केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय देश में स्वदेशी फॉस्फेटिक चट्टानों के भंडारण का पता लगाएगा, जिसे उर्वरक उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। भारत में फॉस्फेट चट्टानें मुख्य रूप से केवल दो राज्यों राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं।
फॉस्फोरस या फॉस्फेट चट्टानें असंसाधित अयस्क हैं, जो अवसादी या आग्नेय चट्टान के रूप में उपलब्ध हो सकती हैं। ये चीन, मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में बड़े अवसादी निक्षेपों, जबकि ब्राज़ील, कनाडा, फिनलैंड, रूस, दक्षिण अफ्रीका तथा ज़िम्बाब्वे में आग्नेय निक्षेपों के रूप में पायी जाती हैं।
विश्व भर में 85% से अधिक फॉस्फेट चट्टानों के खनन का उपयोग फॉस्फेट उर्वरक के निर्माण के लिये किया जाता है। सभी सामान्य उर्वरकों की एन.पी.के. रेटिंग होती है, इन उर्वरकों में फास्फोरस ‘पी’ पौधों के लिये आवश्यक है।
फॉस्फेटिक चट्टान, डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) तथा नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश (NPK) उर्वरकों के लिये मुख्य कच्चा माल है। वर्तमान में भारत की इस कच्चे माल के लिये आयात पर निर्भरता 90% है। इसकी अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में अस्थिरता होने पर उर्वरकों की घरेलू कीमतें प्रभावित होती हैं, जिससे देश में कृषि क्षेत्र की प्रगति तथा विकास में बाधा के साथ किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
वर्तमान में देश में 30 लाख मीट्रिक टन फॉस्फोराइट भंडार मौजूद है। सरकार द्वारा इसके उत्पादन में वृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। ये भंडार राजस्थान, प्रायद्वीपीय भारत के मध्य भाग, हीरापुर (मध्य प्रदेश), ललितपुर (उत्तर प्रदेश), मसूरी सिंकलाइन तथा कडप्पा बेसिन (आंध्र प्रदेश) में मौजूद हैं।