यह पश्चिम बंगाल में लुप्त मोम विधि का उपयोग करके निर्मित की जाने वाली मूर्तिकला का एक रूप है। इसका प्रलेखित इतिहास लगभग 5,000 वर्ष पुराना है।
आदिम सादगी एवं मोहक लोकला रूपांकनों के कारण ढोकरा उत्पादों की घरेलू व विदेशी बाजारों में अत्यधिक मांग हैं।
ढोकरा उत्पादों में प्रमुख रूप से घोड़े, हाथी, मोर, उल्लू, धार्मिक चित्र, मापन कटोरे, दीप मंजूषा आदि का निर्माण शामिल है।
पश्चिम बंगाल के बांकुरा में बिकना एवं बर्धमान में दरियापुर इसके प्रमुख केंद्र थे। हालाँकि, वर्तमान में पश्चिम बंगाल का लाल बाज़ार इसके प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है।