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शॉर्ट न्यूज़ : 15 जून , 2024

शॉर्ट न्यूज़ : 15 जून , 2024


भारत में मौत की सज़ा देने के मानक

नागराहोल टाइगर रिजर्व

नागास्त्र-1 : भारत का पहला स्वदेशी आत्मघाती ड्रोन


भारत में मौत की सज़ा देने के मानक

संदर्भ

  • हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद आरिफ की दया याचिका खारिज कर दी है, जिसे 22 दिसंबर 2000 को लाल किले पर आतंकवादी हमला करने के अपराध के लिए मौत की सजा दी गई है।
  • इससे पहले अगस्त 2011 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने हमले को “कुछ विदेशी भाड़े के सैनिकों द्वारा अघोषित युद्ध” मानते हुए अपील खारिज कर चुका है और उसके बाद दायर क्यूरेटिव याचिका भी जनवरी 2014 में खारिज हो चुकी है।
  • क्यूरेटिव याचिका : ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब उसके फ़ैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि हो।

क्या है राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्तियाँ

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 की न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिए दोषी करार दिए गए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफ़ी प्रदान कर सकता है। 
  • निम्नलिखित मामलों में राष्ट्रपति के पास ऐसी शक्ति होती है-
    • संघीय विधि के विरुद्ध दंडित व्यक्ति के मामले में।
    • सैन्य न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति के मामले में।
    • मृत्यदंड पाए हुए व्यक्ति के मामले में।
  • राष्ट्रपति की क्षमा शक्तियों के प्रकार : 
    • क्षमा (Pardon) :  इसमें राष्ट्रपति अपनी क्षमा शक्ति का उपयोग कर सजा और बंदीकरण दोनों को हटा सकते हैं तथा दोषी की सजा को दंड या दंडादेशों से पूरी तरह से मुक्त कर सकते हैं।
    • विराम (Respite):  राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति द्वारा किसी दोषी को प्राप्त मूल सजा के प्रावधान को विशेष परिस्थितियों में बदल सकते हैं।
      • उदाहरण के लिए अगर किसी गर्भावति महिला को सजा मिली है तो उसकी सजा अवधि को परिवर्तित कर सकते हैं।
    • प्रविलंबन (Reprieve) :  इस क्षमा शक्ति के द्वारा राष्ट्रपति अस्थायी समय के लिए किसी सजा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगा सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा मांगने या उसे कम करने के लिए समय देना है।
    • परिहार (Remission):  जब राष्ट्रपति अपनी इस क्षमा शक्ति का उपयोग करते हैं तो इसमें सजा की अवधि को कम करने का निर्णय ले सकते हैं। हालांकि इसमें सजा का चरित्र वही रहता है। उदाहरण के लिए, दो साल के कठोर कारावास की सजा को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है, लेकिन कारावास कठोर ही रहता है। इसमें सिर्फ दंड की अवधि को कम किया जाता है।
    • लघुकरण (Commutation): इस क्षमा शक्ति का उपयोग कर के दंड के स्वरुप में बदलाव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी अपराधी को कोर्ट द्वारा मृत्युदंड की सजा दी गई है तो उसे आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। वहीं, अगर अपराधी को कठोर कारावास मिला है तो उसे साधारण कारावास में बदला जा सकता है।

मृत्युदंड के मामलों में अदालतें कौन से मानक लागू करती हैं?

बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) 

  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की संवैधानिकता को बरकरार रखा, लेकिन महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय भी स्थापित किए।
  • कोर्ट ने कहा, "न्यायाधीशों को कभी भी खूनी नहीं होना चाहिए", और मृत्युदंड दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों को छोड़कर अन्य किसी मामले में नहीं दिया जाना चाहिए।

विधि आयोग की 262वीं रिपोर्ट (2015) 

  • विधि आयोग ने 2015 में प्रस्तुत अपनी 262वीं रिपोर्ट में आतंकवाद से संबंधित अपराधों और युद्ध छेड़ने के अलावा अन्य सभी अपराधों के लिए मृत्युदंड को “पूर्ण रूप से समाप्त” करने की सिफारिश की है।
  • रिपोर्ट में कहा गया कि, राष्ट्रपति की ‘क्षमादान की शक्ति’ न्याय की संभावित विफलता के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसलिए, दया के अयोग्य पाए गए मामलों में मृत्युदंड दिया जाता है।

दया याचिका खारिज होने के बाद विकल्प 

  • राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती :  प्रक्रियात्मक स्तर पर, सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर करता है, इसलिए राष्ट्रपति के निर्णय को कई आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। जैसे :
    • प्रासंगिक सामग्री पर विचार नहीं किया गया।
    • शक्ति का प्रयोग राजनीतिक विचारों के आधार पर किया गया। 
    • निर्णय लेने में विवेक का प्रयोग नहीं किया गया।
  • दया याचिकाओं पर अत्यधिक विलंब : शत्रुघ्न चौहान बनाम उत्तर प्रदेश (2014)  मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी को आधार बनाते हुए मौत की सजा को कम कर दिया था। 
    • इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2023 में दया याचिकाओं पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी के आधार पर एक महिला और उसकी बहन को दी गई मौत की सजा कम करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।

नागराहोल टाइगर रिजर्व

मैसूर दशहरा में भाग लेने वाले हाथी ‘अश्वत्थामा’ की नागरहोल टाइगर रिजर्व में बिजली का करंट लगने से मौत हो गई। 

NAGAR

नागरहोल टाइगर रिजर्व के बारे में

  • अवस्थिति : कर्नाटक के मैसूर एवं कोडागु जिलों में स्थित।
    • इसके दक्षिण-पूर्व में बांदीपुर टाइगर रिजर्व और दक्षिण-पश्चिम में केरल का वायनाड वन्यजीव अभयारण्य है। 
    • यह रिजर्व नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व का भी हिस्सा है।
  • नामकरण : पूर्व में राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान के नाम से प्रसिद्ध इस अभयारण्य का नामकरण 'नागराहोल' नदी के नाम पर। 
    • नागराहोल का कन्नड़ भाषा में शाब्दिक अर्थ 'सर्प नदी' (नागरा अर्थात सर्प व होल अर्थात नदी) है। 
  • रिजर्व में स्थित जलाशय : काबिनी एवं तारका जलाशय।
  • ऐतिहासिक तथ्य : वर्ष 1988 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित और ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत वर्ष 1999 में टाइगर रिजर्व घोषित।
  • पाई जाने वाली प्रमुख वनस्पति : उष्णकटिबंधीय, आर्द्र, अर्ध-सदाबहार व शुष्क पर्णपाती वन।
    • व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण वृक्ष शीशम, सागौन, चंदन व सिल्वर ओक हैं।
  • पाए जाने वाले प्रमुख जीव-जंतु : बाघ, तेंदुआ, एशियाई जंगली कुत्ता और स्लॉथ भालू, एशियाई हाथी, गौर, सांभर, चीतल, मंटजैक, चौसिंगा मृग, जंगली सुअर, माउस हिरण।
  • हडलू (Hadlu) : इसके जंगलों में पाई जाने वाली दलदली परती भूमि।

नागास्त्र-1 : भारत का पहला स्वदेशी आत्मघाती ड्रोन

नागपुर स्थित सोलर इंडस्ट्रीज ने भारतीय सेना को पहला स्वदेशी रूप से विकसित आत्मघाती ड्रोन ‘नागस्त्र-1’ (Nagastra-1) की 120 इकाइयों का पहला बैच प्रदान किया है।

नागस्त्र-1 ड्रोन के बारे में 

  • यह भारत में अपनी तरह का पहला मानव-पोर्टेबल आत्मघाती ड्रोन है, जो सैनिकों की जान को खतरे में डाले बिना लॉन्च पैड्स, प्रशिक्षण शिविरों और घुसपैठियों पर सटीक निशाना लगाने के लिए बनाया गया है।
  • भारतीय सेना ने नागस्त्र-1 को लक्ष्य के ऊपर मंडराने की क्षमता के कारण लोइटरिंग म्यूनिशन (Loitering Munition) नाम भी दिया है। 

NAGAAS

नागस्त्र-1 ड्रोन की क्षमताएं 

  • नागस्त्र-1 अत्यधिक ठंड या उच्च ऊंचाई वाली स्थितियों में भी काम करने में सक्षम है।
  • इन ड्रोन की रेंज लगभग 30 किमी. है और ये दो मीटर की सटीकता के साथ जी.पी.एस.-सक्षम सटीक हिट करने में सक्षम हैं।
  • अपने इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम के कारण नागास्त्र-1 कम ध्वनिक संकेत प्रदान करता है, जिससे 200 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर इसका लगभग पता नहीं चलता है।
  • यह ड्रोन दिन एवं रात्रि निगरानी कैमरों से लैस है और छोटे लक्ष्यों को बेअसर करने के लिए 1 किग्रा. का उच्च विस्फोटक वारहेड ले जा सकता है।
  • फिक्स्ड विंग्स वाला इलेक्ट्रिक मानव रहित हवाई वाहन (UAV) 60 मिनट तक काम कर सकता है और मैन-इन-लूप में इसकी रेंज 15 किमी. और ऑटोनॉमस मोड में 30 किमी. है।
  • यह ड्रोन 4500 मीटर ऊपर उड़ान भरते हुए सीधे घातक हमला कर सकता है। 

नागस्त्र-1 ड्रोन के लाभ 

  • यदि कोई लक्ष्य नहीं पाया जाता है या मिशन को रद्द कर दिया जाता है, तो लोइटर म्यूनिशन को वापस लाया जा सकता है और पैराशूट रिकवरी सिस्टम का उपयोग करके उतारा जा सकता है, जिससे इसे कई बार पुन: इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • नागास्त्र-1 विदेशी स्रोतों पर निर्भरता कम करता है क्योंकि इसकी 75% से अधिक सामग्री स्वदेशी है।
  • यह हथियार इजरायल एवं पोलैंड से आयात किए गए हवाई हथियारों से करीब 40% सस्ता पड़ेगा। 
  • इसके परीक्षण चीन सीमा के पास लद्दाख की नुब्रा घाटी में किए गए हैं। भविष्य में ये सर्जिकल स्ट्राइक के लिए भी उपयोग किए जा सकते हैं।
  • नागस्त्र-1 के सफल विकास से हथियारबंद ड्रोन के क्षेत्र में भारत की स्वदेशी क्षमता को महत्वपूर्ण रूप से मजबूत करने में मदद मिलेगी।

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