के विभाजन को लेकर एक समझौते पर सहमति व्यक्त की गयी है।

एैतिहासिक पृष्ठभूमि

  • अविभाजित उत्तरप्रदेश में ‘उत्तराखंड आंदोलन’ के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन किया गया था। इसके तुरंत बाद मुख्य रूप से सिंचाई, परिवहन, आवास, वन, खाद्य और नागरिक आपूर्ति तथा पर्यटन विभागों की संपत्ति और देनदारियों को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
  • उत्तराखंड राज्य द्वारा ‘उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 ‘का हवाला दिया गया, जिसके तहत किसी भी संपत्ति का स्वामित्व उस राज्य के स्वामित्व में होना चाहिये जहाँ वह स्थित है। उत्तराखंड का आरोप है कि उतर प्रदेश ने लगभग 41 नहरों का नियंत्रण भी नहीं सौंपा था जो उत्तराखंड में बहती थीं जिसमे टिहरी बाँध नानक सागर बाँध, बेगुल बाँध, तुमरिया बाँध (उत्तराखंड में स्थित छह बाँधों में से और उत्तर प्रदेश द्वारा नियंत्रित) और हरिद्वार के अलकनंदा गेस्ट हाउस (उत्तर प्रदेश पर्यटन द्वारा नियंत्रित, और अब उत्तराखंड को सौंपे जा रहे हैं) शामिल हैं।
  • दोनों राज्यों की सरकारों ने विभिन्न स्तर की बैठकों में इन मुद्दों को सुलझाने का प्रयास किया । कई मौकों पर सिंचाई, परिवहन और कर्मचारियों के बटवारे और देनदारियों से जुड़े विवाद अदालतों तक पहुँच चुके हैं। जबकि कर्मचारियों के बंटवारे के मामले को सुलझा लिया गया है, अन्य मामले लंबित हैं।
  • वर्ष 2018 में उत्तराखंड की तत्कालीन सरकार द्वारा एक फार्मूला प्रस्तावित किया गया जिसके तहत सिंचाई विभाग की परिसंपत्तियों को 75: 25 के अनुपात में विभाजित किया जायेगा तथा इसमें बड़ा हिस्सा उत्तराखंड को प्राप्त होगा। 

नवीनतम समझौता

  • हाल ही में दोनों राज्यों के बीच हस्ताक्षरित समझौते के तहत, दोनों राज्यों के सिंचाई विभाग के अधिकारी 15 दिनों के भीतर मिलकर उत्तराखंड में 5,700 हेक्टेयर भूमि और 1,700 भवनों का संयुक्त सर्वेक्षण करेंगे, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग के नियंत्रण में हैं। सर्वेक्षण उन संपत्तियों की पहचान करेगा जो उत्तर प्रदेश के लिये उपयोगी होंगी बाकी संपत्तियों को उत्तराखंड को सौंपा जायेगा।
  • नवीनतम समझौते के अनुसार उधम सिंह नगर जिले के धौरा, बेगुल और नानक सागर जल निकायों तथा रुड़की के ऊपरी गंगा नहर में उत्तराखंड को पर्यटन और जल क्रीड़ा गतिविधियों के संचालन की अनुमति दी गई है।
  • उत्तर प्रदेश वन विभाग और उत्तराखंड वन विकास निगम के विभाजन के बाद,उत्तर प्रदेश ने उत्तराखंड को लगभग 77.31 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। नवीनतम समझौते के अनुसार अतिरिक्त 13 करोड़ रुपये संयुक्त एस्क्रो खाते में जमा किये जाएंगे।
  • बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग की बकाया राशि वर्ष 2003 के सर्कल रेट के अनुसार ब्याज सहित तय की जाएगी जो की लगभग 205.42 करोड़ रुपये है। चूंकि उत्तराखंड पर भी यूपी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का 105.43 करोड़ रुपये बकाया है, अत: इस राशि को समायोजित किया जाएगा।
  • दोनों राज्य इस मुद्दे पर भी सहमत हुए कि उधम सिंह नगर जिले के किच्छा में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के स्वामित्त्व वाली बस स्टैंड की जमीन 15 दिनों के भीतर उत्तराखंड को सौंप दी जाएगी।
  • दोनों सरकारों ने उत्तराखंड में स्थित उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद की संपत्ति और संपत्तियों से उत्पन्न आय और देनदारियों को समान रूप से साझा करने का भी निर्णय लिया साथ ही अलकनंदा गेस्ट हाउस को उत्तराखंड में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और अगले महीने इसका उद्घाटन किया जाएगा।
  • दोनों राज्यों ने अदालतों में लंबित मामलों को वापस लेने और आपसी सहमति से उनका समाधान करने पर सहमति व्यक्त की साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग भारत-नेपाल सीमा पर बनबसा और किच्छा में बैराज का पुनर्निर्माण करेगा जो प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षतिग्रस्त हो गए थे।

संवैधानिक एवं वैधानिक पहलू:

  • संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दो या अधिक राज्यों के मध्य विवाद सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है। इसी अनुच्छेद के तहत उपर्युक्त राज्यों के मध्य उत्पन्न विवाद सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, हालाँकि दोनों राज्य की सरकारों द्वारा आपसी सहमति से इस मुद्दे को सुलझाने का निर्णय करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से मुकदमा वापस लेने की घोषणा की गई है।
  • संविधान के अनुच्छेद 263 राज्यों के मध्य तथा केंद्र एवं राज्यों के मध्य समन्वय के लिये अंतर्राज्यीय परिषद् के गठन की व्यवस्था करता है इसका गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम,1956 के तहत क्षेत्रीय परिषदों का निर्माण किया गया है।इसका उद्देश्य विभिन्न राज्यों, केन्द्रशासित प्रदेशों तथा केंद्र के बीच सहभागिता तथा समन्वय को बढ़ावा देना है। 20वीं क्षेत्रीय परिषद् में भी इस मुद्दे को उठाया गया था, लेकिन उस समय भी इस संबंध में कोई निर्णायक समाधान नहीं हो पाया था।
  • उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा 79, 80 में भी कुछ ऐसे प्रावधान थे जिसके तहत उत्तराखंड राज्य के परिसंपत्तियों के अधिकार सीमित होते हैं।

निष्कर्ष

दोनों राज्यों की सरकारों द्वारा संपत्ति से संबंधित विभिन्न मुद्दे को आपसी सहमति से सुलझाना एक निर्णायक कदम है, यह न केवल संघीय ढाँचे को मजबूती प्रदान करता है, अपितु सर्वोच्च न्यायालय के समय को बचाते हुए उसकी कार्यक्षमता में भी वृद्धि करता है। वास्तव में ऐसे समन्वय व सामंजस्य के माध्यम से ही अखंड भारत के लक्ष्य को और मजबूत किया जा सकता है।

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