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विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मलेरिया के टीके को मंजूरी और इसके निहितार्थ

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र -3, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी – विकास एवं अनुप्रयोग तथा दैनिक जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया के विरुद्ध दुनिया के पहले टीके आर.टी.एस., एस./ए.एस.01 (RTS, S/AS01), जिसका व्यावसायिक नाम- मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) है,  के व्यापक उपयोग को अनुमति प्रदान की है। इस टीके को ब्रिटेन की टीका निर्माता कंपनी ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन’ ने विकसित किया है।

आर.टी.एस., एस./ए.एस. 01 वैक्सीन

  • आर.टी.एस., एस./ए.एस. 01 टीके का निर्माण ब्रिटेन की टीका कंपनी ‘ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन’ तथा ‘पाथ’ (गैर-लाभकारी वैश्विक स्वास्थ्य संगठन) का सम्मिलित प्रयास है। इसके लिये बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से अनुदान राशि प्राप्त हुई है।
  • यह टीका प्लाज़्मोडियम फॉल्सीपेरम में सर्कमस्पोरोज़ोइट नामक प्रोटीन को लक्षित करता है। मलेरिया का यह परजीवी अफ्रीका में सबसे अधिक प्रभावी है। हालाँकि, यह पी विवेक्स मलेरिया के विरुद्ध कोई सुरक्षा प्रदान नही करता, जो कि अफ्रीका के बाहर कई देशों में प्रभावी है।
  • विदित है कि प्लाज़्मोडियम फॉल्सीपेरम एक कोशिकीय प्रोटोजोआ परजीवी है। यह मलेरिया परजीवियों में सबसे घातक है। यह मादा एनाफ्लीज़ मच्छर के काटने से फैलता है तथा रोग के सबसे खतरनाक रूप फॉल्सीपेरम मलेरिया का कारण बनता है।      
  • इस टीके को ए.एस. 01  नामक एक सहायक के साथ तैयार किया गया है। यह परजीवी को लीवर को संक्रमित करने से रोकेगा।
  • यह टीका 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये है, तथा बच्चों को इसके चार खुराक की आवश्यकता होगी। इसकी पहली तीन खुराक 1-1 माह के अंतर पर दी जाएंगी तथा चौथी खुराक तीसरी खुराक के 18 माह बाद दी जाएगी।

टीके के विकास में देरी का कारण

  • मलेरिया के इस टीके को तैयार होने में लगभग 30 वर्षों का समय लगा गया। इस टीके की खोज में लगा समय मुख्यतः मलेरिया की जटिलता के कारण है, इसका कारण परजीवी का जीवन चक्र है, जिसमें मच्छर, मानव यकृत, रक्त एवं परजीवी में बाद के एंटीजेनिक परिवर्तन शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त, इस टीके के अनुसंधान एवं विकास पर उस तरह से ध्यान नही दिया गया, जिस प्रकार एच.आई.वी. के टीके पर दिया जा रहा है।

आवश्यकता क्यों

  • मलेरिया विश्व की घातक बीमारियों में से एक है। इससे विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 4,35,000 लोगों की मृत्यु होती है। इस बीमारी की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग दो दशक पूर्व तक इस बीमारी से लगभग 8 लाख लोगों की मौतें होती थीं।
  • मलेरिया का प्रकोप अफ्रीका में सबसे अधिक है। यहाँ के नाइजीरिया, कॉन्गों, तंजानिया, मोजाम्बिक, नाइजर एवं बुर्किनाफासो आदि देश इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वैश्विक स्तर पर मलेरिया से होने वाली कुल मौतों में इन देशों का लगभग आधा हिस्सा है।
  • गौरतलब है कि इस बीमारी से अफ्रीका में प्रतिवर्ष लगभग 2,60,000 बच्चों की मृत्यु होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्र में मलेरिया बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण है।

वर्तमान स्थिति

  • पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा सुविधाओं में सुधार से मलेरिया की भयावहता को कम करने में सफलता प्राप्त हुई है। विश्व के कुछ देशों ने मच्छरों को मारने के लिये कीटनाशकों के प्रयोग एवं स्वच्छता को बढ़ावा देकर बीमारी पर काबू पाया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले 20 वर्षों में 11 देशों को मलेरिया से मुक्त घोषित किया है। इन देशों में लगातार तीन वर्षों तक शून्य मामले दर्ज किये गए थे। इन देशों में संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका, मोरक्को एवं अर्जेंटीना आदि शामिल हैं।

भारत के लिये उम्मीद

  • भारत भी मलेरिया से प्रभावित प्रमुख देशों में से एक है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी से होने वाली मृत्यु में कमी आई है, परंतु अभी भी इस बीमारी से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या लाखों में है। परंतु देश में इस टीके के जल्द आने की संभावना कम है।
  • भारत ने चिकित्सीय सुविधाओं एवं अन्य उपायों से इस रोग पर पर्याप्त नियंत्रण कर लिया है। देश में वर्ष 2010 में मलेरिया से 1018 मौतें हुईं, जबकि वर्ष 2020 में यह घटकर 93 हो गईं हैं।

निष्कर्ष

मलेरिया के लिये विकसित यह टीका निश्चित रूप से मानवता के हित में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। हालाँकि, इसकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है। इस दिशा में अन्य प्रयोग भी किये जा रहे हैं, ताकि टीके की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सके।

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