बादल फटना, वस्तुतः किसी छोटे क्षेत्र में कम अवधि में तीव्र वर्षा की घटना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, यह लगभग 20-30 वर्ग किमी. के भौगोलिक क्षेत्र में 100 मिमी./घंटा से अधिक अप्रत्याशित वर्षा के साथ एक मौसमी घटना है।
तापमान बढ़ने के साथ वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ती जाती है, जो कम अवधि की तीव्र वर्षा के साथ कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप पहाड़ी क्षेत्रों तथा शहरों में अचानक बाढ़ आ जाती है। वर्ष 2017 में किये गए अध्ययन के अनुसार, भारतीय हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की अधिकतर घटनाएँ जुलाई तथा अगस्त माह में हुई हैं।
केदारनाथ क्षेत्र में बादल फटने के पीछे मौसम संबंधी कारकों का अध्ययन किया गया था। इसके संबंध में प्रकाशित एक अध्ययन में वायुमंडलीय दबाव, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, बादल अंश, बादल कण त्रिज्या, वायु की गति, दिशा और बादल फटने के दौरान पूर्व तथा बाद में सापेक्ष आर्द्रता का विश्लेषण किया गया।
जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व भर में बादल फटने की आवृत्ति व तीव्रता में वृद्धि हुई है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने हाल ही में उल्लेख किया कि अगले पाँच वर्षों में कम-से-कम एक वर्ष में वार्षिक औसत वैश्विक तापमान अस्थायी रूप से पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होने की संभावना लगभग 40% है।