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ऑरोरा बोरियालिस (Aurora Borealis)

  • दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव पर सामान्यतः रात में या सुबह होने से ठीक पहले दिखाई देने वाले हरे, लाल और नीले रंगों के मिश्रित प्रकाश को 'ऑरोरा' कहते हैं। ध्रुवों के समीप इसकी उत्पत्ति के कारण उत्तरी अक्षांशों में इसे 'ऑरोरा बोरियालिस' (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी अक्षांशों में 'ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस' (Aurora Australis) के नाम से जाना जाता है।
  • ऑरोरा बोरियालिस को अमेरिका (अलास्का), कनाडा, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड से, जबकि ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस को अंटार्कटिका, चिली, अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में उच्च अक्षांश में देखा जा सकता है।
  • सूर्य की सतह से आवेशित कण (सौर हवा) जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो ऑरोरा की उत्पत्ति होती है। पृथ्वी की ओर तीव्र गति से चलने वाली सौर पवन सूर्य के चुम्बकीय क्षेत्र को भी अपने साथ ले जाती है, जो मैग्नेटोस्फीयर को बाधित करता है। इससे 'ऑरोरल सबस्टॉर्म' उत्पन्न होता है।
  • मैग्नेटोस्फेयर में विशेष प्रकार की प्लाज़्मा तरंगें (कोरस तरंग) उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों के कारण मैग्नेटोस्फेयर में इलेक्ट्रॉन की वर्षा होती है, जिससे ध्रुवों पर मिश्रित रंगों के प्रकाश की उत्पत्ति होती है।
  • ’मैग्नेटोस्फेयर’ के इलैक्ट्रिक कण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से नियंत्रित होते हैं। जब सूर्य का चुम्बकीय क्षेत्र पृथ्वी के निकट पहुँचता है तो ध्रुवों के समीप उत्पन्न सुरक्षात्मक चुम्बकीय क्षेत्र उसे विक्षेपित कर देता है। इससे उत्तर और दक्षिण ध्रुवों पर इलेक्ट्रॉन और प्लाज़्मा तरंगों के परस्पर सम्मिलन से प्रकाश किरणें दिखाई देती हैं।
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