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शॉर्ट न्यूज़: 18 फ़रवरी, 2022

शॉर्ट न्यूज़: 18 फ़रवरी, 2022


इज़रायली प्रधानमंत्री की बहरीन यात्रा

आज़ादी में तारापुर नरसंहार की भूमिका

झारखंड में भाषा व अधिवास नीति का विरोध


इज़रायली प्रधानमंत्री की बहरीन यात्रा

चर्चा में क्यों

हाल ही में, इज़रायल के प्रधानमंत्री ने बहरीन की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा की। इसे अत्यधिक ऐतिहासिक माना जा रहा है।

यात्रा का महत्त्व

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  • इस यात्रा को इज़रायल और खाड़ी देशों (बहरीन, कुवैत, इराक, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) के मध्य विकसित हो रहे संबंधों का संकेत माना जा रहा है।
  • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के कारण इन सात खाड़ी देशों के साथ इजरायल के संबंधों में कड़वाहट आ गई थी।
  • इस यात्रा का लक्ष्य अब्राहम समझौते में व्यापार, जन संपर्क सहित अन्य आयामों को जोड़ना है। यह अमेरिका के सहयोग से वर्ष 2020 में इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात के मध्य हस्ताक्षरित 'अब्राहम समझौते' के पश्चात प्रमुख बैठक है।
  • उल्लेखनीय है दिसंबर 2021 में पहली बार इज़रायल के किसी प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात का दौरा किया था।
  • दोनों पक्षों ने एशिया और यूरोप के बीच वस्तुओं की आवाजाही के साथ-साथ यहूदी एवं मुस्लिम आर्थिक उद्यमियों व व्यापारियों द्वारा इज़राइल और बहरीन के भौगोलिक लाभों का उपयोग करने पर चर्चा की।

अब्राहम समझौता

  • सितंबर 2020 में इज़रायल ने बहरीन तथा यू.ए.ई. के साथ सामान्यीकरण समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इसको सामूहिक रूप से अब्राहम समझौते के नाम से जाना जाता है।
  • यह समझौता ईरान का मुकाबला करने के लिये खाड़ी देशों के क्षेत्रीय सुरक्षा एजेंडा का हिस्सा है। इसके तहतइज़रायल, वेस्ट बैंक के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करने की अपनी योजना को विराम देने पर सहमत हो गया है।

आज़ादी में तारापुर नरसंहार की भूमिका

चर्चा में क्यों

बिहार के मुख्यमंत्री ने मुंगेर ज़िले के तारापुर में ब्रिटिश पुलिस द्वारा मारे गए 34 स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में 15 फरवरी को राजकीय स्तर पर ‘शहीद दिवस’ ​​के रूप में मनाए जाने की घोषणा की है। विदित है कि प्रधानमंत्री ने भी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तारापुर नरसंहार का उल्लेख किया था।

तारापुर नरसंहार (15 फरवरी, 1932) : पृष्ठभूमि

  • 23 मार्च, 1931 को लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फाँसी के विरोध में प्रदर्शन हुए। इस कारण मुंगेर में स्वतंत्रता सेनानी श्रीकृष्ण सिंह, नेमधारी सिंह, निरापद मुखर्जी, पंडित दशरथ झा, बासुकीनाथ राय, दीनानाथ सहाय और जयमंगल शास्त्री को गिरफ्तार भी किया गया।
  • मुंगेर में स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधि के दो केंद्र थे- तारापुर के पास ढोल पहाड़ी और संग्रामपुर में सुपौर-जमुआ गाँव।
  • कॉन्ग्रेस नेता सरदार शार्दुल सिंह कविश्वर द्वारा सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का आह्वान तारापुर में गूंज उठा।
  • 15 फरवरी, 1932 को युवा स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह ने तारापुर के थाना भवन में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई, जिसकी जानकारी पुलिस को थी।
  • पुलिस द्वारा क्रूरतापूर्वक लाठीचार्ज के बावजूद गोपाल सिंह थाना भवन में झंडा फहराने में सफल रहे। लगभग 4,000 लोगों की भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, जिसमें नागरिक प्रशासन का एक अधिकारी घायल हो गया।
  • जवाबी कार्रवाई में पुलिस फायरिंग में 34 व्यक्ति शहीद हो गए। हालाँकि, हताहतों की संख्या के अधिक होने का दावा किया गया।

झारखंड में भाषा व अधिवास नीति का विरोध

चर्चा में क्यों

झारखंड के कई हिस्सों में मगही, भोजपुरी और अंगिका को ‘क्षेत्रीय भाषाओं’ के रूप में शामिल किये जाने और अधिवास नीति के विरुद्ध बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ये प्रदर्शन झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से ज़िला स्तर की चयन प्रक्रिया में ‘मगही’, ‘भोजपुरी’ और ‘अंगिका’ को क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में शामिल करने के विरोध में हो रहे हैं।
  • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि बोकारो और धनबाद ज़िलों में मगही और भोजपुरी भाषियों की आबादी कम है, इसलिये चयन प्रक्रिया में इन भाषाओं को शामिल करना उचित नहीं है।

क्षेत्रीय भाषाएँ और अनुसूचित भाषाएँ

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है तथा इन्हें अनुसूचित भाषा के रूप में संदर्भित किया गया है।
  • क्षेत्रीय भाषाओं को सूचीबद्ध करने की स्वतंत्रता राज्यों के पास है।
  • संविधान के अनुच्छेद-348 के अनुसार मूल रूप से अंग्रेजी को विधायी और न्यायिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी।

अधिवास नीति (Domicile Policy)

  • प्रदर्शनकारियों द्वारा राज्य की अधिवास नीति (Domicile Policy) के लिये भूमि अभिलेखों के प्रमाण के रूप में वर्ष 1932 को कट-ऑफ तिथि बनाने की मांग भी की जा रही है।
  • विदित है कि वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ‘अधिवास नीति’ में ढ़िलाई देते हुए रोज़गार मानदंड के लिये वर्ष 1985 को कट-ऑफ वर्ष बना दिया था।

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