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पश्चिम बंगाल : मुख्यमंत्री पद का संकट

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, राज्य विधानमंडल से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - संसद और राज्य विधायिका की संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

हाल ही में, पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कॉन्ग्रेस ने भारी जनादेश के साथ जीत दर्ज की थी, परंतु निवर्तमान मुख्यमंत्री अपना विधानसभा चुनाव हार गई थीं।

पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति

  • विधानसभा चुनाव हारने के वाबजूद, ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री चुना गया था।
  • संविधान के प्रावधानों के अनुसार और सामान्य स्थिति में, निर्वाचन आयोग के द्वारा रिक्त सीटों पर उप-चुनाव कराने के लिये अभी तक अधिसूचना ज़ारी कर देनी चाहिये थी।
  • हालाँकि, एक प्रावधान ऐसा भी है जिसमें विशेष परिस्थिति में उपचुनाव को 6 महीने के लिये टाला जा सकता है। 

विधिक प्रावधान

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951’ की धारा 151A, निर्वाचन आयोग को पद रिक्ति की तिथि से छह महीने के भीतर उप-चुनाव के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं की आकस्मिक रिक्तियों को भरने का आदेश देती है।
  • बशर्ते कि रिक्ति के संबंध में सदस्य का कार्यकाल एक वर्ष या उससे अधिक शेष रहना चाहिये।
    • गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग राष्ट्रीय या राज्य चुनाव को रद्द नहीं कर सकता है। लेकिन, यह किसी सदस्य की मृत्यु या अपराध में संलग्नता के मामले में एक सीट के चुनाव को रद्द कर सकता है, क्योंकि यह आमतौर पर केंद्र या राज्य में विधानसभा के गठन को प्रभावित नहीं करता है।
    • अधिनियम की धारा 153 तथा संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग किसी भी चुनाव को संपन्न कराने के लिये समय-सीमा को बढ़ा सकता है, लेकिन ऐसा विस्तार छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिये।
    • अनुच्छेद 172(1) में कहा गया है कि आपातकाल की स्थिति में चुनाव को एक वर्ष के लिये स्थगित किया जा सकता है। परंतु, आपातकाल की समाप्ति के बाद किसी भी दशा में उसका विस्तार छह माह से अधिक नहीं होगा।
    • यदि निर्धारित समय से छह महीने के भीतर उप-चुनाव नहीं होते हैं, तो वर्तमान मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना होगा।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 164(4) में कहा गया है कि एक मंत्री जो लगातार छह महीने की अवधि के लिये राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
    • उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2001 के एक फैसले में तेज प्रकाश सिंह की पुनः नियुक्ति से संबंधित मामले में इसकी पुष्टि की थी।
    • उपरोक्त मामले में कहा गया था कि यदि एक गैर-विधायक ने विधानसभा के लिये चुने बिना छह महीने तक मंत्री के रूप में कार्य किया है, तो उसे मंत्री के रूप में सदन की समान अवधि के लिये पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
    • ऐसा ही मामला तमिलनाडु की निवर्तमान मुख्यमंत्री का था, जिसमें उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसके बावजूद वह मुख्यमंत्री के रूप में एक और कार्यकाल को पूर्ण करने में सफल रहीं।

    संबंधित अन्य मामलें

    • वर्ष 2014 में, झारखंड में भाजपा के मुख्यमंत्री के फ्रंट-रनर अर्जुन मुंडा चुनाव हार गए, जबकि उनकी पार्टी ने राज्य में जीत हासिल की। तदोपरांत पार्टी ने रघुबर दास को झारखंड का मुख्यमंत्री नियुक्त किया कर दिया था।
    • वर्ष 2017 में, गोवा विधानसभा चुनाव में लक्ष्मीकांत पारसेकर अपनी विधानसभा सीट हार गए थे, तब मनोहर पर्रिकर को गोवा का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया, जो उस समय केंद्रीय रक्षा मंत्री थे।
    • वर्ष 2017 में, जब योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया, तब वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य नहीं थे।
    • परंतु, मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के छह महीने के भीतर उन्हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद् से एम.एल.सी. चुन लिया गया।
    • ऐसा ही रास्ता वर्ष 2019 में महाराष्ट्र में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अपनाया गया।

    पश्चिम बंगाल में उच्च सदन की अनुपस्थिति 

    • पश्चिम बंगाल के संदर्भ में, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसा रास्ता नहीं अपनाया जा सकता है क्योंकि यहाँ उच्च सदन (विधान परिषद्) की अनुपस्थिति है।
    • हालाँकि, पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में उच्च सदन को बहाल करने के लिये एक प्रस्ताव पारित किया है, लेकिन इसके सफल होने की संभावना नहीं है क्योंकि इसके लिये संसद के दोनों सदनों की मंजूरी की भी आवश्यकता होती है।
    • असम और राजस्थान दोनों राज्यों ने भी क्रमशः वर्ष 2010 और 2012 में अपनी विधानसभाओं में उच्च सदन के लिये प्रस्ताव पारित किये थे, लेकिन ये प्रस्ताव अभी भी राज्यसभा में लंबित हैं।

    उच्च सदन (विधान परिषद्) के गठन एवं उन्मूलन की प्रक्रिया 

    • संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार संसद किसी राज्य में विधानपरिषद् का विघटन (जहाँ पहले से मौजूद है) और गठन (जहाँ यह पहले से मौजूद नहीं है) कर सकती है।
    • यदि उस राज्य की विधानसभा ने इस आशय का संकल्पविधानसभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमतद्वारा पारित कर दिया है।
      • अनुच्छेद 171 के अनुसार, किसी राज्य की विधानपरिषद् में सदस्यों की संख्या राज्य विधानसभा की कुल संख्या के एक-तिहाई से अधिक और 40 से कम नहीं होनी चाहिये।

      निष्कर्ष 

      पश्चिम बंगाल अनिश्चितता और संभवतः एक राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। यदि उप-चुनाव समय पर संपन्न होते हैं, तो वर्तमान मुख्यमंत्री का उप-चुनाव में निर्वाचित होना आवश्यक होगा, लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा।

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