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वैक्सीन राष्ट्रवाद बनाम वैश्विक सहयोग

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत के हित, स्वास्थ्यआपदा प्रबंधन)

संदर्भ

विश्व भर में टीकाकरण प्रक्रिया में तेज़ी के बीच वैक्सीन कूटनीति एक मुद्दा बन गया है। सभी तक वैक्सीन की पहुँच के लिये वैक्सीन के उत्पादन और वितरण का प्रबंधन आवश्यक है। जब अग्रणी और उन्नत देशों ने टीकों के संग्रह में तेज़ी दिखाई है तो वैश्विक दक्षिण (Global South) देशों, जैसे- भारत और चीन ने अधिकांश देशों में आशा का संचार किया है।

अग्रिम अनुबंध और वैश्विक चिंताएँ

  • वैक्सीन खरीद में केंद्रीकरण- वैक्सीन अनुबंध पर ‘दी न्यूयॉर्क टाइम्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, टीकों के लिये कुछ उन्नत देशों द्वारा किये गए अग्रिम खरीद अनुबंध उनकी जनसंख्या का कई बार टीकाकरण करने में सक्षम हैं। उदाहरणस्वरुप- यूरोपीय संघ दो बार, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम चार बार और कनाडा छह बार अपनी जनसंख्या का टीकाकरण करने में सक्षम है।
  • वैक्सीन बैटल- वर्ष 2021 में फाइजर के उत्पादन का 82% और मॉडर्ना का 78% पहले ही धनी देशों द्वारा खरीद लिया गया है। टीकाकरण से स्थिति के सामान्य होने की उम्मीद और आर्थिक विकास की आवश्यकता ने कई उन्नत देशों को ‘वैक्सीन बैटल’ में संलग्न कर दिया है और सार्वजनिक सहयोग व वैश्विक सहयोग अब परिदृश्य से गायब है।
  • एस.डी.जी. पर प्रभाव- कोविड-19 से पूर्व के अनुमानों से पता चलता है कि वैश्विक जनसंख्या का 6% अत्यधिक गरीबी में है, जिसमें इस दौरान अत्यधिक वृद्धि हो गई है। इस कारण एस.डी.जी.-1 के समक्ष भारी चुनौती उत्पन्न हो गई है। विदित है कि एस.डी.जी.-1 सभी प्रकार की गरीबी के निवारण से संबंधित है।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार, पिछले दशक में प्रति व्यक्ति आय के मामले में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तरह उभरने वाले बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में से 50% से अधिक के वर्ष 2020-22 की अवधि में पुन: पहले की स्थिति में आ जाने की उम्मीद है।

वैश्विक सहयोग और भारत के प्रयास

  • प्रारंभिक शिपमेंट- उन्नत देशों द्वारा कोविड-19 के टीके तक गरीब देशों की पहुँच पर ध्यान न दिये जाने की स्थिति में भारत ने उनकी आवश्यकताओं के प्रति समानुभूति प्रदर्शित की है। भारत ने स्वीकृत वैक्सीन के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से (डोज़) के निर्यात की अनुमति दे दी है। पड़ोसी देशों को इसका निर्यात अनुदान मोड के तहत किया जायेगा जबकि अल्प विकसित देशों को टीकों की प्रारंभिक शिपमेंट नि: शुल्क होगी। भारत से टीकों का शिपमेंट विकासशील देशों के विभिन्न हिस्सों में पहुँचना शुरू हो चुका है।
  • सराहनीय प्रयास- भारत से ब्राजील को वैक्सीन की 2 मिलियन खुराक मिल चुकी है। यद्यपि भारत अपने पहले चरण में स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं का टीकाकरण कर रहा है और ऐसी स्थिति में भारत से अन्य देशों को टीके के निर्यात को विश्व स्तर पर अच्छी सराहना प्राप्त हो रही है। गौरतलब है कि किसी लोकतंत्र में अपनी आबादी का टीकाकरण किये बिना विदेशों में टीके भेजने की प्रतिक्रिया राजनीतिक रूप से नुकसानदायक भी साबित हो सकती है।
  • भारत का समन्वित प्रयास और चीन- भारत का दृष्टिकोण कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिये समन्वित वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता की पुष्टि के साथ-साथ वैश्विक विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। साथ ही, विश्व के फार्मेसी बाज़ार में भारत की उपस्थिति को भी प्रभावी बनाता है। हालाँकि, चीन ने भी टीके की आपूर्ति में उत्साह दिखाया है परंतु नेपाल जैसे देशों की उदासीन प्रतिक्रिया ने चीन के उत्साह को कम कर दिया है। साथ ही, ब्राजील के आँकड़े ‘सिनोवैक वैक्सीन’ की प्रभावशीलता के बारे में भी चिंता को बढ़ाते हैं।
  • सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति- गरीब देशों में टीकाकरण के प्रति भारत का रुख अत्यंत सकारात्मक रहा है। इस कारण संपन्न देशों ने भी गरीब देशों में टीकाकरण अभियान की आवश्यकता पर जोर दिया है। सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति में रुकावट वैश्विक जनसंख्या के स्वास्थ्य के साथ-साथ वैश्विक विकास को भी बाधित करेगा। विदित है कि एस.डी.जी.-3 स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और सभी आयु के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने से संबंधित है।

कोवैक्स परियोजना से उम्मीद

  • वैक्सीन की सामान पहुँच- कोवैक्स परियोजना कोविड-19 टीकों की सामूहिक खरीद (Pooled Procurement) और उचित वितरण के लिये एक वैश्विक जोखिम-साझाकरण तंत्र है, जो वैक्सीन की वैश्विक रूप से सामान पहुँच के लिये कार्य कर रहा है। यह उच्च और मध्यम आय वाले देशों से प्राप्त वित्त पोषण पर आधारित एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है। हालाँकि, इस परियोजना के लिये धन का आभाव था परंतु नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इस परियोजना में शामिल होने के फैसले से उम्मीदें अब काफी बढ़ गई हैं।
  • आपूर्ति में चुनौती- कई देशों द्वारा आपूर्तिकर्ताओं से अधिक संख्या में सीधे खरीद के कारण कोवैक्स परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2021 के अंत तक 2 बिलियन डोज़ की आपूर्ति के समक्ष चुनौती उत्पन्न हो गयी है।
  • रणनीतिक बदलाव- कोवैक्स वैश्विक सहयोग का एक अनूठा उदाहरण है और वैश्विक विकास परिणामों में वृद्धि के लिये एक रणनीतिक बदलाव की पेशकश करता है। इसके अलावा, चूँकि विकासशील देशों ने अधिकांश टीके ग्लोबल साउथ से खरीदे हैं, अत: कोवैक्स परियोजना वैश्विक विकास के लिये नए रास्तों का निर्माण कर सकती है।
  • ग्लोबल साउथ और भारत की महत्ता में वृद्धि- इनमें से अधिकांश वैक्सीन ग्लोबल साउथ में लागत प्रभावी और सस्ती हैं। उदाहरण के लिये भारत में उत्पादित कोविशील्ड वैक्सीन की कीमत केवल $3 प्रति खुराक है, जबकि कोवैक्सीन की कीमत $4.2 है। साथ ही, कोवैक्सीन के चरण-1 के डाटा पर आधारित ‘द लांसेट’ के अध्ययन में किसी भी अन्य टीके की तरह ही इसके भी संतोषजनक सुरक्षा परिणाम प्राप्त हुए हैं। कोवैक्सीन की नाक के माध्यम से ली जाने वाली वैक्सीन आगे के टीकाकरण में सुविधा प्रदान कर सकता है। सस्ती कीमत पर बड़ी मात्रा में वैक्सीन का उत्पादन करने की क्षमता विकासशील देशों में भारत के महत्व को रेखांकित करती है।
  • उत्तर और दक्षिण के बीच सहयोग- टीकों का विकास उत्तर और दक्षिण के बीच वैश्विक सहयोग की एक उत्कृष्ट कहानी है। हालाँकि, महामारी के दौरान लोकतांत्रिक विश्व की बढ़ती राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों और वैक्सीन राष्ट्रवाद ने वैश्विक सहयोग की सकारात्मकता को चुनौती दी है।
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