गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत।
ज्योतिराव गोविंदराव फुले एक सामाजिक कार्यकर्ता,लेखक तथा जाति-विरोधी समाज सुधारक थे।
वर्ष 1873 में ज्योतिबा फुले ने दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए 'सत्यशोधक समाज'की स्थापना की और इसी वर्ष उनकी पुस्तक "गुलामगिरी" का प्रकाशन भी हुआ।
वर्ष 1876 में इन्हें तत्कालीन पूना नगरपालिका में आयुक्त (नगर परिषद सदस्य) नियुक्त किया गया।
ज्योतिबा फुले बाल विवाह के विरोधी तथा विधवा विवाह के समर्थक थे।
इन्होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत कार्य किया, साथ ही किसानों की स्थिति सुधारने के लिए भी प्रयास किये।
इन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को स्वयं शिक्षा प्रदान की, जो भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थीं।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने वर्ष 1854 में स्त्रियों के लिए देश के प्रथम विद्यालय की स्थापना की।
वर्ष 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" कहा गया।
ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ करवाया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली।
ज्योतिबा फुले को महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है, 1888 में, महाराष्ट्रीयन सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वंदेकर ने उन्हें 'महात्मा'की उपाधि प्रदान की।