शॉर्ट न्यूज़ : 29 मई , 2024
ध्रुवों से निष्कर्षित होने वाली ऊष्मा का मापन
‘स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया’ (Stellaria mcclintockiae)
कैटरपिलर में विद्युत् क्षेत्र पहचानने की क्षमता
मूस (Moose)
ध्रुवों से निष्कर्षित होने वाली ऊष्मा का मापन
संदर्भ
हाल ही में, नासा ने प्रीफ़ायर मिशन के अंतर्गत जलवायु उपग्रह के रूप में एक छोटे क्यूबसैट को लॉन्च किया है, जो पृथ्वी के ध्रुवों पर ऊष्मा उत्सर्जन का अध्ययन करेगा।
पृथ्वी के ध्रुवों पर ऊष्मा उत्सर्जन मापने की आवश्यकता
- पृथ्वी के ऊर्जा बजट का विश्लेषण : सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली ऊष्मा की मात्रा और पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने वाली ऊष्मा की मात्रा के बीच संतुलन को पृथ्वी के ऊर्जा बजट के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- इस प्रकार, इन दोनों के बीच का अंतर पृथ्वी के तापमान और जलवायु को निर्धारित करता है।
- सुदूर-अवरक्त विकिरण (far-infrared radiation) की माप : आर्कटिक और अंटार्कटिका से निकलने वाली ऊष्मा की एक बड़ी मात्रा सुदूर-अवरक्त विकिरण (far-infrared radiation) के रूप में उत्सर्जित होती है।
- अभी तक इस प्रकार की ऊर्जा को मापने का कोई तरीका नहीं था, यह क्यूबसैट प्रीफ़ायर मिशन एक विकल्प हो सकता है।
- विद्युत चुम्बकीय विकिरण (प्रकाश) की अवरक्त सीमा के भीतर 3 μm से 1,000 μm की तरंग दैर्ध्य को विशेष रूप से सुदूर-अवरक्त के रूप में जाना जाता है।
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- प्रीफ़ायर (PREFIRE) मिशन क्या है?
- आर्कटिक और अंटार्कटिका ध्रुवों का अध्ययन करने के मिशन को प्रीफ़ायर (फ़ार-इन्फ्रारेड एक्सपेरिमेंट में पोलर रेडियंट एनर्जी) नाम दिया गया है।
- इस मिशन को नासा और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय (यूएस) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जा रहा है।
- मिशन के अंतर्गत दोनों उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जाना है, दोनों ही उपग्रह 6U क्यूबसैट है।
- इनके सौर पैनल, जो उपग्रह को ऊर्जा देते हैं, की ऊंचाई लगभग 90 सेमी और चौड़ाई लगभग 120 सेमी है।
- इन दोनों उपग्रहों को लगभग 525 किलोमीटर की ऊंचाई पर ‘निकट-ध्रुवीय कक्षा’ में स्थापित किया जाएगा।
- कार्य :
- आर्कटिक और अंटार्कटिका से अंतरिक्ष में उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा की माप करना और पृथ्वी की जलवायु पर इसके प्रभाव का पता लगाना।
- ये दोनों क्यूबसैट पृथ्वी के ध्रुव से सुदूर-अवरक्त विकिरण का अध्ययन कर सकते हैं।
- साथ ही उनके द्वारा एकत्र किए गए डेटा से वैज्ञानिकों को ग्रह के ऊर्जा बजट को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
- विशेषताएं :
- आर्कटिक और अंटार्कटिका से अवरक्त और सुदूर-अवरक्त विकिरण की मात्रा को मापने के लिए प्रत्येक प्रीफायर क्यूबसैट एक थर्मल इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर से सुसज्जित है, जिसे थर्मल इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (TIRS) के रूप में जाना जाता है।
- नासा के अनुसार, स्पेक्ट्रोमीटर में अवरक्त प्रकाश को विभाजित करने और मापने के लिए विशेष आकार के दर्पण और डिटेक्टर होते हैं।
- क्यूबसैट ध्रुवों पर वायुमंडलीय जल वाष्प और बादलों में फंसे सुदूर-अवरक्त विकिरण की मात्रा तथा यह क्षेत्र में ग्रीनहाउस प्रभाव को कैसे प्रभावित करता है, को भी मापेगा ।
क्यूबसैट के बारे में
- क्या हैं : क्यूबसैट अनिवार्य रूप से लघु उपग्रह हैं।
- इनका मूल डिज़ाइन 10 सेमी x 10 सेमी x 10 सेमी का घन होता है, जो ‘एक इकाई’ या ‘1U’ बनता है। इसका वजन 1.33 किलोग्राम से अधिक नहीं होता है।
- नासा के अनुसार, क्यूबसैट के मिशन के आधार पर, इन इकाइयों की संख्या 1.5, 2, 3, 6 और 12U हो सकती है।
- इसे पहली बार सन् 1999 में सैन लुइस ओबिस्पो (कैल पॉली) में कैलिफोर्निया पॉलिटेक्निक स्टेट यूनिवर्सिटी और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा शैक्षिक उपकरण के रूप में विकसित किया गया था।
- लाभ : पारंपरिक उपग्रहों की तुलना में क्यूबसैट उपग्रहों की कम लागत और कम द्रव्यमान के कारण, उन्हें प्रौद्योगिकी प्रदर्शन, वैज्ञानिक अनुसंधान और वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए कक्षा में स्थापित किया जाने लगा।
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‘स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया’ (Stellaria mcclintockiae)
चर्चा में क्यों
हाल ही में केरल के पलक्कड़ जिले में नेलियामपैथी पहाड़ियों की ऊंची, कीचड़ भरी ढलानों पर पाई जाने वाली एक पौधे की नई प्रजाति की खोज की गई है।
- नामकरण : इसका नाम अमेरिकी वैज्ञानिक बारबरा मैक्लिंटॉक के नाम पर ‘स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया’ रखा गया है।
- वंश (genus) : स्टेलारिया (Stellaria) से संबंधित और परिवार - कैरियोफिलेसी (Caryophyllaceae) से संबंधित।
- दक्षिण भारत से रिपोर्ट की गई स्टेलारिया वंश की यह पहली प्रजाति है।
- विशेषताएं :
- वर्तमान में स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया प्रजाति केवल नेलियामपैथी पहाड़ियों में 1,250-1,400 मीटर की ऊंचाई पर पायी जाती है।
- यह एक वार्षिक पौधा है जिसकी ऊंचाई 15 सेमी तक होती है।
- यह अपनी पंखुड़ियों, पराग आकारिकी, ब्रैक्ट्स, सेपल्स की विशेषताओं और बीज की बनावट के संबंध में इस वंश की अन्य प्रजातियों से भिन्न है।
- स्टेलारिया वंश की प्रजाति के पुष्पीय भाग अति सूक्ष्म होते हैं और उनकी विशेषताओं को पहचानना कठिन है।
- चिंताएं :
- स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया पौधों की संख्या बहुत कम है और इसके परिवेश को हाथियों के चरने और कुचलने का भी गंभीर खतरा है।
- शोधकर्ताओं ने सिफारिश की है कि स्टेलारिया मैक्लिंटॉकिया को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के मानदंडों के तहत गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया जाए।
बारबरा मैक्लिंटॉक के बारे में
- बारबरा मैक्लिंटॉक एक अमेरिकी वैज्ञानिक और साइटोजेनेटिकिस्ट थीं।
- इन्हें वर्ष 1983 में "मोबाइल आनुवंशिक तत्वों की खोज के लिए" फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- मक्के के साइटोजेनेटिक्स का अध्ययन करने वाली डॉ. मैक्लिंटॉक ने साबित किया कि आनुवंशिक तत्व कभी-कभी गुणसूत्र पर स्थिति बदल सकते (जंपिंग जीन) हैं, जिससे आस-पास के जीन सक्रिय या निष्क्रिय हो जाते हैं।
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कैटरपिलर में विद्युत् क्षेत्र पहचानने की क्षमता
संदर्भ
हाल ही में ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने यह खोज की है कि कैटरपिलर अपने शरीर पर मौजूद छोटे-छोटे बालों (setae) की मदद से अपने आस-पास के विद्युत क्षेत्र को महसूस कर सकते हैं।
संबंधित जानकारी
- शरीर पर मौजूद छोटे-छोटे बालों की मदद से अपने आस-पास के विद्युत क्षेत्र को महसूस करने की कैटरपिलर की क्षमता को इलेक्ट्रोरिसेप्शन कहते हैं।
- सामान्यतः जलीय और उभयचर जीव शिकारियों और शिकार दोनों का पता लगाने के लिए इसका उपयोग करते हैं।
- भौंरा, होवरफ्लाइज़ और मकड़ियों जैसे आर्थ्रोपोड्स में भी इलेक्ट्रोरिसेप्शन पाया है।
कैटरपिलर के बारे में
- क्या है : कैटरपिलर लेपिडोप्टेरा क्रम से संबंधित तितलियों और पतंगों का लार्वा चरण हैं, जिसमें बेलनाकार, खंडित शरीर तथा प्यूपा चरण में तितली के रूप में रूपांतरण से पहले तेजी से भोजन करने व बढ़ने की क्षमता होती है।
- विशेषताएं :
- कैटरपिलर का एकमात्र काम खाना है।
- पतंगे या तितली में बदलने से पहले यह अपना आकार 1,000 गुना से अधिक बढ़ा सकता है। जैसे-जैसे कीट बढ़ता है, अधिकांश प्रजातियाँ चार बार अपनी खाल उतारेंगी।
- उनमें से अधिकांश पौधे खाते हैं, लेकिन कुछ कीड़े और अन्य कैटरपिलर भी खाते हैं।
- उनके शरीर में 4,000 से अधिक मांसपेशियाँ हैं और सबसे बड़े कैटरपिलर की लंबाई 6 इंच तक हो सकती है!
- इनमें से कुछ कीड़े जो पतंगे में बदल जाते हैं वे डंक मार सकते हैं, लेकिन तितली कैटरपिलर डंक नहीं मार सकते।
- रूपांतरण :
- एक कैटरपिलर अपने कोकून से बाहर आते ही तितली बनने के लिए तैयार हो जाता है।
- यह प्रक्रिया एक से 11 महीने तक चल सकती है। फिर, इसका शरीर मोल्टिंग हार्मोन इक्डीसोन छोड़ता है, जो कैटरपिलर को तितली के रूप परिवर्तित होने में मदद करता है।
- अनुमान है कि इस जन्तु समूह में कैटरपिलर की 20,000 से अधिक प्रजातियाँ हैं और अभी भी बहुत सी प्रजातियाँ खोजी जानी बाकी हैं।
मूस (Moose)
चर्चा में क्यों
हाल ही में वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के नए शोध में पाया गया है कि एलिओफोरा श्नाइडेरी (Elaeophora schneideri) नामक परजीवी के कारण मूस (एक प्रकार का हिरण) की आबादी घट रही है।
- मूस के बारे में
- मूस हथेली की तरह दिखने वाली सींगों वाला एक बड़ा हिरण है, जिसका सामान्य जीवनकाल 10 से 12 वर्ष तक होता है।
- वैज्ञानिक नाम : ऐलिस ऐसिस (Alces alces)।
- शारीरिक विशेषताएं :
- इसकी पीठ झुकी हुई और त्वचा गर्दन से लटकती हुई होती है, जिसे ‘ड्यूलैप’ कहा जाता है।
- नर को मादा से उनके सींगों द्वारा अलग किया जाता है, जो छह फीट तक बढ़ते हैं।
- आवास एवं वितरण :
- जलधाराओं और तालाबों वाले वन क्षेत्र मूस के लिए आदर्श आवास हैं।
- यह उत्तरी यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका का मूल निवासी है।
- अपने बड़े आकार और रोधक फर के कारण, मूस ठंडी जलवायु तक ही सीमित हैं।
- अपने बड़े आकार के बावजूद, मूस 35 मील प्रति घंटे से अधिक की रफ़्तार से दौड़ सकते हैं।
- आहार :
- मूस शाकाहारी हैं। शब्द "मूस" एक अल्गोंक्विन शब्द है जिसका अर्थ है "टहनियाँ खाने वाला।"
- मूस इतने लम्बे होते हैं कि उन्हें घास खाने के लिए झुकने में कठिनाई होती है, इसलिए वे पेड़ों और झाड़ियों की पत्तियों, छाल और टहनियों को खाना पसंद करते हैं।
- उनका पसंदीदा भोजन देशी विलो, एस्पेन और बाल्सम देवदार के पेड़ों से आता है। वे नदियों और तालाबों से जलीय पौधों को भी खाते हैं।
- खतरा :
- आवास का क्षरण
- चराई क्षेत्र की कमी
- जलवायु परिवर्तन
- परजीवी मस्तिष्क वर्म आदि।
- IUCN स्थिति : कम चिंताजनक (LC)
एलिओफोरा श्नाइडेरी के बारे में
- क्या है : एलेओफोरा श्नाइडेरी, जिसे आमतौर पर धमनी कृमि के रूप में जाना जाता है, एक फाइलेरिया सूत्रकृमि है और एलेओफोरोसिस का एटियोलॉजिकल एजेंट है।
- परिपक्व अवस्था में ये कृमि 4.5 इंच तक लंबे हो सकते हैं।
- प्रसार : एलिओफोरा श्नाइडेरी मुख्य रूप से घोड़े और हिरण में मक्खियों जैसी टैबनिड मक्खियों द्वारा फैलता है।
- प्रभावित भाग : आमतौर पर, ये श्नाइडेरी कृमि सिर और गर्दन के क्षेत्र में कैरोटिड धमनियों में पाए जाते हैं, जहां वे जनन करते हैं और माइक्रोफाइलेरिया को रक्तप्रवाह में छोड़ देते हैं।
- समस्या : एलिओफोरा श्नाइडेरी संक्रमण के कारण एलियोफोरोसिस नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है जिसमें मूस की परिसंचरण प्रणाली बाधित हो जाती है।
- इससे अंधापन, असामान्य व्यवहार, कान और थूथन को नुकसान और मृत्यु तक हो सकती है।
- हिरण और एल्क (एक प्रकार का बारहसिंघा) जैसी अन्य प्रजातियाँ भी संक्रमित हो सकती हैं। हालाँकि, उनमें आमतौर पर संक्रमण के न्यूनतम या कोई लक्षण नहीं दिखते हैं।
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