यक्षगान, कर्नाटक में प्रचलित पारम्परिक नृत्य-लोकनाट्य है। इसकी शुरुआत 10वीं से 16वीं शताब्दी के बीच मानी जाती है।
- वस्तुतः यह मंच, संगीत, नृत्य, संवाद तथा वेशभूषा का कलात्मक समिश्रण है। इसकी प्रस्तुति रात के समय प्रायः धान के खेतों में की जाती है।
- यह वैष्णव भक्ति आंदोलन से काफी प्रभावित है। इसकी कहानियाँ मूलतः रामायण, महाभारत, भागवत तथा अन्य हिन्दू महाकाव्यों से ली गई हैं।
- इसमें चेंड, मेडल, मृदंगम तथा घंटियाँ वाद्ययंत्र के रूप में प्रयुक्त होती हैं। केरेमन शिवराम हेगड़े, चित्तानी रामचंद्र हेगड़े तथा शेनी गोपालकृष्ण भट्ट इसके प्रमुख कलाकार रहे हैं।
- सामान्यतः यह कन्नड़ भाषा में सुनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, मलयालम तथा तुलु भाषाओं में भी इसका मंचन किया जाता है।
- हाल ही में, यक्षवाहिनी ट्रस्ट के अंतर्गत कुछ यक्षगान प्रेमियों द्वारा स्वैच्छिक सामुदायिक प्रयास द्वारा यक्षगान की 900 से अधिक लिपियों को डिजटलीकृत किया है। साथ ही, कोरोना वायरस (COVID 19) के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये यक्षगान की प्रस्तुतियों का प्रयोग किया जा रहा है।