New
July Offer: Upto 75% Discount on all UPSC & PCS Courses | Offer Valid : 5 - 12 July 2024 | Call: 9555124124

लेशमेनियासिस (Leishmaniasis)

‘लेशमेनियासिस’ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैलने वाली एक बीमारी है, जो भारत सहित करीब 100 देशों में पाई जाती है। यह बीमारी लेशमेनिया नामक प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होती है, सैंड फ्लाई इसकी वाहक (Transmitter) है।

  • हालाँकि इस बीमारी के उपचार हेतु कोई प्रत्यक्ष दवा तो उपलब्ध नहीं है, परंतु विश्व भर में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन इसके उपचार के लिये सर्वाधिक मान्यता प्राप्त औषधि है।
  • यह बीमारी 3-प्रकार की होती है–

i. विसरल लेशमेनियासिस (Visceral Leishmaniasis)– तीनों प्रकारों में यह सबसे ख़तरनाक है, जो शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करती है। इसे काला अज़ार तथा दमदम बुखार आदि नामों से भी जाना जाता है। यह यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen), अस्थि मज्जा (Bone Marrow) जैसे अंगों को प्रभावित करती है। बुखार, वज़न घटना, खून की कमी, सूजन इत्यादि इसके प्रमुख लक्षण हैं।

ii. क्यूटेनियस लेशमेनियासिस (Cutaneous Leishmaniasis)- त्वचा पर घाव होना इसका प्रमुख लक्षण है।

iii. म्यूकोक्यूटेनियस लेशमेनियासिस (Mucocutaneous Leishmaniasis)– आंतरिक अंगों की झिल्ली पर घाव होना इसका प्रमुख लक्षण है।

  • हाल ही में, पुणे स्थित ‘राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र’ (NCCS) ने काला अज़ार (विसरल लेशमेनियासिस) के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता (Drug Resistance) से लड़ने हेतु बायो मॉलिक्यूल की खोज की है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR