शॉर्ट न्यूज़: 3 दिसंबर, 2020
पीकॉक सॉफ्ट-शेल्ड टर्टल (Peacock soft-shelled turtle)
ग्रीन चारकोल हैकथॉन
विश्व मलेरिया रिपोर्ट, 2020
फाइटोरिड टेक्नोलॉजी सीवेज ट्रीटमेंट
पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिये उच्च-स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन
पीकॉक सॉफ्ट-शेल्ड टर्टल (Peacock soft-shelled turtle)
- हाल ही में, असम के सिल्चर में मछली बाज़ार से कछुए की एक संवेदनशील प्रजाति ‘पीकॉक सॉफ्ट-शेल्ड टर्टल’ को बचाया गया है, जिसका वैज्ञानिक नाम ‘निल्सोनिया ह्यूरम’ (Nilssonia hurum) है।
- यह प्रजाति केवल भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में ही पाई जाती है। यह प्रजाति अधिकांशतः भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में मिलती है, जो नदी, नालों, झीलों तथा तालाबों में रहती है।
- इसका मांस और कैलीपी (कछुए के कवच के निचले हिस्से में पाया जाने वाला पीले रंग का एक जैलीयुक्त पदार्थ) के लिये इसका शिकार और तस्करी की जाती है।
- यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची – 1 में तथा आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में संवेदनशील (Vulnerable) श्रेणी में शामिल है।
- ध्यातव्य है कि जल प्रदूषण, नदी परिवहन में वृद्धि तथा रेत खनन के कारण गंगा नदी में कछुओं की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है।
ग्रीन चारकोल हैकथॉन
- हाल ही में, एन.टी.पी.सी. के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी एन.टी.पी.सी. विद्युत व्यापार निगम (NVVN) ने ‘ग्रीन चारकोल हैकथॉन’ की शुरुआत की है।
- तीव्र प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के लिये यह प्रौद्योगिकी आधारित एक प्रतियोगिता है, जिसके अंतर्गत भारत में तकनीकी विषमता को पाटने के लिये नवोन्मेषी विचारों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- इसके प्रमुख उद्देश्यों में नवाचारी समाधानों से कृषि अवशेषों के दहन की प्रथा को समाप्त कर वायु की गुणवत्ता में सुधार करना, अक्षय ऊर्जा सम्बंधी नई तकनीकों को प्रोत्साहित करना, स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देना तथा किसानों की आय में वृद्धि करना शामिल हैं।
- इस हैकथॉन का अंतिम लक्ष्य देश में कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
- ध्यातव्य है कि किसानों द्वारा कृषि अवशेषों को जलाने से वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है। इसलिये एन.वी.वी.एन. ने कृषि अवशेषों को विद्युत सयंत्रों में ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिये इस पहल की शुरुआत की है।
- तापन (Torrefaction) की प्रक्रिया के तहत विद्युत सयंत्रों में ईंधन के लिये कृषि अवशेषों को ग्रीन चारकोल में परिवर्तित किया जाता है।
विश्व मलेरिया रिपोर्ट, 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व मलेरिया रिपोर्ट, 2020 जारी की गई है।
प्रमुख बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने मलेरिया के मामलों में कमी लाने की दिशा में प्रभावी प्रगति की है। इस रिपोर्ट में गणितीय अनुमानों के आधार पर विश्वभर में मलेरिया के अनुमानित मामलों के आँकड़े जारी किये जाते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत इस बीमारी से प्रभावित अकेला ऐसा देश है, जहाँ वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में इस बीमारी के मामलों में 6% की गिरावट दर्ज की गई है।
- भारत का एनुअल पेरासिटिक इंसीडेंस (API) वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2018 में 6% था, जो वर्ष 2019 में वर्ष 2018 के मुकाबले 18.4% पर आ गया। विदित है कि ए.पी.आई. प्रति 1000 जोखिमपूर्ण जनसंख्या पर सकारात्मक मामलों की कुल संख्या है।
- भारत में वर्ष 2000 से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 8% की गिरावट तथा मृत्यु के मामलों में 73.9% की गिरावट आई है। साथ ही, भारत में मलेरिया के क्षेत्रवार मामलों में भी महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई है।
अन्य तथ्य
- देश में मलेरिया उन्मूलन प्रयास वर्ष 2015 में शुरू हुए थे और वर्ष 2016 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (NFME) की शुरुआत के बाद से इन प्रयासों में तेजी आई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 2017 में मलेरिया उन्मूलन के लिये एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के तहत पाँच वर्षों (2017 से 2022) के लिये एक रणनीति तैयार की।
उच्च जोखिम और उच्च प्रभाव पहल
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आर.बी.एम. (Roll Back Malaria) की भागीदारी से मलेरिया के अत्यधिक जोखिम वाले 11 देशों में उच्च जोखिम और उच्चा प्रभाव (HBHI) पहल शुरू की है, जिसमें भारत भी शामिल है। इस पहल को भारत के चार राज्यों पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जुलाई, 2019 में शुरू किया गया। इसमें प्रगति का पैमाना ‘उच्च जोखिम से उच्च प्रभाव’ तक पहुँचना रखा गया। अब तक मलेरिया उन्मूलन पहल भारत में काफी हद तक प्रभावी रही है।
फाइटोरिड टेक्नोलॉजी सीवेज ट्रीटमेंट
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में, डॉ. हर्षवर्धन ने पुणे के राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (NCL) में स्थित फाइटोरिड टेक्नोलॉजी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) का उद्घाटन किया।
- इसका विकास राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI), नागपुर एवं एन.सी.एल. द्वारा किया गया है। यह सीवेज ट्रीटमेंट की पर्यावरण अनुकूल एवं कुशल तकनीक है।
- इसे एन.ई.ई.आर.आई, नागपुर द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराया गया है, जो 10 वर्ष से अधिक समय से निरंतर संचालन और सफल प्रदर्शन के साथ सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम के रूप में मौजूद है।
- एन.सी.एल, एन.ई.ई.आर.आई. की फाइटोरिड तकनीक का उपयोग करने वाली पहली सी.एस.आई.आर. प्रयोगशाला है।
सिद्धांत एवं कार्य-पद्धति
- फाइटोरिड अपशिष्ट जल की सफाई की एक भरोसेमंद तथा स्व-धारणीय (Self Sustainable) तकनीक है, जो प्राकृतिक आर्द्रभूमि के सिद्धांत पर कार्य करती है। इस प्रकार यह एक उपसतह मिश्रित प्रवाह निर्मित आर्द्रभूमि प्रणाली है।
- यह तकनीक कुछ विशिष्ट पौधों का उपयोग करती है जोकि अपशिष्ट पानी से पोषक तत्वों को सीधे अवशोषित कर सकते हैं परंतु उन्हें मिट्टी की जरुरत नहीं होती है। ये पौधे पोषक तत्त्व के सिंकर और रिमूवर (Sinker and Remover) के रूप में कार्य करते हैं।
लाभ
- पारम्परिक प्रक्रियाओं की तुलना में प्राकृतिक प्रणाली पर आधारित अवशिष्ट जल शोधन की यह फाइटोरिड तकनीक शून्य ऊर्जा और शून्य संचालन एवं रख-रखाव की खूबियों से सुसज्जित है।
- फाइटोरिड तकनीक सफाई की एक प्राकृतिक पद्धति है जिसके द्वारा शोधित किये गये जल को पेयजल समेत विभिन्न प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जा सकता है।
- अवशिष्ट जल शोधन के लिये फाइटोरिड तकनीक द्वारा उपचारित जल का उपयोग बागवानी प्रयोजनों के लिये किया जा सकता है।
- इससे आने वाले वर्षों में जल-संकट की चुनौती से निपटने में सहायता मिलेगी।
पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिये उच्च-स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत की स्थिति को मज़बूती प्रदान करते हुए पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिये एक उच्च-स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया गया है।
संरचना
- इस समिति का गठन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में किया गया है।
- 14 मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी इस समिति के सदस्य के रूप में कार्य करेंगे तथा भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के कार्यान्वयन में प्रगति की निगरानी करेंगे।
- साथ ही, ये सदस्य पेरिस समझौते की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जलवायु लक्ष्यों की निगरानी, समीक्षा और पुनरीक्षण करने के लिये समय-समय पर जानकारी प्राप्त करेंगे।
उद्देश्य व कार्य
- इस समिति का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के मामलों पर एक समन्वित प्रतिक्रिया का निर्माण करना है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान सहित पेरिस समझौते के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने की दिशा में अग्रसर है।
- इस समिति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 के अंतर्गत भारत में कार्बन बाज़ारों को विनियमित करने के लिये एक राष्ट्रीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करना भी है।
- इसके अतिरिक्त, पेरिस समझौते के तहत परियोजनाओं या गतिविधियों पर विचार करने, कार्बन मूल्य निर्धारण, बाज़ार तंत्र एवं जलवायु परिवर्तन तथा एन.डी.सी. पर असर डालने वाले उपकरणों पर दिशा-निर्देश जारी करना भी इसके कार्यों में शामिल है।
- यह जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के साथ-साथ बहु एवं द्विपक्षीय एजेंसियों के योगदान पर ध्यान केंद्रित करेगा और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ उनके जलवायु कार्यों को संरेखित करने के लिये मार्गदर्शन प्रदान करेगा।