हाल ही में, मैरीलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए बुध ग्रह के मेंटल के सापेक्ष इसके कोर का आकार बड़ा होने संबंधी अध्ययन ने प्रचलित परिकल्पना के संबंध में विवाद उत्पन्न कर दिया है।
पूर्व में वैज्ञानिकों का तर्क था कि हमारे सौर मंडल के निर्माण के दौरान अन्य पिंडों के साथ हिट-एंड-रन टकराव के परिणामस्वरूप बुध ग्रह के बड़े व घने, धातु के कोर पीछे छूट गए, जिसने चट्टानी मेंटल आवरण को हटा दिया था। किंतु नवीन शोध से पता चलता है कि इसका कारण सूर्य का चुंबकत्व है न कि टकराव।
नवीन शोध के अनुसार एक चट्टानी ग्रह के कोर का घनत्व, द्रव्यमान तथा लौह सामग्री सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र से इसकी दूरी के अनुसार प्रभावित होती है। इसके अभिविन्यास के अनुसार सौर मंडल के चार आंतरिक ग्रहों के सूर्य से आगे बढ़ते ही उनके कोर में धातु की मात्रा कम होने लगती है। इससे यह ज्ञात होता है कि सौर मंडल के निर्माण के दौरान कच्चे माल का वितरण सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया गया था।
शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एक नए मॉडल से पता चलता है कि सौर मंडल के प्रारंभिक गठन के दौरान जब सूर्य धूल तथा गैस के परिक्रमण करते हुए बादलों से घिरा हुआ था तब लोहे के कण सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा केंद्र की ओर खींचे गए थे। जब इन बादलों के प्रभावाधीन ग्रहों का निर्माण शुरू हुआ तो सूर्य के समीप अवस्थित ग्रहों के कोर में दूर स्थित ग्रहों की तुलना में अधिक लौह तत्त्व एकत्रित हो गया था।