जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विभिन्न देशों द्वारा पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपनाए गए उपायों की समीक्षा करने के लिये 12 दिसम्बर, 2020 को ‘जलवायु महत्वाकांक्षी शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन की मेज़बानी संयुक्त राष्ट्र, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से की गई।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये ठोस कदम उठाने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किये गए। इस समझौते में, वैश्विक ताप वृद्धि को औद्योगिक-पूर्व के तापमान स्तर की तुलना में 1.5℃ तक सीमित करने को लेकर प्रतिबद्धताएँ व्यक्त की गई थीं।
भारत पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। इस संदर्भ में भारत ने विश्व मंच पर 'अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन' तथा 'आपदा प्रतिरोधी संरचना के लिये गठबंधन' जैसी दो प्रमुख पहलें भी शुरू की हैं। ध्यातव्य है कि नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है, वर्ष 2022 से पहले भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के बढ़कर 175 गीगावाट हो जाने की सम्भावना है।
भारत ने वर्ष 2005 की तुलना में कार्बन उत्सर्जन को 21% तक कम किया है। इसकी सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 के मुकाबले 33.37 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2020 में 36 गीगावाट हो गई है। अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत ने वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट तक के ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस सम्मेलन में विश्व के देशों से 'कार्बन तटस्थता' के लक्ष्य को हासिल करने तक जलवायु आपातकाल घोषित करने के साथ हरित अर्थव्यवस्था आधारित वृद्धि को अपनाने की अपील की है।