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शॉर्ट न्यूज़: 14 दिसंबर, 2020

शॉर्ट न्यूज़: 14 दिसंबर, 2020


मातृ सहयोगिनी समितियाँ

सतत् पर्वत विकास शिखर सम्मेलन

आर.टी.जी.एस. (RTGS) सुविधा में बदलाव

मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग


मातृ सहयोगिनी समितियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य भर में आंगनवाड़ी या डे-केयर केंद्रों पर दी जाने वाली सेवाओं की बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिये माताओं के नेतृत्व वाली ‘मातृ सहयोगिनी समितियों’ के गठन हेतु एक आदेश जारी किया है।

मातृ सहयोगिनी समितियाँ

  • मातृ सहयोगिनी समिति या माताओं की सहयोग समिति में प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्रों पर 10 माताओं को शामिल किया जाएगा। ये समितियाँ एकीकृत बाल विकास सेवा तथा राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत लाभार्थियों की समस्याओं का प्रतिनिधित्व करेंगी।
  • राज्य सरकार की इस पहल का उद्देश्य राज्य में भूख और कुपोषण की समस्या के प्रति सामुदायिक प्रतिक्रिया को मजबूत करना है।
  • समितियों में एक महिला पंच, समुदाय में सक्रिय महिलाएँ एवं स्वयंसेवी, स्थानीय स्कूल के शिक्षक और स्वयं सहायता समूह (SHG) की महिला प्रमुख भी शामिल होंगी।
  • लाभार्थियों में 6 महीने से 6 वर्ष तक के बच्चे, किशोरवय लड़कियाँ, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ शामिल होंगी।
  • समिति में शामिल सदस्य आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को परोसे जाने वाले भोजन के लिये पौष्टिक और स्वादिष्ट व्यंजनों का सुझाव देने के साथ-साथ उनके साप्ताहिक राशन वितरण की निगरानी भी करेंगी।
  • ध्यातव्य है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत आँगनवाड़ी केंद्रों की गतिविधियों के सुदृढ़ीकरण, पारदर्शिता एवं जवाबदेही के लिये सतर्कता समिति एवं सोशल ऑडिट व्यवस्था का प्रावधान है। मातृ सहयोगिनी समिति इस प्रयोजन के लिये सतर्कता समिति के रूप में कार्य करेगी।

सतत् पर्वत विकास शिखर सम्मेलन

पृष्ठभूमि

  • सतत् पर्वत विकास शिखर सम्मेलन (SMDS) का नौवां संस्करण 11 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर प्रारम्भ हुआ। इसका आयोजन भारतीय पर्वत पहल (IMI) द्वारा किया जा रहा है।
  • विदित है कि एस.एम.डी.एस. का पहला आयोजन नैनीताल में वर्ष 2011 में किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • इस वर्ष के शिखर सम्मेलन की थीम- ‘कोविड-19 के बाद एक लचीली पर्वतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये उभरते रास्ते : अनुकूलन, नवाचार और गति’ है।
  • इस शिखर सम्मेलन में प्रवासन, जल सुरक्षा, जलवायु लचीलापन और कृषि क्षेत्र के लिये अभिनव समाधान तथा भारतीय हिमालय क्षेत्र में आपदा जोखिम को कम करने जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाना है।
  • साथ ही, इस क्षेत्र की नीतियों, स्थानों, उत्पादों और व्यक्तित्वों को एकीकृत करने के लिये 'हिमालयन विजन' की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया।

भारतीय हिमालयन क्षेत्र

  • भारतीय हिमालयन क्षेत्र में जम्मू व कश्मीर और लद्दाख संघशासित क्षेत्रों के साथ-साथ नौ राज्य, यथा- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा व मेघालय शामिल हैं।
  • इसके अतिरिक्त असम के कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग व दीमा हसाओ तथा प.बंगाल के दार्जिलिंग व कलिम्पोंग ज़िले भी इस क्षेत्र में शामिल हैं।

आर.टी.जी.एस. (RTGS) सुविधा में बदलाव

चर्चा में क्यों?

डिजिटल भुगतान को गति देने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 14 दिसम्बर से चौबीसों घंटे और सातों दिन (24*7) रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) के माध्यम से धन हस्तांतरण की अनुमति प्रदान की है।

नए बदलाव

  • आर.टी.जी.एस. की सुविधा ‘दिन के अंत’ और ‘दिन के प्रारम्भ’ की नियत प्रक्रियाओं के मध्य-अंतराल को छोड़कर चौबीसों घंटे ग्राहक और अंतर-बैंक लेन-देन के लिये उपलब्ध होगी।
  • आर.टी.जी.एस. की सुविधा को समय-समय पर संशोधित आर.टी.जी.एस. प्रणाली विनियम, 2013 द्वारा शासित किया जाता रहेगा।
  • सामान्य बैंकिंग अवधि के बाद किये जाने वाले आर.टी.जी.एस. लेनदेन के ‘स्ट्रैट थ्रू प्रोसेसिंग’ (STP) मोड़ के प्रयोग से स्वचालित होने की उम्मीद है।
  • आर.टी.जी.एस. प्रणाली का प्रयोग मुख्यत: बड़े मूल्य के लेनदेन के लिये किया जाता है। यह एक वास्तविक समय आधारित लेनदेन प्रणाली है। आर.टी.जी.एस. के माध्यम से प्रेषित की जाने वाली न्यूनतम राशि ₹ 2,00,000 है और इसकी कोई ऊपरी या अधिकतम सीमा नहीं है।

पूर्ववर्ती सुविधा

  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ग्राहकों के लिये आर.टी.जी.एस. लेन-देन की सुविधा प्रत्येक महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को छोड़कर सप्ताह के सभी कार्य दिवसों में सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक उपलब्ध है।
  • साथ ही, आर.बी.आई. ने जुलाई 2019 से आर.टी.जी.एस के माध्यम से होने वाले लेन-देन पर शुल्क लगाना बंद कर दिया है।

मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, पश्चिमी घाट की स्थानिक प्रजाति मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग को पहली बार केरल के त्रिशूर ज़िले में रिकॉर्ड किया गया है।

मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग

  • मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग का वैज्ञानिक नाम मर्कुराना मिरिस्टिकापालुस्ट्रिस (Mercurana Myristicapalustris) है। यह पेड़ों पर रहने वाली एक दुर्लभ प्रजाति है।
  • इस मेंढक को पहली बार वर्ष 2013 में कोल्लम ज़िले के अगस्त्यमलाई पहाड़ी के पश्चिमी तलहटी में मिरिस्टिका दलदल में देखा गया था।

mercurana-myristicapalustris

  • अगस्त्यमलाई की तलहटी में पाए जाने वाले अन्य मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग के विपरीत ये मेंढक पूरे जून तथा जुलाई के शुरूआत में भी सक्रिय पाए गए और गैर-मिरिस्टिका दलदल के लिये अनुकूलित हो गए।
  • इससे सम्बंधित अध्ययन ‘सरीसृप और उभयचर’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

अद्वितीय विशेषताएँ

  • पेड़ों पर पाई जाने वाली यह प्रजाति अपने प्रजनन काल के दौरान केवल कुछ हफ्तों के लिये सक्रिय होने के कारण दुर्लभ हैं।
  • इस दौरान पेड़ों के उच्च शिखर से नीचे उतरकर नर मेंढक अत्यधिक संख्या में इकट्ठा हो जाते हैं।
  • अन्य मेंढकों के विपरीत इनका प्रजनन काल प्री-मानसून सीज़न अर्थात् मई में शुरू होता है और जून में मानसून के पूरी तरह से सक्रिय होने से पहले समाप्त हो जाता है।
  • प्रजनन काल की समाप्ति से पूर्व मादा मेंढक अपने नर समकक्षों के साथ वनों की सतह पर उतरते हैं। मादा मेंढक कीचड़ खोदकर उथले बिल में अंडे देती हैं।
  • प्रजनन और अंडे देने के बाद वे पेड़ की ऊँची कैनोपियों में वापस चले जाते हैं और अगले प्रजनन काल तक बहुत कठिनाई से दिखाई पड़ते हैं।

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