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वारली चित्रकला (Warli Painting)

हाल ही में, उर्वरक विभाग के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के एक उपक्रम नेशनल फर्टिलाइज़र लिमिटेड (NFL) द्वारा भारतीय लोक कला को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नोएडा स्थित कॉरपोरेट कार्यालय की बाहरी दीवारों को महाराष्ट्र की प्रसिद्ध वारली चित्रकला द्वारा सजाया गया है।

  • वारली (Warlis) मुख्यतः महाराष्ट्र-गुजरात सीमा के पहाड़ी एवं तटीय इलाकों (उत्तरी सह्याद्रि क्षेत्र) में रहने वाली एक देशज जनजाति है। 'वारली' शब्द का अर्थ होता है- ‘भूमि या क्षेत्र का टुकड़ा’। इनकी बोली ‘वारली’ है, जिसकी अपनी कोई लिपि नहीं है। दक्षिणी भारत की इंडो-आर्यन भाषाओं से इसका सम्बंध माना जाता है।
  • वारली चित्रकला परम्परा को 2500-3000 ई.पू. के बीच का माना जाता है। यह चित्रकारी, भीमबेटका की शैल गुफाओं के चित्रों के समान है, जिसमें मनुष्य और प्रकृति के बीच घनिष्ठ सम्बंधों को दर्शाया गया है। फसल पैदावार, शिकार, मछली पकड़ना, खेती, उत्सव, नृत्य, पेड़ और जानवरों आदि से जुड़े प्राकृतिक दृश्य प्रायः इस चित्रकारी का केंद्रीय विषय होते हैं।
  • मुख्यतः महिलाओं द्वारा की जाने वाली इस चित्रकारी में वृत्त, चक्र, त्रिकोण एवं वर्ग की तरह ही मौलिक चित्रात्मक शब्दावली का उपयोग किया जाता है, इसकी हर आकृति का कोई अर्थ होता है, जैसे वृत्त का आशय सूर्य व चंद्रमा है, जबकि त्रिकोण का अर्थ पर्वत है।
  • वारली चित्रकला में चित्रों को सजाने के लिये चावल की लेई, गोंद एवं जल के मिश्रण का प्रयोग किया जाता है, साथ ही तूलिका के रूप में बाँस की छड़ी का प्रयोग किया जाता है।
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