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Zero FIR

प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-2

चर्चा में क्यों -

हाल ही में दो मणिपुरी महिलाओं को राज्य के थौबल जिले में आपत्तिजनक अवस्था में घुमाया गया उसके बाद Zero FIR की चर्चा तेज हो गई है।

Zero FIR क्या है-

  • जब एक पुलिस स्टेशन को किसी अन्य पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में किए गए कथित अपराध के बारे में शिकायत मिलती है, तो वह FIR दर्ज करता है और फिर इसे आगे की जांच के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर देता है। इसे Zero FIR कहा जाता है।
  • इसमें कोई नियमित FIR नंबर नहीं दिया जाता है।
  • Zero FIR मिलने के बाद संबंधित पुलिस स्टेशन नई FIR दर्ज करता है और जांच शुरू करता है।

कब किया गया Zero FIR का प्रावधान-

  • पुडुचेरी सरकार द्वारा जारी वर्ष 2020 के परिपत्र के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न करने के आरोपी अपराधियों के लिए तेजी से सुनवाई, बढ़ी हुई सजा प्रदान करने तथा आपराधिक कानून में संशोधन का सुझाव देने के लिए गठित ‘न्यायमूर्ति वर्मा समिति’ की सिफारिशों के बाद Zero FIR का प्रावधान आया।
  • समिति का गठन वर्ष 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद किया गया था।
  • परिपत्र के अनुसार,पीड़ित द्वारा किसी भी पुलिस स्टेशन में Zero FIR दर्ज कराई जा सकती है, चाहे उनका निवास स्थान या अपराध घटित होने का स्थान कुछ भी हो।

Zero FIR का उद्देश्य क्या है-

  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित को पुलिस शिकायत दर्ज कराने के लिए दर-दर भटकना न पड़े। यह प्रावधान पीड़ित को त्वरित समाधान प्रदान करने के लिए है ताकि FIR दर्ज होने के बाद समय पर कार्यवाही की जा सके।

Zero FIR पर सुप्रीम कोर्ट की राय-

  • उत्तर प्रदेश पुलिस ने 2008 में एक बच्ची के लापता होने की FIR महीने भर बाद दर्ज की थी।
  • पूर्व जस्टिस आर.एस. सोढ़ी के अनुसार, ललिता कुमारी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णंय में कहा था कि भले ही अपराध किसी भी क्षेत्र में हुआ हो, लेकिन पुलिस जूरीस्डिक्शेन के आधार पर FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है।
  • पुलिस को हर हाल में पीडि़त व्यक्ति की FIR दर्ज करनी ही होगी। भले ही अपराध किसी भी थाना क्षेत्र में हुआ हो।
  • यह एक प्रकार की Zero FIR होगी और उस शिकायत को संबंधित थाने में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इसके बाद उस थाने में शिकायत मिलने के बाद जांच की कार्यवाही शुरू हो जाती है।

कैसे दर्ज करवा सकते हैं, Zero FIR -

  • Zero FIR दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं कि शिकायतकर्ता स्वयं ही पुलिस थाने जाए।
  • शिकायतकर्ता का रिश्तेदार , दोस्त कोई भी पुलिस थाने जाकर अपराध के संबंध में रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है।
  • यदि कोई आपातकाल की स्थिति आती है तो पीड़ित फोन कॉल या ई-मेल के माध्यम से अपने अपराध मामले की प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करवा सकता है।
  • FIR की वैधता के लिए संबंधित थाने की मुहर और पुलिस अधिकारी के Signature होने चाहिए।

Zero FIR दर्ज करना क्योंं जरूरी होता है-

  • संज्ञेय अपराध की श्रेणीं वाले सभी आपराधिक मामलों में पुलिस को तुरंत Zero FIR दर्ज करनी होती है। इसके अलावा केस ट्रांसफर करने से पूर्व ही मामले की जांच भी शुरू करनी होती है,ताकि शुरूआती सुबूत नष्ट न हों और कोई उन सुबूतों से छेड़छाड़ भी न कर सके।
  • जिस थाने में इस प्रकार की शिकायत दर्ज होती है, वह थाना अपनी शुरूआती जांच रिपोर्ट के साथ बाद में घटना स्थल से संबंधित थाने में केस ट्रांसफर करता है। यह पूरी प्रक्रिया Zero FIR कहलाती है।

रेप केस में Zero FIR कितनी मददगार साबित होती है-

  • अक्सर देखा जाता है कि, जब कोई रेप पीड़िता अपनी FIR दर्ज कराने के लिये संबंधित थाने में जाती है, तो अपमानित करके भगा दिया जाता है।
  • कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि बलात्का़र करने के बाद अपराधी पीड़िता को किसी दूसरी जगह ले जाकर फेंक देते हैं अथवा किसी बड़े रैकेट के चंगुल से छूट कर भागी लड़कियां दोबारा उस इलाके में जाकर अपनी FIR दर्ज कराना नहीं चाहती हैं।
  • ऐसे में Zero FIR एक मात्र ऐसा विकल्प होता है, जिसके जरिये वह थाने में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। इस प्रकार के अपराधों के शिकार पीड़ितों की शिकायत दर्ज करने से पुलिस मना नहीं कर सकती है।

FIR क्या है-

  • FIR का फुल फार्म – First Information Report होता है।
  • किसी घटना, दुर्घटना अथवा आपराधिक घटना की प्राथमिक सूचना को ही FIR कहा जाता है।
  • FIR के तहत सीरियस क्राइम के संबंध में पुलिस CRPC की धारा-154 के तहत मामला दर्ज करती है वहीं नॉन सीरियस क्राइम की बात करें तो पुलिस CRPC की धारा-482 के तहत मामला दर्ज करती है।
  • पुलिस स्टेसशन में घटना के ब्यौरे को लिखित रूप से दर्ज किया जाता है, जिसकी कॉपी शिकायतकर्ता को दी जाती है। FIR की यह कॉपी बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज होती है।

FIR किन- किन मामलों में दर्ज की जाती है-

अपराध दो श्रेणीं के होते हैं- 

1. संज्ञेय अपराध (cognizable crime)-

  • संज्ञेय अपराध के तहत गंभीर प्रकार के क्राइम आते हैं; जैसे-रेप ,मर्डर,घोटाला , फायरिंग आदि।
  • संज्ञेय अपराध के तहत पुलिस CRPC की धारा-154 के तहत मामला दर्ज करती है और FIR रिपोर्ट कर मामले की चार्ज शीट अदालत के सामने पेश करती है।
  • इस तरह के अपराध में शिकायत कर्ता Zero FIR दर्ज करवा सकता है।

2. असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence)-

  • ये बहुत मामूली किस्म के अपराध होते हैं, जैसे- आपसी मारपीट आदि के मामले।
  • इन मामलों में सीधे FIR दर्ज नहीं की जाती है,बल्कि इन्हें पहले मजिस्ट्रेट के पास रेफर कर दिया जाता है, जिसके बाद मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को समन जारी करता है। इसके बाद ही आगे की कार्यवाही शुरू होती है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- Zero FIR के बारे में कौन-सा कथन सही नहीं है ?

(a) FIR किसी भी थाने में लिखवाई जा सकती है ।
(b) इसमें शिकायतकर्ता को एक FIR नंबर दिया जाता है।
(c) इसका प्रावधान न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशों के बाद आया।
(d) इस समिति का गठन 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद किया गया था।

उत्तर- (b)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-

प्रश्न- Zero FIR किस प्रकार संज्ञेय अपराधों को कम करने में सहायक साबित होगा? यदि इसको संज्ञान में लिया गया होता तो क्या हाल में हुए मणिपुर के वीभत्स घटना को रोका जा सकता था? विवेचना कीजिए।

                                                                                                                                                                                               स्रोत - इंडियन एक्सप्रेस

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