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शॉर्ट न्यूज़: 22 दिसंबर, 2020

शॉर्ट न्यूज़: 22 दिसंबर, 2020


रो-रो तथा नौकायन के लिये नए मार्गों की पहचान

तेंदुओं की स्थिति पर रिपोर्ट

उष्णकटिबंधीय मोंटेन घास के मैदान (Tropical Montne Grasslands)


रो-रो तथा नौकायन के लिये नए मार्गों की पहचान

संदर्भ

हाल ही में, बंदरगाह, जहाज़रानी एवं जलमार्ग मंत्रालय नेरो-रो (RO-RO) तथा नौकायन सेवाओं के लिये नए मार्गों की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु

  • जलमार्ग मंत्रालय नेरो-रो तथा नौका सेवाओं के लिये घरेलू स्थलों के रूप मेंहजीरा, ओखा, सोमनाथ मंदिर, दीव,पीपावाव, दाहेज, मुंबई/जे.एन.पी.टी, जामनगर, कोच्चि, घोघा, गोवा, मुंदरातथा मांडवी की पहचान की है।
  • अंतर्राष्‍ट्रीय स्तर पर छातोग्राम (बांग्लादेश), सेशेल्स (पूर्व अफ्रीका) मेडागास्कर (पूर्व अफ्रीका) और जाफना (श्रीलंका) को जोड़ने वाले चार मार्गों की पहचान की है, ताकि अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से नौकायन सेवाओं की शुरुआत की जा सके।
  • मंत्रालय ने हजीरा और घोघा के बीच रो-रोतथानौका सेवा प्रारंभ की है। इस सेवा से घोघा और हजीरा के बीच की दूरी 370 किमी. से घटकर 90 किमी. हो गई है और यात्रा में पहले की अपेक्षा 5 से 6 घंटे कम समयलगेगा। साथ ही, इससे ईंधन की भी बचत होगी।
  • गौरतलब है कि जलमार्ग मंत्रालय,सागरमाला कार्यक्रम के अंतर्गत तटीय जहाज़रानी को बढ़ावा देने के लिये निरंतर कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्‍य भारत के 7,500 किमी. लंबे तटों और जहाज़ संचालन योग्‍य जलमार्गों का दोहन कर बंदरगाह से जुड़े विकास को प्रोत्‍साहित करना है।
  • मंत्रालय सागरमाला डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड के माध्‍यम से देश में विभिन्‍न मार्गों पर इन सेवाओं के संचालन में सहायता प्रदान कर रहा है।

रोल ऑन-रोल ऑफ ( RO –RO) फेरी सेवा

  • रोल ऑन-रोल ऑफ़का अर्थ किसी सामान को लादने और फिर उसे उतारने से है। इसके अंतर्गत पानी के जहाज़ों को माल/वस्तुएँ लादने के लिये तैयार किया जाता है।
  • देश की पहली रो-रो फेरी सेवा की शुरुआत वर्ष 2017 में गुजरात के घोघा-दाहेजके मध्य शुरू की गई थी।
  • रो-रो फेरी सेवा के प्रमुख उद्देश्‍य निम्नलिखित हैं-
    • एक पूरक परिवहन प्रणाली बनाना, जो न केवल दैनिक यात्रियों, पर्यटकों की आवाजाही और कार्गो परिवहन में लाभकारी होगी, बल्कि कार्बन को कम करने में भी सहायक हो।
    • पर्यटन उद्योग को गति प्रदान करना।
    • तटीय क्षेत्रों में रोज़गार अवसरों का सृजन करना।
    • लागत और समय में बचत।
    • सड़क और रेल नेटवर्क की भीड़ में कमी।

तेंदुओं की स्थिति पर रिपोर्ट

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने ‘भारत में तेंदुओं की स्थिति पर रिपोर्ट’ जारी की।

प्रमुख बिंदु

  • यह रिपोर्ट वर्ष 2018 के लिये जारी की गई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में तेंदुओं की संख्या वर्ष 2014 की तुलना में 60% की बढ़ोतरी के साथ वर्ष 2018 में 12,852 हो गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तेंदुओं की सर्वाधिक संख्या क्रमशः मध्य प्रदेश (3,421), कर्नाटक और महाराष्ट्र में होने का अनुमान है।
  • क्षेत्र-वार वितरण के आधार पर मध्य भारत और पूर्वी घाट में सबसे अधिक तेंदुए पाए गए, जबकि पूर्वोत्तर की पहाड़ियों में केवल 141 तेंदुए होने का अनुमान है।

गणना में शामिल क्षेत्र

  • तेंदुओं की संख्या की गणना न केवल टाइगर रेंज में की गई बल्कि गैर-वन क्षेत्रों, जैसे-कॉफी, चाय के बागान और अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में भी की गई है।
  • हालाँकि, गणना में हिमालय के ऊँचाई वाले एवं शुष्क क्षेत्रों तथा पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि यहाँ तेंदुओं की बेहद कम संख्या होने के आसार हैं।
  • तेंदुओं की गणना के लिये कैमरा ट्रैपिंग विधि का उपयोग किया गया।

तेंदुओं की आबादी के लिये प्रमुख खतरे

  • भारत में पिछले 120-200 वर्षों में मानव-जनित कारणों से संभवतः 75-90% तेंदुओं की संख्या में गिरावट का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • भारतीय उपमहाद्वीप में अवैध शिकार, प्राकृतिक आवासों को क्षति, मानव-संघर्ष आदि तेंदुए की आबादी के लिये प्रमुख खतरे हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार बाघ की निगरानी से तेंदुए जैसी प्रजातियों का आकलन करने में काफी मदद मिली है।

तेंदुआ (Leopard)

  • इसे भारतीय तेंदुआ, गुलदार अथवा बघेरा के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम पैंथरा पर्डस (Panthera pardus) है।
  • भारतीय तेंदुआ भारत, भूटान, बांग्लादेश, म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान और चीन में पाया जाता है। तेंदुआ भारत में, मुख्य रूप से 17 राज्यों में बाघ के साथ-साथ पाए जाते हैं।
  • तेंदुआ सभी प्रकार के वनों में पाए जाते हैं, जैसे- उष्णकटिबंधीय वर्षावन, समशीतोष्ण पर्णपाती, अल्पाइन शंकुधारी वन, वर्षावन, सवाना, सूखी झाड़ियाँ, घास के मैदान, रेगिस्तान तथा चट्टानी क्षेत्र।

वर्तमान स्थिति

  • जुलाई 2015 के आकलन के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में तेंदुए की श्रेणी संकटापन्न (Near Threatened) से बदलकर सुभेद्य/संवेदनशील (Vulnerable) कर दी गई।
  • तेंदुआ को ‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972’ में सूची-I के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।

उष्णकटिबंधीय मोंटेन घास के मैदान (Tropical Montne Grasslands)

संदर्भ

पश्चिमी घाट के शोला स्काई द्वीप में उष्णकटिबंधीय मोंटेन घास के मैदानों (टी.एम.जी.) में कई प्रकार के स्थानिक पौधों, पक्षियों, उभयचरों और स्तनधारियों की संख्या में विदेशज प्रजाति के वृक्षों जैसे बबूल, चीड़ और यूकेलिप्टस के आक्रमण के कारण बड़ी मात्रा में गिरावट दर्ज़ की गई है।

क्षेत्रों की पहचान

  • इस समस्या को दूर करने के लिये शोधकर्ताओं ने चारागाह पुनर्स्थापना और संरक्षण के लिये नीलगिरी (सर्वाधिक क्षेत्र,126 वर्ग किमी), पलानी और अन्नामलाई हिल्स में उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान की है।
  • भारत में इसे वन प्रबंधन योजनाओं के अंतर्गत बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है, क्योंकि वे जंगलों में पाई जाने वाली लकड़ी (विदेशज प्रजाति) के विपरीत राजस्व के स्रोत नहीं होते हैं।
  • अध्ययन में कहा गया कि घास के मैदान बंजर भूमि नहीं हैं, हम अन्य तरीकों से इनसे लाभान्वित हो रहे हैं- जैसे कि चरागाह।

उष्णकटिबंधीय मोंटेन घास के मैदान

  • उष्णकटिबंधीय मोंटेन घास के मैदान उच्च ऊँचाई वाले घास के मैदान हैं, जो विश्व में पाए जाने वाले सभी घास के मैदानों का केवल 2% हैं। विदित है कि शोला के घास के मैदान हाइड्रोलॉजिकल रिचार्ज का कार्य करते हैं।
  • ये वैश्विक कार्बन चक्र को विनियमित करने और डाउनस्ट्रीम समुदायों के लिये जल का स्रोत हैं। पश्चिमी घाट में 23% मोंटेन घास के मैदान 44 वर्षों की अवधि में कथित तौर पर आक्रामक विदेशी पेड़ों के आवरण में परिवर्तित हो गए।


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