‘दोखमेनाशिनी’ पारसी समुदाय की 3000 वर्ष प्राचीन अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपरा है। इसके अनुसार पारसी लोगों के शव को अंतिम संस्कार के लिये ‘दखमा’ में रखा जाता है, जिसे ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ भी कहते हैं।
‘टावर ऑफ साइलेंस’ अधिवास क्षेत्र से दूर स्थित एक गोलाकार ढाँचा होता है। इसकी चोटी पर शव को रख दिया जाता है, जहाँ गिद्धों द्वारा भोजन के रूप में इसका उपभोग कर लिया जाता है तथा हड्डियाँ धीरे-धीरे स्वतः अपघटित हो जाती हैं।
पारसी ‘अहुरमज़्दा ईश्वर’ में विश्वास रखते हैं। इस धर्म में पृथ्वी, जल तथा अग्नि जैसे तत्त्वों को बहुत ही पवित्र माना गया है। इनका मानना है कि शव को जलाने से अग्नि, दफनाने से पृथ्वी तथा नदी में प्रवाहित करने से जल प्रदूषित होता है।
समय के साथ हुए परिवर्तनों तथा गिद्धों की संख्या में गिरावट के चलते पारसी समुदाय के लिये अपनी इस परंपरा को बनाए रखना कठिन हो गया है तथा वे नई प्रणाली अपनाने के लिये मजबूर हुए हैं। नई प्रणाली के तहत बॉम्बे पारसी पंचायत ने ‘दखमा’ में सौर पैनल का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया है, जिससे शव धीरे-धीरे जलकर समाप्त हो जाता है।