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शॉर्ट न्यूज़ : 17 जुलाई , 2024

शॉर्ट न्यूज़ : 17 जुलाई , 2024


चांदीपुरा वायरस संक्रमण

रोज़वुड प्रजाति पर साइट्स के दिशानिर्देश


चांदीपुरा वायरस संक्रमण

हाल ही में गुजरात सरकार ने कहा कि 10 जुलाई से राज्य में संदिग्ध चांदीपुरा वायरस (सीएचपीवी) संक्रमण से छह बच्चों की मौत हो चुकी है।

चांदीपुरा वायरस संक्रमण

  • यह रैबडोविरिडे परिवार का एक वायरस है , जिसमें रेबीज पैदा करने वाला लिसावायरस जैसे अन्य सदस्य भी शामिल हैं ।
  • फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई और फ्लेबोटोमस पापाटासी जैसी सैंडफ्लाई की कई प्रजातियां, तथा एडीज एजिप्टी (जो डेंगू का भी वाहक है) जैसी कुछ मच्छर प्रजातियां  सीएचपीवी की वाहक मानी जाती हैं।
  • यह वायरस इन कीटों की लार ग्रंथि में रहता है , तथा इनके काटने से मनुष्यों या अन्य कशेरुकी प्राणियों जैसे पालतू पशुओं में फैल सकता है।
  • वायरस के कारण होने वाला संक्रमण केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंच सकता है , जिससे एन्सेफलाइटिस हो सकता है - मस्तिष्क के सक्रिय ऊतकों की सूजन।
  • रोग की प्रगति इतनी तीव्र हो सकती है कि रोगी को सुबह तेज बुखार हो सकता है, तथा शाम तक उसके गुर्दे या यकृत प्रभावित हो सकते हैं।
  • लक्षण
    • सीएचपीवी संक्रमण में शुरू में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं , जैसे तीव्र बुखार, शरीर में दर्द और सिरदर्द।
    • इसके बाद यह संवेदी अंगों में परिवर्तन या दौरे और मस्तिष्क ज्वर का रूप ले सकता है।
    • श्वसन संबंधी परेशानी, रक्तस्राव की प्रवृत्ति, या एनीमिया।
  • एन्सेफलाइटिस के बाद संक्रमण अक्सर तेजी से बढ़ता है , जिसके कारण अस्पताल में भर्ती होने के 24-48 घंटों के भीतर मृत्यु हो सकती है।
  • यह संक्रमण मुख्यतः 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तक ही सीमित रहा है।
  • उपचार: इस संक्रमण का केवल लक्षणात्मक प्रबंधन ही किया जा सकता है, क्योंकि वर्तमान में इसके उपचार के लिए कोई विशिष्ट एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी या टीका उपलब्ध नहीं है।
  • भारत में प्रभावित क्षेत्र
  • सीएचपीवी संक्रमण को पहली बार 1965 में महाराष्ट्र में डेंगू/चिकनगुनिया प्रकोप की जांच के दौरान अलग किया गया था।
  • हालाँकि, भारत में इस रोग का सबसे बड़ा प्रकोप 2003-04 में महाराष्ट्र, उत्तरी गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में देखा गया था।
  • यह संक्रमण मुख्यतः भारत के मध्य भाग तक ही सीमित है , जहां सीएचपीवी संक्रमण फैलाने वाले बालू मक्खियों और मच्छरों की संख्या अधिक है।

रोज़वुड प्रजाति पर साइट्स के दिशानिर्देश

हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय लुप्तप्राय वन्यजीव एवं वनस्पति प्रजाति व्यापार अभिसमय (CITES) ने साइट्स प्लांट्स कमेटी की 27वीं बैठक में ‘साइट्स रोज़वुड्स : द ग्लोबल पिक्चर' रिपोर्ट जारी की है।

रोज़वुड (शीशम) प्रजातियों के बारे में 

  • साइट्स (CITES) शीशम की विभिन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की देखरेख करता है, जिसमें डेलबर्गिया (Dalbergia), अफज़ेलिया (Afzelia), खाया (Khaya) एवं टेरोकार्पस (Pterocarpus) शामिल हैं। 
  • वर्तमान में इन प्रजातियों को साइट्स की परिशिष्ट II में सूचीबद्ध किया गया है, जो दर्शाता है कि इन्हें तुरंत विलुप्त होने का खतरा नहीं है किंतु यदि इनके व्यापार को विनियमित नहीं किया जाता है तो अत्यधिक जोखिम हो सकता है।

नवीनतम दिशानिर्देश 

  • यह दिशा-निर्देश रोज़वुड की कटाई को टिकाऊ बनाने और इसके व्यापार में लगे या संबंधित योजना बनाने वाले साइट्स पक्षकारों को मार्गदर्शन प्रदान करती है। 
  • इस दिशा-निर्देश में साइट्स में सूचीबद्ध शीशम प्रजातियों के लिए क्षमता निर्माण प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया गया है।
    • सूचीबद्ध शीशम प्रजातियों के संरक्षण एवं व्यापार पर रिपोर्ट में पहचानी गई 13 उच्च-प्राथमिकता और 14 मध्यम-प्राथमिकता वाली प्रजातियों को लक्षित किया गया है। 
  • पश्चिमी अफ्रीका में पाई जाने वाली टेरोकार्पस एरिनेसियस (अफ्रीकी शीशम) अत्यधिक दोहन एवं अवैध व्यापार के कारण सर्वाधिक खतरे में पड़ी शीशम प्रजातियों में से एक है। 
    • साइट्स (CITES) द्वारा व्यापार स्थिरता एवं वैधता के बारे में चिंताओं के कारण टेरोकार्पस एरिनेसियस के व्यापार निलंबन की सिफारिशें की जा रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय लुप्तप्राय वन्यजीव एवं वनस्पति प्रजाति व्यापार अभिसमय (CITES)

  • यह एक वैश्विक संधि है, जो यह सुनिश्चित करती है कि वन्यजीव एवं वनस्पतियों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनी, ट्रेसेबल (Traceable) और जैविक रूप से टिकाऊ हो।
  • इसका मसौदा वर्ष 1963 में आई.यू.सी.एन. (IUCN) के सदस्यों की बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था।  
    • 1 जुलाई, 1975 को साइट्स (CITES) लागू हुआ।
  • यद्यपि साइट्स कानूनी रूप से इसके सदस्यों पर बाध्यकारी है किंतु यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है।
  • CITES सचिवालय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा प्रशासित है और जिनेवा (स्विट्जरलैंड) में स्थित है।

साइट्स द्वारा प्रजातियों को उनकी संरक्षण स्थिति के अनुसार विभिन्न परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया जाता है :

  • परिशिष्ट I : इसमें विलुप्त होने के खतरे वाली प्रजातियां शामिल हैं तथा इन्हें वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध सहित सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • परिशिष्ट II : इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं जो वर्तमान में विलुप्त होने के खतरे का सामना नहीं कर रहीं हैं किंतु व्यापार नियंत्रण (विनियमन) के बिना विलुप्त हो सकती हैं।
  • परिशिष्ट III : इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके लिए किसी देश ने अन्य CITES पक्षकारों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए कहा है।

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