'ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर प्रोफाइलिंग' (BEOSP) को ब्रेन फ़िंगरप्रिंटिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह पूछताछ का एक न्यूरो मनोवैज्ञानिक तरीका है, जिसमें अपराध की जाँच ‘मानव मस्तिष्क के वैद्युत व्यवहार' की प्रतिक्रिया का अध्ययन करके की जाती है। इस परीक्षण में इलेक्ट्रोऐंसेफलोग्राम प्रक्रिया (Electroencephalogram process) के माध्यम से इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल इम्पल्स को हटाकर अपराध में किसी संदिग्ध की भागीदारी का पता लगाया जाता है।
इस परीक्षण के तहत अभियुक्त की सहमति लेकर उन्हें इलेक्ट्रोड कैप पहनाई जाती है, जिसके बाद अपराधी के दिमाग में न्यूरॉन्स के ट्रिगर, जो मस्तिष्क तरंगें (Generate Brainwaves) उत्पन्न करता है, की जाँच के लिये अपराध से सम्बंधित दृश्य या ऑडियो क्लिप दिखाई जाती है। अपराध में अभियुक्त की भागीदारी का निर्धारण परीक्षण परिणामों के आधार पर किया जाता है। यह परीक्षण 'ज्ञान' और 'अनुभव' पर आधारित है।
इस प्रक्रिया से इतर पॉलीग्राफ टेस्ट में अभियुक्त से प्रश्न किये जाते हैं तथा आरोपी व्यक्ति के शारीरिक संकेतकों जैसे रक्तचाप, पल्स रेट, श्वसन और शारीरिक हाव-भाव के आधार पर अपराध में संलिप्तता का अध्ययन किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार कुछ व्यक्ति रक्तचाप और पल्स रेट को संकट के समय में नियंत्रित करने में सक्षम हो सकते हैं, जबकि बी.ई.ओ.एस.पी. परीक्षण अधिक विश्वसनीय परिणाम प्रदान करता है।
ध्यातव्य है कि सेल्वी बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक मामले (2010) में उच्चतम न्यायालय के अनुसार किसी भी अभियुक्त को उसकी सहमति के बिना नार्को एनालिसिस, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग परीक्षणों के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता। साथ ही, परीक्षण के परिणाम एकमात्र साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं। हालांकि, इन परिणामों को साक्ष्य का हिस्सा बनाया जा सकता है।