शॉर्ट न्यूज़ : 03 मई , 2024
IIT पटना को इन्वर्टर पर पेटेंट
प्ले ट्रू अभियान
भुगतान एग्रीगेटर
कण्ठमाला (Mumps)
संविधान गार्डन
एंटारेस तारा
केंद्र सरकार द्वारा पुलिस बलों को नए आपराधिक कानूनों पर प्रशिक्षण
प्रोजेक्ट GR00T
ब्रूसथोआ इसरो
हिन्दू विवाह की वैधता
कच्छ अजरख
राजनयिक पासपोर्ट एवं वीजा प्रणाली
IIT पटना को इन्वर्टर पर पेटेंट
- भारत सरकार ने IIT पटना द्वारा विकसित हल्के, कॉम्पैक्ट इन्वर्टर पर पेटेंट प्रदान किया है।
- IIT पटना के पास 20 वर्षों तक इसके व्यावसायिक उपयोग पर कॉपीराइट रहेगा।
इन्वर्टर
- इसे IIT पटना के इनक्यूबेशन सेंटर में 'पोर्टेबल पावर टेक्नोलॉजी' की स्टार्टअप योजना के अंतर्गत विकसित किया गया है।
- यह इन्वर्टर देश को पोर्टेबल पावर मॉड्यूल UPS के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
विशेषताएँ
- इसमें बैटरी और इन्वर्टर अलग-अलग नहीं हैं; सब एक बॉक्स में एकीकृत है।
- यह एक सामान्य इन्वर्टर और बैटरी के कुल वजन का लगभग पांचवां हिस्सा है।
पेटेंट (Patent)
- यह ऐसा कानूनी अधिकार है, जो किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष उत्पाद, खोज, डिजाईन, प्रक्रिया आदि के ऊपर एकाधिकार देता है।
- प्रत्येक देश में पेटेंट कार्यालय होता हैं, जो उक्त पुष्टि के बाद पेटेंट प्रदान करता है।
- यदि कोई और व्यक्ति या संस्था इनका उपयोग (बिना पेटेंट धारक की अनुमति के) करता है, ये अपराध माना जाता है।
- विश्व व्यापार संगठन अनुसार वर्तमान में पेटेंट लागू रहने की अवधि 20 वर्ष है।
प्ले ट्रू अभियान
- हाल ही में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) ने प्ले ट्रू अभियान संचालित किया।
- इसका उद्देश्य भारत में स्वच्छ खेल और डोपिंग रोधी कार्यप्रणालियों के महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना था।
- इस अभियान में देश भर के एथलीटों, प्रशिक्षकों और खेल प्रेमियों ने भागीदारी की और इसे अपना समर्थन प्रदान किया।
- इस अभियान के दौरान डोपिंग रोधी नियमों के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए व्यावहारिक जागरूकता सत्र आयोजित किए गए।
- प्रतिभागियों को खेलों में डोपिंग के परिणामों के बारे में जानने, पूरक तत्वों को समझने और डोपिंग रोधी कवायद में कानून के प्रवर्तन की भूमिका के बारे में जानकारी दी गई
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी
- स्थापना - वर्ष 2005
- मुख्यालय - नई दिल्ली
- कार्य -
- देश में सभी खेल संगठनों द्वारा अनुपालन करने के लिए डोपिंग रोधी संहिता को लागू करना।
- डोपिंग परीक्षण कार्यक्रम का समन्वय करना
- डोपिंग रोधी अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देना
- विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (WADA) कोड के अनुसार डोपिंग रोधी नियमों को लागू करना
- डोपिंग के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना
प्रश्न - राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी की स्थापना कब हुई थी ?
(a) वर्ष 1971
(b) वर्ष 1980
(c) वर्ष 2005
(d) वर्ष 1909
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भुगतान एग्रीगेटर
- हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने वेल्थ मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म ग्रो और वर्ल्डलाइन ईपेमेंट्स इंडिया को भुगतान एग्रीगेटर के रूप में कार्य करने की अनुमति प्रदान की
भुगतान एग्रीगेटर
- भुगतान एग्रीगेटर ऐसी कंपनियाँ होती हैं जो ग्राहक और व्यापारी के मध्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करके ऑनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान करती हैं।
- ये अपने ग्राहकों को डेबिट कार्ड, UPI, बैंक ट्रांसफर, क्रेडिट कार्ड, e-वॉलेट जैसे भुगतान विकल्प प्रदान करती हैं
- ये व्यापारियों को अपनी स्वयं की भुगतान एकीकरण प्रणाली बनाने के बोझ से मुक्त करती हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक, भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत कंपनियों को भुगतान एग्रीगेटर्स के रूप में काम करने की अनुमति प्रदान करता है।
- PayPal, अमेज़न पे आदि प्रमुख भुगतान एग्रीगेटर हैं
कण्ठमाला (Mumps)
- पिछल कुछ समय से देश में कण्ठमाला के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है
- स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच कण्ठमाला के 15,000 से ज्यादा मामले सामने आए हैं.
कण्ठमाला
- यह एक संक्रामक वायरल संक्रमण है
- इसके कारण लार ग्रंथियों में सूजन आ जाती है.
- लार ग्रंथियां लार का उत्पादन करती हैं
- ये एक तरल है जो भोजन को नम करके चबाने और निगलने में मदद करता है.
- यह मम्प्स वायरस के कारण होता है, जो पैरामाइक्सोवायरस नामक वायरस के समूह से संबंधित है
- इसका संक्रमण तब फैलता है जब एक संक्रमित व्यक्ति छींकता है, खांसता है या बोलता है
- इसके लिए अलग से कोई उपचार नहीं है यह कुछ हफ्तों में अपने आप ठीक हो जाती है.
लक्षण
- भूख में कमी
- छींक आना
- खाँसना, और तेज बुखार
- सूजे हुए गाल
- मांसपेशियों और शरीर में दर्द
- निगलने और पीने के दौरान गले में दर्द
संविधान गार्डन
- हाल ही में पुणे में संविधान गार्डन स्थापित किया गया
- इसे भारतीय सेना और पुनीत बालन ग्रुप ने मिलकर बनाया है
- इससे पहले जयपुर(राजस्थान) में भी संविधान उद्यान स्थापित किया जा चुका है।
संविधान गार्डन
- इस गार्डन में भारतीय ससंद की प्रतिकृति पर राजचिन्ह वाले तीन सिंहों की प्रतिकृति है।
- इस पर संविधान लगाया गया है।
- गार्डन परिसर में नागरिकों के लिए संविधान के 11 कर्तव्यों की जानकारी दी गई है।
एंटारेस तारा
- हाल ही में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान ने चंद्रमा के ‘एंटारेस’ तारे के सामने से गुजरने की तस्वीर खींची।
एंटारेस
- यह ‘स्कॉर्पियस’ तारामंडल का भाग है और इस तारामंडल सबसे चमकीला तारा है
- इसे अल्फा स्कॉर्पियो के नाम से भी जाना जाता है
- यह आकाश में 15वां सबसे चमकीला तारा है।
- यह सूर्य से 10,000 गुना अधिक चमकीला है।
- यह सबसे बड़े ज्ञात तारों में से एक है, जिसका व्यास सूर्य के व्यास से 700 गुना अधिक है
- इसका घनत्व सूर्य के दस लाखवें हिस्से से भी कम है।
- इसकी सतह का तापमान लगभग 6,100 डिग्री फ़ारेनहाइट (3,400 डिग्री सेल्सियस) है।
- सूर्य की सतह का तापमान लगभग 10,000 डिग्री फ़ारेनहाइट (5,500 डिग्री सेल्सियस) है।
- यह पृथ्वी से लगभग 600 प्रकाश वर्ष दूर है।
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान
- इसकी स्थापना वर्ष 1971 में खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्रों में अनुसंधान करने के लिए एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान के रूप में की गई थी।
- इसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित किया जाता है।
- इसका मुख्यालय बैंगलोर में है
- इसके फील्ड स्टेशन कोडाईकनाल, कवलूर, गौरीबिदानूर, हानले और होसाकोटे में हैं
केंद्र सरकार द्वारा पुलिस बलों को नए आपराधिक कानूनों पर प्रशिक्षण
संदर्भ
केंद्र सरकार ने नए आपराधिक कानूनों पर देश भर में पुलिस और जेल विभाग के कर्मियों के लिए एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की है और उन्हें औपनिवेशिक विरासत की न्याय प्रणाली से न्याय की नई प्रणाली में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाया जा रहा है।
नए आपराधिक कानूनों के बारे में
- संसद ने तीन मौजूदा कानूनों, अर्थात् भारतीय दंड संहिता, 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को तीन नए प्रगतिशील और आधुनिक कानूनों क्रमशः भारतीय न्याय संहिता 2023 , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 से प्रतिस्थापित कर दिया है।
- तीनों नए आपराधिक कानून भारत में 1 जुलाई 2024 से पूरे लागू किए जाएंगे।
- नए कानूनों का उद्देश्य देश के नागरिकों को त्वरित न्याय प्रदान करना और न्यायिक और अदालत प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करना है।
- यह नए कानून औपनिवेशिक विरासत से न्याय प्रणाली की ओर एक परिवर्तन है, जो सभी के लिए न्याय तक पहुंच के सिद्धांत पर आधारित है।
पुलिस बलों को प्रशिक्षण
- पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो, जो सरकार की प्रमुख प्रशिक्षण और अनुसंधान शाखा है, ने नए आपराधिक कानूनों पर विभिन्न स्तरों के पुलिस और जेल कर्मियों के लिए प्रशिक्षकों के मॉड्यूल और विभिन्न अन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित किए हैं।
- प्रशिक्षुओं को पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने के लिए 'एकीकृत सरकारी ऑनलाइन प्रशिक्षण' (iGOT) पोर्टल के साथ एकीकरण कार्य पूरा कर लिया गया है।
- ये प्रशिक्षण मॉड्यूल बीपीआरएंडडी द्वारा सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा किए गए थे, जिससे वे अपने पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने में सक्षम हो सके।
- राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के 'तकनीकी पहलुओं' पर ऑनलाइन प्रशिक्षण/ब्रीफिंग सत्र आयोजित किये जा रहे है।
- गृह मंत्रालय ने सभी पुलिस और जेल कर्मियों को गहन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए उचित व्यवस्था करने में पुलिस बलों और जेल विभागों के प्रमुखों की सक्रिय भागीदारी और बिना किसी को पीछे छोड़े सभी की भागीदारी की मांग की है।
निष्कर्ष
नए आपराधिक कानूनों में आधुनिक समय और समसामयिक प्रौद्योगिकियों के अनुरूप कई नए प्रावधान हैं। उनकी परिकल्पना पुलिसिंग और न्याय में आसानी का युग लाने के लिए की गई है। भारत सरकार का यह प्रयास रहा है, कि देश के सभी रैंक के पुलिस और जेल अधिकारियों तक पहुंच कर उन्हें सकारात्मक और उन्नत परिवर्तनों से अवगत कराया जाए ताकि उन्हें विभिन्न नए प्रावधानों की बुनियादी जानकारी और समझ से लैस किया जा सके, इससे उन्हें इन कानूनों को ईमानदारी और आत्मविश्वास के साथ लागू करने में मदद मिलेगी।
प्रोजेक्ट GR00T
संदर्भ
हाल ही में, एनवीडिया कंपनी ने ‘प्रोजेक्ट GR00T’ (जनरलिस्ट रोबोट 00 टेक्नोलॉजी) और इसे ऊर्जा/शक्ति प्रदान करने वाले आइज़ैक रोबोटिक्स प्लेटफ़ॉर्म की घोषणा की है। साथ ही, इसने 6जी रिसर्च क्लाउड प्लेटफॉर्म तथा ब्लैकवेल जी.पी.यू. की भी घोषणा की है। इसके अतिरिक्त ह्यूमनॉइड रोबोट के लिए ‘जेटसन थोर’ नामक एक नए कंप्यूटर को भी लॉन्च किया है।
क्या है प्रोजेक्ट GR00T
- प्रोजेक्ट GR00T के तहत ह्यूमनॉइड रोबोट के लिए एक सामान्य-उद्देश्यीय फाउंडेशन प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया जाएगा।
- इस प्लेटफ़ॉर्म पर निर्मित रोबोट संभावित रूप से प्राकृतिक भाषा को समझ सकते हैं और क्रियाओं को देखकर गतिविधियों की नकल कर सकते हैं।
- ऐसे रोबोट तेजी से समन्वय, निपुणता व अन्य कौशल सीख सकते हैं जिससे उन्हें वास्तविक दुनिया के साथ नेविगेट करने, अनुकूलन करने एवं संवाद करने की अनुमति मिलती है।
आइज़ैक रोबोटिक्स प्लेटफ़ॉर्म
- प्रोजेक्ट GR00T में उपयोग किए जाने वाले आइजैक उपकरण किसी भी वातावरण में किसी भी रोबोट के लिए नए फाउंडेशन मॉडल बनाने में सक्षम हैं।
- इन उपकरणों में सुदृढीकरण एवं सीखने के लिए इसाक लैब और ओ.एस.एम.ओ. शामिल हैं जो एक ऑर्केस्ट्रेशन सेवा है।
- इसमें रोबोट की मदद करने के लिए आइजैक मैनिपुलेटर एवं आइजैक परसेप्टर पूर्व-प्रशिक्षित मॉडल व हार्डवेयर हैं।
जेटसन थॉर
- जेटसन थॉर विशेष रूप से ह्यूमनॉइड रोबोट के लिए डिज़ाइन किया गया एक नया कंप्यूटर है जो एनवीडिया के थोर ‘सिस्टम-ऑन-चिप’ (SoC) पर बनाया गया है।
- इसका उद्देश्य जटिल कार्यों को करने के साथ-साथ लोगों व मशीनों दोनों के साथ सुरक्षित एवं स्वाभाविक रूप से संवाद करने में सक्षम होना है।
- यह कंप्यूटर 1,000 टेराफ्लॉप तक प्रदर्शन करने में सक्षम है जिससे वाहन निर्माता स्वायत्त ड्राइविंग, इन-केबिन ए.आई. और इंफोटेनमेंट सिस्टम को एक ही प्लेटफॉर्म पर जोड़ सकते हैं।
- यह आधुनिक ए.आई. विकास को गति देगा जिससे डिजिट जैसे रोबोटों के लिए दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में लोगों की मदद करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
6जी रिसर्च क्लाउड प्लेटफॉर्म
- यह शोधकर्ताओं को वायरलेस तकनीक के अगले चरण को विकसित करने और एक सुपर-स्मार्ट दुनिया के लिए आधार तैयार करने में मदद करेगा।
- एनवीडिया ने औद्योगिक डिजिटल ट्विन एप्लिकेशन और वर्कफ़्लो बनाने के लिए अपने ओम्निवर्स प्लेटफ़ॉर्म की पहुँच का विस्तार करते हुए ‘ओम्निवर्स क्लाउड एपीआई’ की उपलब्धता की भी घोषणा की है।
- इससे सॉफ्टवेयर निर्माता अपने मौजूदा डिजाइन और ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर में ओम्निवर्स प्रौद्योगिकियों को आसानी से एकीकृत कर सकेंगे जिससे उद्योगों में डिजिटल ट्विन्स को अपनाने में तेजी आएगी।
ब्लैकवेल जी.पी.यू.
- यह एक विशाल ए.आई. एक्सेलेरेटर है जो एक ही पैकेज पर एक साथ काम करने वाले दो जी.पी.यू. से बना है जो एक डबल-चिप की तरह है जो सबसे कठिन जेनरेटर ए.आई. कार्यों को संभाल सकता है।
- इसे जीबी200 नामक तीन-डाई ‘सुपरचिप’ में भी डाला गया है जो ब्लैकवेल जी.पी.यू. को ग्रेस आर्म सी.पी.यू. के साथ जोड़ती है जिससे एक शक्तिशाली ए.आई. प्रोसेसर बनता है।
- कम ऊर्जा का उपयोग करते हुए, यह पूर्ववर्ती एच100 जी.पी.यू. की तुलना में 30 गुना अधिक अनुमान थ्रूपुट और चार गुना बेहतर प्रशिक्षण प्रदर्शन प्रदान कर सकता है।
- यह एकल रैक 27 ट्रिलियन मापदंडों तक के मॉडल को प्रशिक्षित कर सकता है जिससे कंपनियों को सबसे बड़ी जेनरेटिव ए.आई. चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
- इससे डेटा प्रोसेसिंग और इंजीनियरिंग सिमुलेशन से लेकर इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन, कंप्यूटर-एडेड ड्रग डिजाइन और क्वांटम कंप्यूटिंग तक हर चीज में सफलता मिल सकती है।
ब्रूसथोआ इसरो
संदर्भ
हाल ही में, केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कोल्लम तट के गहरे समुद्र (250-450 मीटर) में आइसोपॉड (Isopod) की एक नई प्रजाति की खोज की है जिसका नाम ‘ब्रूसथोआ इसरो’ (Brucethoa isro) रखा गया है।
ब्रूसथोआ इसरो के बारे में
- यह ब्रूसथोआ वंश का एक परजीवी आइसोपॉड है जो एक समुद्री मछली ‘स्पाइनीजॉ ग्रीनआई’ (क्लोरोफथाल्मस कॉर्निगर) के गिल गुहा के भीतर रहता है।
- इस प्रजाति का नाम ‘ब्रूसथोआ इसरो’ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सम्मान में रखा गया है।
- यह प्रजाति भारत में प्रलेखित होने वाली ‘ब्रूसथोआ वंश’ की दूसरी प्रजाति है। इस प्रजाति की मादाएँ नर की तुलना में बड़ी होती हैं।
- इस खोज द्वारा गहरे समुद्र में परजीवी आइसोपॉड की विशिष्ट आकृति विज्ञान और व्यवहार के बारे में पता चलेगा, साथ ही समुद्री परजीविता के बारे में वैज्ञानिक समुदाय की समझ विकसित होगी।
आइसोपॉड के बारे में
- आइसोपोडा आर्थ्रोपोडा संघ और क्रस्टेशिया उपसंघ का अकशेरुकी (रीढ़ की हड्डी के बिना) जीवों का एक गण हैं जिसके सदस्यों को आइसोपॉड कहा जाता है।
- यह एक बड़ा क्रस्टेशियन समूह है जिसमें लगभग 10,000 स्थलीय एवं जलीय दोनों प्रकार की प्रजातियाँ शामिल हैं।
- आइसोपॉड का जीवाश्म रिकॉर्ड कम से कम 300 मिलियन वर्ष प्पोर्व कार्बोनिफेरस काल (पेंसिल्वेनियाई युग में) का है जब ये उथले समुद्र में रहते थे।
वितरण एवं पर्यावास
- विश्वभर में ये पहाड़ों और रेगिस्तानों से लेकर गहरे समुद्र तक कई अलग-अलग प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं।
- आइसोपॉड की जलीय प्रजातियाँ अधिकतर समुद्र तल पर या मीठे जल निकायों के तल पर रहती हैं और स्थलीय प्रजातियाँ ठंडे व नम स्थानों में पाई जाती हैं।
- अधिकांश स्वतंत्र रूप से जीवित रहती हैं, लेकिन कई समुद्री प्रजातियाँ अन्य जीवों विशेषकर मछलियों पर परजीवी हैं।
विशेषताएँ
- ये कई विभिन्न आकार और सरंचना में और माइक्रोमीटर से लेकर आधा मीटर तक की लंबाई के होते हैं।
- ये अक्सर एक जैसे नहीं दिखते, लेकिन इनमें कुछ सामान्य विशेषताएँ, जैसे- सभी आइसोपॉड में दो जोड़ी एंटीना, मिश्रित आँखें और जबड़े के चार सेट होते हैं।
- इनके शरीर में सात खंड होते हैं जिनमें से प्रत्येक के चलने वाले पैरों की अपनी जोड़ी होती है।
- इनमें छह खंडों से बना एक छोटा उदर खंड होता है जिसे ‘प्लीओन्स’ कहा जाता है और इनमें से एक या अधिक खंड एक पूँछ खंड से जुड़े होते हैं।
स्पाइनीजॉ ग्रीनआई (क्लोरोफथाल्मस कॉर्निगर)
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- यह क्लोरोफथाल्मिडे नामक एक छोटे परिवार की गहरे समुद्र (250-450 मीट) में रहने वाली समुद्री मछली की प्रजाति है।
- क्लोरोफथाल्मिडे नाम ग्रीक शब्द ‘क्लोरोस’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘हरा’ और ओफ्थाल्मोस जिसका अर्थ ‘आँख’ है।
- वितरण : यह विश्वभर के उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जल में पाई जाती है।
- महत्त्व :
- इसकी कुछ प्रजातियाँ वाणिज्यिक और निर्वाह मत्स्य पालन के लिए उपयोग की जाती हैं
- कुछ प्रजातियों को अन्य बड़ी मछली का भोजन बनाया जाता है या ताज़ा बेचा जाता है।
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हिन्दू विवाह की वैधता
चर्चा में क्यों
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि जहां हिंदू विवाह 'सप्तपदी' (पवित्र अग्नि के समक्ष वर और वधू द्वारा संयुक्त रूप से सात कदम चलना) जैसे लागू संस्कारों या समारोहों के अनुसार नहीं किया जाता है, तो उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा।
हालिया मामला
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दो प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलटों द्वारा दायर तलाक की डिक्री की याचिका पर सुनाया गया है, जिन्होंने हिंदू विवाह की वैधता की आवश्कताओं को पूरा ही नहीं किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए माना कि दम्पति ने कानून के अनुसार विवाह नहीं किया था और हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत वैध समारोह बिना ही उन्हें जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय टिप्पणी
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विवाह कोई "नृत्य-गीत", "भोज-खानपान" या व्यावसायिक लेन-देन का आयोजन नहीं है, तथा हिंदू विवाह अधिनियम के तहत "वैध समारोह के अभाव में" इसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
- न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक 'संस्कार' और एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था का दर्जा दिया जाना चाहिए।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की प्रमुख विशेषताएं
- इस अधिनियम के लागू होने के बाद हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानून को संहिताबद्ध कर दिया गया था और इसमें न केवल हिंदू बल्कि लिंगायत, ब्रह्मसमाजी, आर्यसमाजवादी, बौद्ध, जैन और सिख भी शामिल हैं, जो हिंदू शब्द के व्यापक अर्थ के अंतर्गत आकर वैध हिंदू विवाह कर सकते हैं।
- हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत बहुपतित्व और बहुविवाह तथा इस प्रकार के अन्य सभी संबंधों को स्पष्ट रूप से खारिज किया गया है।
- अधिनियम के अनुसार, जब तक पक्षकार इस तरह के समारोह में शामिल नहीं हो जाते, तब तक (हिंदू विवाह) अधिनियम की धारा 7 के अनुसार कोई हिंदू विवाह वैध नहीं होगा और अपेक्षित समारोहों के अभाव में किसी संस्था द्वारा केवल प्रमाण पत्र जारी करने से न तो पक्षों की वैवाहिक स्थिति की पुष्टि होगी और न ही हिंदू कानून के तहत विवाह स्थापित होगा।
- शीर्ष अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला है यदि कोई विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार नहीं हुआ है, तो पंजीकरण विवाह को वैधता प्रदान नहीं करेगा।
- न्यायालय ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक पुरुष और एक महिला उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है। कोई भी पुरुष और महिला, चाहे उनकी नस्ल, जाति या पंथ कुछ भी हो, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत पति और पत्नी होने का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत न केवल उक्त अधिनियम की धारा 5 के तहत निर्धारित शर्तों का अनुपालन होना चाहिए, बल्कि जोड़े को अधिनियम की धारा 7 के अनुसार विवाह भी करना चाहिए।
कच्छ अजरख
संदर्भ
हाल ही में, पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक (सीजीपीडीटीएम) ने गुजरात के कच्छ क्षेत्र से आने वाले 'कच्छ अजरख' के पारंपरिक कारीगरों को भौगोलिक संकेत (जीआई) प्रमाण पत्र प्रदान किया है।
कच्छ अजरख के बारे में
- अजरख कपड़े पर रंगाई की एक शिल्पकला है, इसका गुजरात के सिंध, बाड़मेर और कच्छ के क्षेत्रों में विशेष सांस्कृतिक महत्त्व है, जहाँ इसकी विरासत सहस्राब्दियों से फैली हुई है।
- अजरख कच्छ के स्थानीय समुदायों के लिए एक प्राचीन प्रतीक है।
- रबारी, मालधारी और अहीर जैसे खानाबदोश पशुपालक और कृषि समुदाय अजरख मुद्रित कपड़े को पगड़ी, लुंगी या स्टोल के रूप में पहनते हैं।
- अजराख का नामकरण 'अजरक' से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है नील (indigo)। इसका उपयोग अक्सर नीले रंग का प्रभाव प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली रंग के रूप में किया जाता है।
- अजरख वस्त्रों में चटक रंगों का उपयोग किया जाता है। इसमें पारंपरिक रूप से तीन रंग शामिल होते हैं:
- नीला जो आकाश को दर्शाता है
- लाल जो भूमि और अग्नि को दर्शाता है
- सफेद जो सितारों को दर्शाता है
- इस शिल्प को इस क्षेत्र में 400 साल पहले सिंध के मुसलमानों द्वारा पेश किया गया था।
राजनयिक पासपोर्ट एवं वीजा प्रणाली
संदर्भ
यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहे जनता दल (सेक्युलर) के सांसद प्रज्वल रेवन्ना राजनयिक पासपोर्ट पर जर्मनी चले गए, जबकि विदेश मंत्रालय (MEA) ने कि उन्हें कोई वीजा नोट जारी नहीं किया।
राजनयिक पासपोर्ट की विशेषताएँ
- राजनयिक पासपोर्ट में मैरून कवर होता है और यह पाँच वर्ष या उससे कम अवधि के लिए वैध होता है।
- जबकि सामान्य पासपोर्ट में गहरा नीला कवर होता है जो 10 वर्ष (वयस्कों के लिए) के लिए वैध होता है।
- राजनयिक पासपोर्ट धारक अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार कुछ विशेषाधिकारों एवं उन्मुक्तियों के हकदार होते हैं।
- इसमें मेजबान देश में गिरफ्तारी, हिरासत और कुछ कानूनी कार्यवाही से छूट शामिल है।
राजनयिक पासपोर्ट के लिए अर्ह व्यक्ति
- विदेश मंत्रालय का कांसुलर, पासपोर्ट और वीज़ा प्रभाग सामान्यत: पाँच श्रेणियों में आने वाले लोगों को राजनयिक पासपोर्ट ('टाइप डी' पासपोर्ट) जारी करता है :
- राजनयिक स्थिति वाले
- सरकार द्वारा नियुक्त ऐसे व्यक्ति जो आधिकारिक व्यवसाय के लिए विदेश यात्रा करते हैं।
- भारतीय विदेश सेवा की शाखा ए और बी के तहत काम करने वाले अधिकारी।
- भारतीय विदेश सेवा और विदेश मंत्रालय में कार्यरत अधिकारियों के नजदीकी परिवारिक सदस्य।
- राजनयिक पासपोर्ट उन चुनिंदा व्यक्तियों को भी जारी किए जाते हैं जो सरकार की ओर से आधिकारिक यात्रा करने के लिए अधिकृत हैं।
- इसमें केंद्रीय मंत्री और सांसद शामिल हैं। इन पासपोर्टों की वैधता सांसद के कार्यकाल के साथ-साथ होती है।
वीजा नोट की आवश्यकता
- सामान्य परिस्थितियों में विदेश मंत्रालय किसी आधिकारिक कार्य या यात्रा के लिए विदेश जाने वाले सरकारी अधिकारियों को वीज़ा नोट जारी करता है।
- जर्मनी सहित के साथ भारत ने राजनयिक पासपोर्ट धारकों के लिए परिचालन वीजा छूट समझौते किए हैं।
- वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित एक पारस्परिक समझौते के अनुसार, भारतीय राजनयिक पासपोर्ट धारकों को जर्मनी जाने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते उनका प्रवास 90 दिनों से अधिक न हो।
- भारत ने फ्रांस, ऑस्ट्रिया, अफगानिस्तान, चेक गणराज्य, इटली, ग्रीस, ईरान और स्विट्जरलैंड जैसे देशों के साथ भी इसी तरह के समझौते किए हैं।
- भारत का 99 अन्य देशों के साथ भी समझौता है, जिसमें राजनयिक पासपोर्ट धारकों के अलावा सेवा और आधिकारिक पासपोर्ट रखने वाले भी 90 दिनों तक रहने के लिए परिचालन वीजा छूट का लाभ उठा सकते हैं।
- इस सूची में बहरीन, ब्राज़ील, मिस्र, हांगकांग, ओमान, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
राजनयिक पासपोर्ट का रद्द किया जाना
- पासपोर्ट अधिनियम 1967 के तहत पासपोर्ट प्राधिकरण निम्नलिखित परिस्थितियों में पासपोर्ट रद्द किया जा सकता है :
- यदि धारक के पास पासपोर्ट का गलत तरीके से कब्जा है।
- यदि इसे महत्वपूर्ण जानकारी को छिपाकर प्राप्त किया गया है।
- यदि पासपोर्ट प्राधिकरण भारत की संप्रभुता और अखंडता या किसी विदेशी देश के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित में ऐसा करना आवश्यक समझता है।
- यदि पासपोर्ट जारी होने के बाद धारक को भारत की किसी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया हो और कम से कम दो साल की कैद की सजा सुनाई गई हो।
- एक आपराधिक अदालत के समक्ष पासपोर्ट धारक द्वारा कथित तौर पर किए गए अपराध के संबंध में कार्यवाही के दौरान अदालत के आदेश पर।