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उत्तर प्रारूप
भूमिका
- जीवाश्म ईंधन अनवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत हैं जो पृथ्वी पर सीमित भंडार के रूप में स्थित हैं।
- यह एक हाइड्रोकार्बन युक्त सामग्री होता है जैसे- कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस।
- यह जीवाश्म ईंधन मृत पौधों और जानवरों के अवशेषों से पृथ्वी की परत में प्राकृतिक रूप से बनता है जिसे ईंधन के रूप में निकाला और जलाया जाता है।
मुख्य भाग
- जीवाश्म ईंधन को जलाने से कार्बन, नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं। सल्फर के ऑक्साइड अम्लीय होते हैं और वे अम्लीय वर्षा का कारण बनते हैं जिससे हमारे जल और मृदा के संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- जीवाश्म ईंधन के जलने से वायु में हानिकारक कणिकाएं और धुआँ प्रदूषण फैलते हैं जिस कारण कई तरह के श्वसन संबंधी रोग होते हैं।
- कार्बन डाइऑक्साइड गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है जिसके कारण जलवायु परिवर्तन जैसी घटना देखी जा रही है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदा जैसे-बाढ़,सूखा, वनों की आग तथा अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
समाधान :
- कार्बन डाइऑक्साइड गैसों के उत्सर्जन में कमी करके 1.5 तक ला कर वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करना।
- पेरिस,UNFCCC, रियो डी जेनेरो पृथ्वी शिखर सम्मेलन आदि संधियों या समझौतों द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों का पालन करना आदि।
निष्कर्ष
हमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करके नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत जैसे –सौर ऊर्जा, पवन एवं ज्वारीय ऊर्जा का उपयोग करते हुए कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हॉउस गैसों की मात्र में कमी करना पड़ेगा।जिससे आने वाले समय में हम वैश्विक तापमान के प्रभाव को कम कर सकते हैं।