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शॉर्ट न्यूज़: 21 दिसंबर, 2020

शॉर्ट न्यूज़: 21 दिसंबर, 2020


सेंटिनेलीज़ जनजाति

गुरुवायुर मंदिर का कूटम्बलम (Koothambalam of Guruvayur Temple)

बंदरो के लिये बचाव एवं पुनर्वास केंद्र

हिमालयन ट्रिलियम (ट्रिलियम गोवैनियम) Himalayan Trillium (Trillium Govanianum)


सेंटिनेलीज़ जनजाति

संदर्भ

हाल ही में, एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ANSI) ने अपने एक नीतिगत दस्तावेज़ में कहा है कि अंडमान के उत्तरी सेंटिनली द्वीप में वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक हितों के लिये होने वाले दोहन ने सेंटिनेल जनजाति के अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न कर दिया है। 

प्रमुख बिंदु

  • ए.एन.एस.आई. का यह दस्तावेज़ एक अमेरिकी नागरिक की हत्या के लगभग दो वर्ष बाद आया है। ऐसा अनुमान है कि जॉन एलन की हत्या सेंटिनलीज़ द्वारा की गई थी।
  • दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि इस द्वीप पर सेंटिनेल जनजाति का अधिकार आत्यंतिक अथवा ग़ैर-परक्राम्य (Non-Negotiable) है, अर्थात् इनके अधिकारों से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता है।
  • यह उत्तरी सेंटिनली द्वीप के लिये पहला विस्तृत नीतिगत दस्तावेज़ है, जिसे अंडमान और निकोबार प्रशासन के अनुरोध पर तैयार किया गया है।
  • विदित है कि ए.एन.एस.आई. मानव एवं सांस्कृतिक पहलुओं के लिये मानवशास्त्रीय अध्ययन और क्षेत्र डाटा अनुसंधान में संलग्न शीर्ष सरकारी संगठन है। यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन आता है, इसका मुख्यालय कोलकाता में है।

सेंटिनली जनजाति

  • उत्तरी सेंटिनली द्वीप पर निवास करने वाली सेंटिनेल जनजाति 70 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह पर पाई जाने वाली 5 असार्वजनिक जनजातियों में सर्वाधिक असार्वजनिक या सबसे अलग-थलग रहने वाली जनजाति है। वर्तमान में यह जनजाति केवल 50 से 100 की संख्या में ही बची है।
  • यह जनजाति एशिया में अंतिम बची असार्वजनिक जनजातियों (Untouched Tribes) में से एक है। शारीरिक बनावट तथा भाषाई समानताओं के आधार पर यह जनजाति जारवा के काफी करीब है।
  • यह जनजाति अंडमान के उत्तरी सेंटिनली द्वीप पर रहने वाले निग्रिटो समुदाय से संबंधित है। इस जनजाति के लोग अलग-थलग रहते हैं और बाहरी लोगों से शत्रुवत व्यवहार करते हैं।
  • अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह पर पाई जाने वाली अन्य जनजातियाँ- ग्रेट अंडमानीज़ (Great Andamenese), ओंगे (The Onge), शोम्पेन (The Shompen) और जारवा (Jarawas) हैं।

गुरुवायुर मंदिर का कूटम्बलम (Koothambalam of Guruvayur Temple)

संदर्भ

हाल ही में, केरल के गुरुवायुर श्रीकृष्ण मंदिर के पुनर्निर्मित कूटम्बलम को सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिये यूनेस्को एशिया-प्रशांत पुरस्कार के लिये चुना गया है।

कूटम्बलम

  • कूटम्बलम, मंदिर रंगमंच अर्थात् केरल के प्राचीन अनुष्ठानिक कला रूपों- कुथु, नंगियार कुथु और कूदीयाट्टम के मंचन के लिये एक बंद हॉल है। हॉल के भीतर बने मंच को मंदिर के गर्भगृह के समान पवित्र माना जाता है।
  • कूटम्बलम का निर्माण भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में दिये गए दिशानिर्देशों के अनुसार किया गया है। यह मंदिर मठ के अंदर मुख्यतः पंचप्रकार के भीतर निर्मित है। केरल परंपरा में इसे मंदिर परिसर के पंचप्रसादों में से एक माना जाता है। इन मंदिरों के आयाम में भिन्नता देखने को मिलती है।

गुरुवायुरमंदिर

  • यह एक हिंदू मंदिर है, जो भगवान गुरुवायुरप्पन (भगवान विष्णु का एक चार-सशस्त्र बालरूप) को समर्पित है, जो केरल के त्रिसूर ज़िले में स्थित है।
  • यह केरल में हिंदुओं के लिये सबसे मह्त्त्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक है और इसे अक्सर भू-लोक बैकुंठ (पृथ्वी पर विष्णु का पवित्र निवास) के रूप में जाना जाता है।इस मंदिर में गैर-हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति नहीं है। 5000 वर्षों से भी ज़्यादा प्राचीन इस मंदिर को ‘दक्षिण की द्वारका’ कहते हैं।

बंदरो के लिये बचाव एवं पुनर्वास केंद्र

संदर्भ

हाल ही में, तेलंगाना में बंदरों के लिये पहले बचाव एवं पुनर्वास केंद्र का उद्घाटन किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस बचाव एवं पुनर्वास केंद्र की स्थापना तेलंगाना के निर्मल ज़िले के चिंचोली गाँव के पास गांधी रमन्ना हरितावनम में की गई है।
  • इसके अंतर्गत मानव बस्तियों में उद्यम करने वाले बंदरों को चरणबद्ध तरीके से पकड़ा जाएगा और इन्हें पुनर्वास केंद्र में लाया जाएगा।यहाँ इनकी प्रजनन दर को न्यूनतम करने के लिये इनकी नसबंदी करके फिर से इन्हें जंगलों में छोड़ दिया जाएगा।
  • यह प्राइमेट के लिये देश में इस प्रकार का यह दूसरा तथा दक्षिण भारत का पहला केंद्र है। इससे पूर्व, हिमाचल प्रदेश में इस प्रकार का देश का पहला पुनर्वास केंद्र स्थापित किया गया था।
  • ध्यातव्य है कि पूर्व में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में बंदरों को ‘वर्मिन’ घोषित किया था। वर्मिन पशु वे होते हैं जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (धारा-62) के अंतर्गत राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार वध करने की अनुमति प्रदान करती है।

हिमालयन ट्रिलियम (ट्रिलियम गोवैनियम) Himalayan Trillium (Trillium Govanianum)

संदर्भ

हाल ही में, हिमालय में सामान्य रूप से पाई जाने वाली जड़ी-बूटी ‘हिमालयन ट्रिलियम’ (ट्रिलियम गोवैनियम) को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (IUCN) द्वारा संकटग्रस्त (Endangered) घोषित किया गया है।

हिमालयन ट्रिलियम

  • यह पौधा समुद्र तल से 2,400-4,000 मीटर की ऊँचाई पर हिमालय के समशीतोष्ण और उप-अल्पाइन क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में यह केवल चार राज्यों- हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, सिक्किम और उत्तराखंड में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह भूटान, नेपाल, चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी पाया जाता है।
  • इसे ‘नागचत्री’ के नाम से भी जाना जाता है। यह जड़ी-बूटी 15-20 सेमी. की ऊँचाई तक बढ़ती है।अपने बाज़ार मूल्य में वृद्धि के बाद अब यह तस्करों के लिये एक आसान लक्ष्य बन गया है।

उपयोग

  • इसका उपयोगघाव, त्वचा संबंधी रोग, सूज़न, सेप्सिस तथा यौन विकारों जैसे रोगों के उपचार के लिये पारंपरिक चिकित्सा के रूप में किया गया है।
  • हाल के प्रयोगों से पता चला है कि यह जड़ी-बूटी प्रकंद (Rhizome) स्टेरॉइडल सैपोनिन (Steroidal Saponins) का एक स्रोत है, जिसे कैंसर रोधी और एंटी-एजिंग एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में यह पौधा अपनी उच्च औषधीय गुणवत्ता के कारण हिमालयी क्षेत्र के सबसे अधिक वाणिज्यिक कारोबार वाले पौधों में से एक बन गया है।

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