‘ऑर्गेनोक्लोरीन’ क्लोरीनयुक्त यौगिकों का एक समूह है, जिसमें कम-से-कम एक सहसंयोजक क्लोरीन परमाणु बंध (Covalently Bonded Chlorine Atom) होता है। यह खाद्य जाल के माध्यम से जीवों के भीतर जैव आवर्धन तथा जैवसंचयन करता है।
ऑर्गेनोक्लोरीन पर्यावरण में स्थिर होते हैं तथा वायु व जल के माध्यम से लम्बी दूरी तय करने में सक्षम होते हैं।जिन क्षेत्रों में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग किया जाता है वहाँ ये यौगिक साँस लेने, लोगों के सम्पर्क में आने तथा मछली, डेयरी उत्पादों व अन्य वसायुक्त खाद्य पदार्थों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। ओ.सी. के कारण कई हानिकारक पदार्थ केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र में प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
अपेक्षाकृत सस्ते होने के कारण ओ.सी. का एशिया के विभिन्न विकासशील देशों में कीटनाशकों, जैसे- डी.डी.टी, एच.सी.एच, एल्ड्रिन आदि के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। वैसे, अधिकांश देशों में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है। विदित है कि कीटनाशकों में इस्तेमाल किये जाने वाले 40% रसायन ओ.सी. वर्ग से होते हैं।
ओ.सी. पर्यावरण में अत्यधिक दृढ़ता के साथ स्थायी जैविक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants -POPs) के वर्ग से सम्बंधित है। ध्यातव्य है कि स्थाई जैविक प्रदूषकों पर वर्ष 2001 में 'स्टॉकहोम अभिसमय' नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय संधि हो चुकी है, जो वर्ष 2004 से प्रभावी है। इसका उद्देश्य, स्थाई जैविक प्रदूषकों के उत्पादन और उपयोग को समाप्त या प्रतिबंधित करना है।
हाल ही में, आंध्र प्रदेश के एलुरु में एक रहस्यमयी बीमारी से कई लोग प्रभावित हुए हैं। परीक्षण रिपोर्ट के आरम्भिक विश्लेषण में ओ. सी. को इसका कारण माना जा रहा है। ऑर्गेनोक्लोरिन कीटनाशकों के सम्पर्क में आने से सिरदर्द, चक्कर आना, भ्रम, माँसपेशियों में कमज़ोरी आदि लक्षण दिखाई देते हैं।